Tuesday, October 6, 2009

चिरकुटई पर प्रीमियम

प्रस्तुत है जयराम 'आरोही' की बिलकुल नई कविता चिरकुटई पर प्रीमियम. आप कविता पढिये.

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चिरकुट ऐक्ट्रेस
चिरकुट ऐक्टर
चिरकुट ऐक्ट्रेस की माँ
चिरकुट म्यूजिक डायरेक्टर

चिरकुट कांसेप्ट
चिरकुट इफेक्ट
चिरकुटई की हद
चिरकुटई बेहद

चिरकुटई वाला बिग बॉस
पब्लिक का अपेटाईट लॉस
चिरकुटई का रियलिटी शो
गन्दगी टीवी पर धो

कब कुछ करेंगे हम?
निकले चिरकुटई का दम?
कब तक मिलता रहेगा
चिरकुटई पर प्रीमियम?

Wednesday, September 16, 2009

श्री जयराम 'आरोही' की एक कविता "दुःख-सागर"

प्रस्तुत है श्री जयराम 'आरोही' की एक कविता "दुःख-सागर". आप कविता बांचिये.


कैसे बारिश लताडती है
सिकुड़े हुए पीले पत्तों को
कागज़ की नावों को
सड़े हुए गत्तों को

झारखंडी झुरमुटों का लतियाया जाना
संवार पायेगा जंगलों को?
खिसियाई बिल्ली रोक पाएगी
चूहों के दंगलों को?

टुटही छतरी ओढे बलेशर
कांख में पनही दबाये भुलेषर
खींचेंगे बिरहा का तान
करेंगे सच का संधान?

देखेंगे कोसी की बाढ़
वही सावन, वही असाढ़
कहाँ से लौकेगा सुख?
छोड़ कर जाएगा?
हिचकोले मारता दुःख?

दुनियाँ भर की अमीरी
सतनारायण की कथा वाली पंजीरी
न्याय की गुहार लगाता लतखोर
लात खाने के लिए तैयार
रोटी का चोर

जीने की लडियाहट
चार पैसे कमा लेने की चाहत
दबे हुए कन्धों का भार
कौन थामेगा?
कहाँ से आएगा?
कोई अवतार?

सुख का सरग-बिल-खोज
प्रयागराज की गंगा का ओज
कौन से जनम में मिलेगा
ई पाथर कब हिलेगा?

Wednesday, June 3, 2009

ओसोलन मोशावा के काव्य संग्रह 'मिराज एंड वाटर' से एक कविता

समय का इतना अभाव है कि ब्लॉग लिखने तक की फुर्सत नहीं है. काम से फुर्सत निकालता भी हूँ तो बीमार होने के लिए. बीच-बीच में मन खिन्न हो जाता है. मित्रों का ब्लॉग न पढता तो शायद बीमारी बनी रहती. काम करने की फुर्सत नहीं देती. ब्लॉग के अलावा साथी हैं, कुछ किताबें.

हाल ही में इथियोपिया के प्रसिद्द कवि ओसोलन मोशावा का काव्य संग्रह 'मिराज एंड वाटर' पढ़ रहा था. एक कविता पढी. अच्छी लगी. कोशिश की है, भावानुवाद करने की. पता नहीं कितना सफल रहा. लेकिन जो कुछ निकला, सोचा आपके साथ बाँट लूं.

कौन किसे बनाता है?
मनुष्य को व्यवस्था
या
व्यवस्था को मनुष्य?

कौन किसे चलाता है?
मनुष्य व्यवस्था को?
या
व्यवस्था मनुष्य को?

कौन किससे पाता है?
मनुष्य व्यवस्था से?
या
व्यवस्था मनुष्य से?

उत्तर मिलना कठिन है?
शायद हाँ

व्यवस्था को गढ़ लेने की चाहत
और
उससे होता मन आहत
जब उदास होता है
अन्दर से रोता है

तब सवाल पूछता है
मनुष्य से
सवाल पूछता है
व्यवस्था से

क्या मिला व्यवस्थित होकर?
एक व्यथित मन?
एक थका हुआ तन?
क्या यही है तुम्हारा धन?

Friday, February 13, 2009

आशा थी कि अब गड्डी बिकेगी.....

सरकार ने लिक्विडिटी को बढ़ावा देते हुए व्याज दरों में गिरावट की. आशा थी कि अब गड्डी बिकेगी.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

बिकी तो लेकिन गड्डी नही बल्कि.....