मैंने कहा;
"एक रोटी और नहीं खा सकूंगा"
वे बोलीं; "अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनो
और खा लो"
मैंने कहा "खाना तो पेट की आवाज़ पर निर्भर है"
वे बोलीं; "लेकिन वहां तो सब अंतरात्मा की आवाज़ सुनकर खा रहे हैं
मैंने कहा; "उनकी अंतरात्मा पेट में बसती होगी
वे बोलीं; "काश कि तुम्हारी भी वहीँ बसती"
क्या करें
पेट तो बड़ा हो गया है
लेकिन वो तो उम्र का तकाजा है
हमारी इतनी कूबत कहाँ कि;
अंतरात्मा को वहां बसा दूँ
भगवान ने बड़ा जुलुम किया
हमारी भी अंतरात्मा ट्रांसफरेबल बनाते
ताकि हमें भी उसकी आवाज़ आती
और हम एक नहीं बल्कि दो रोटी ज्यादा खा पाते
बाल किशन
२३-०८-२००७
प्रातः ९:१९
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11 comments:
हमारी तो अंतरात्मा के मोबाइल में लगता है बॅलेन्स ही नही है.. कभी कॉल ही नही करती.. या फिर लगता है अंदर ही कहीं एसी चलाकर सो गयी है..
कईसा कईसा काम कर रिये हो... आजकल सुब्बो-सुब्बो उठकर कविता लिखते क्या? ये अंदाज़ भी निराला लगा कि कविता के ठीक नीचे तारिख और समय तक लिख डालते हो. शायद ज़रूरी है. कहीं कवितायें चोरी न हो जाएँ..
वैसे बढ़िया कविता लगी. ऐसे ही लिखते रहो. भविष्य उज्जवल है. कविता का भी और तुम्हारा भी.
बाल किशन भाई
अंतरात्मा????ये किस चिडिया का नाम है भाई??? कभी हुआ करती थी इंसानों में अंतरात्मा...जब भारत सोने की चिडिया कहलाता था...वो चिडिया उडी तो उस चिडिया के साथ ही अंतरात्मा भी गायब हो गयी...ये कम से कम इंसान में नहीं मिलती...हाँ गधों....सियारों...गीदडों....भेडियों...बिल्लियों.. कुत्तों...में शायद अभी भी कहीं बची मिल जाए...क्यूँ की ये अभी भी वैसे ही हैं जैसे भारत के सोने की चिडिया कहलाने के समय थे.
शिव की बात से हम शतप्रतिशत सहमत नहीं हैं...आप का भविष्य तो उज्जवल है लेकिन कविता के बारे में ये बात कह पाना हमारे लिए सम्भव नहीं...उसे छोड़ क्यूँ नहीं देते तात्.... पेट ख़राब होने पर ऐसे विचार आने स्वाभाविक हैं...हिन्गाश्टिक चूर्ण का सुबह सुबह सेवन किया करो इस से ख़ुद भी खुश रहोगे और दूसरे भी.
नीरज
बाकी मामले में अंररात्मा की आवाज ठीकहै पर एक और रोटी में नहीं बाद मे खामखा की मुसिबत ...
अपनी अंतरात्मा की आवाज जरूर सोनों ...मगर रोटी या पेट के मामले मे नहीं।वर्ना लौटा उठा कर आप ही भागते फिरोगे।:)
सुनो और लौटा पढे।
चलिये आपने बताया तो अंतरात्मा कहाँ रहती है ,हमें लगा अब इन दिनों ये विलुप्त घोषितो में से एक है ...कुछ डायटिंग करिये,ओर पेट में जगह बनाईये ......
aapki kavita ka to andaaz hi nirala hai...abhi haal hi mein aisi nirali ek kavita aur padhi thi
...aur rahi baat antar aatma ki , aisi soyi pad hai ki jaagne ka sawaal hi nahi.
बेहतरीन...लगे रहिये..सुनते रहिये.
आपकी अन्तरात्मा किराये पर मिल सकती है? मेरी तो खाने को मना कर रही है! :-)
कम खाना गम खाना सेहत के लिए अच्छा है अंतरात्मा ??:)
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