Monday, January 25, 2010

धन्य-धन्य कंसल्टिंग वाले ब्लॉगविधाता

प्रस्तुत है जयराम 'आरोही' की कविता जो उन्होंने कल ही ब्लागिंग जैसे नए विषय पर लिखी है. आप कविता बांचिये.


लिखने का न लूर था, ब्लागिंग होइ गई बंद
कहाँ से लाता आईडिया, लगवाता पैबंद
लगवाता पैबंद थाम के रखता इसको
समझ में आया यही यहाँ से जल्दी खिसको
मगर आईडिया लेकर फिर से वापस आया
जल्दी से न भूले ये ब्लागिंग की माया

आज दिया कंसल्टेंट ने एक आईडिया मस्त
बोला डर की बात क्या? क्यों होते हो पस्त
क्यों होते हो पस्त मानकर बात हमारी
कसो कमर उतरो रन में करके तैयारी
कंसल्टिंग लेकर फिर से तैयार हुआ हूँ
खेने हिंदी की नैया पतवार हुआ हूँ

अगर नहीं कुछ लिख सकते तो बड़े बनो तुम
जो छलके हर पग पर ऐसे घड़े बनो तुम
घड़े बनो और बांटो ब्लागिंग के रहस्य हो
फिरो रात-दिन दो कमेन्ट तुम हर सदस्य को
फिर देखो कैसे चलती तुम्हरी दूकान है
इसी नींव पर खड़े हुए कितने मकान हैं

ब्लागिंग का ये ज्ञान अगर न बाँट सको तुम
अगर न ऐसी हीरोगीरी छाँट सको तुम
छाँट सको न हीरोगीरी मान वचन को
सजा सको गर नहीं बड़ी सी एक किचेन को
धैर्य न खोवो एक आईडिया देता हूँ मैं
तुम जैसे ब्लॉगर की नैया खेता हूँ मैं

सुनो आईडिया देता हूँ ब्रह्मास्त्र मानकर
फूले नहीं समाओगे तुम इसे जानकर
इसे जानकर आगे बढ़ एक काम करो तुम
दे अवार्ड ब्लागिंग का अपना नाम करो तुम
टिक जाओगे ब्लाग-जगत भी हिल जाएगा
तुम्हें ब्लागपति का पद झट से मिल जाएगा

वापस आया हूँ अब ब्लागिंग कर पाऊंगा
दे अवार्ड फिर से अपना पग धर पाऊंगा
धर पाऊँगा पग फिर उसे जमकर अंगद जैसे
रख दूंगा फिर ऐसे की वो उखड़े कैसे
धन्य-धन्य कंसल्टिंग वाले ब्लॉगविधाता
तुम न होते आज भला मैं कहाँ को जाता