वे बता रहे थे कि तुम्हें नौकरी नहीं मिली
इसलिए तुम आतंकवादी बन गए
लेकिन एक बात मेरी भी सुनो
उन्हें भी तो नौकरी नहीं मिली थी
जिन्हें तुमने मार डाला
तुम नहीं देख सके?
कि उन्हें भी नौकरी नहीं मिली थी
इसीलिए तो वे फल का ठेला लगाये खड़े थे
पचास रूपये कमाते और अपने बच्चों का पेट भरते
उनका पचास रुपया कमाना तुम्हें बर्दाश्त नहीं हुआ?
चलो, माना कि तुम्हारे पास काम नहीं है
लेकिन जरा यह भी तो सोचो कि;
इस मुल्क में न जाने कितनों के पास काम नहीं है
तो क्या सबके सब तुम्हारे जैसे आतंकवादी बन जाएँ?
नहीं, एक बार सोचना मेरी इस बात पर
और हाँ, कोई जवाब सूझे तो ज़रूर बताना
बम फोड़कर नौकरी तलाश रहे हो क्या?
तुम्हारे बम फोड़ने से जितने का नुकशान होता है
उस पूंजी से शायद हजारों को नौकरी मिलती
सुन रहे हो?
या फिर यह कहने की तैयारी कर रहे हो कि;
गाजा, कश्मीर और चेचेन्या में तुम्हें सताया जा रहा था
इसलिए तुमने बम फोड़ डाले
मैं कैसे मान लूँ कि;
तुम्हें वहां सताया गया
तुम तो यहाँ रहते हो, भारत में
या फिर यहाँ केवल तुम्हारा शरीर रहता है?
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26 comments:
आप किनकी बात कर रहे हैं - ये तो न दिल रखते हैं न दिमाग। इनके पास सुनने को कान भी नहीं हैं। वे केवल हाथ रखते हैं - बम फोड़ने के लिये!
बाल किशन भाई
जिंदाबाद...जिंदाबाद....बहुत खूब कहा है आपने...शशक्त लेखन... इसे कहते हैं कविता जो मन मश्तिक्ष को झकझोर दे. शाबाश भाई...एक बार फ़िर...जिंदाबाद.
नीरज
बाल किसन जी एक दम सार्थक रचना है। सही कहा-यहाँ उन के शरीर रहते हैं मन तो कहीं ओर ही है...बहुत बढिया रचना है।बधाई।
बहुत सटीक रचना.. दमदार लेखन.. किंतु पांडे जी से भी सहमत हू.. इनका कोई दिल नही होता
वाह बाल किसन जी बहुत सुन्दर कविता ओर कविता मे ही एक संदेश भी दे दिया धन्यवाद
बहुत सही लिखा किशन भाई.काश उनके पास वह दिल होता जो उजड़ी हुई जिंदगियों को देख पिघलता.काश यह चीख पुकार रुदन उनके कानो तक पहुँचता.
दिमाग भी यही होता है जी उसी से तो पंगा करते है ये.
ज्ञान जी वाली बात ही मुझे भी कहानी है बस.
बहुत खूब बहुत बढिया रचना है बधाई.
Bhai bahut badhiya likha hai...Waah!
अन्तिम पंक्ति हजार बार पढने लायक है......
या फिर यहाँ केवल तुम्हारा शरीर रहता है?......
बहुत ही गहरी बात.....
एक दम सीधे और सटीक प्रश्न. इतना ही वो सोच लेते तो आतंकवादी क्यूँ बनते. दमदार, सशक्त प्रस्तुति.
आप इनसे जो सवाल पूछ रहे हैं वो इनके लिए कोरी बकवास हैं। ये जिस पाठशाला में पढ़कर आये हैं वहाँ तर्क और बुद्धि की बलि चढ़ाने के बाद ही प्रवेश मिलता है। मस्तिष्क की साफ धुलाई और खुदाई करके उसमें पागलपन और सनक के बीज बोए जाते हैं, (अ)धर्म की नयी किताब रटायी जाती है जिसमें ‘हिंसा परमो धर्मः’ और ‘असत्यमेव जयते’ का पाठ लिखा होता है।
दिल दिमाग और भावनाओं को परे रख कर ही आतंकवादी जन्म लेता है.
सशक्त लेखन के लिये बधाई स्वीकारें.
बम फोड़कर नौकरी तलाश रहे हो क्या?
तुम्हारे बम फोड़ने से जितने का नुकशान होता है
उस पूंजी से शायद हजारों को नौकरी मिलती
सुन रहे हो?
"AH! very well said, nicely described"
सीधी सी बात है, यहाँ केवल उनका शरीर रहता है. शरीर को चाहिए हवा,पानी, धूप, खाना. यह सब चीजें वह यहाँ से लेते हैं. पर मन उनका कहीं और है और उस 'कहीं' की वफादारी निभाने को वह यहाँ बम फोड़ते हैं. मेरी भाषा में इसे कहते हैं, एहसानफ़रामोशी, देश द्रोहिता.
अलग अंदाज में गहरी बात कह गये बंधू .....
मूर्खों को कौन समझाए कि मूर्खता का जवाब मूर्खता कभी नहीं होता । नफरत के बीजों से प्यार की फसल कैसेट पाई जा सकती है । आपने जन-जन के मन की बात कही ।
जब यह सब वह यह करते हैं तो फ़िर कहाँ सोचते हैं ..बहुत सही लिखा है आपने ..
wah ji balkishan bhai ji bahut achchi rachna likhi hai aapne rongte khade kar dene wali kyunki jo aapne pesh ki hai shayad vo kisi ke bhi dil ko chhoo jayegi tanks and congratultion for a good job I Salute to all
मैं कैसे मान लूँ कि;
तुम्हें वहां सताया गया
तुम तो यहाँ रहते हो, भारत में
या फिर यहाँ केवल तुम्हारा शरीर रहता है?
भाई साहब सौ टक्के आली खांटी बात कहण
पर थानै बहुत बधाई और शुभकामनाए !
आप तो इसी तरह बेबाकी से लिखो !
सटीक और यथार्थ लेखन। मार्मिक।
kya baat kahi hai, bilkul alag hi andaaj me.
nihshabd hun......
bahut jaandaar prashn hain
aur sahi dhang se galat karar kiya hai,
adbhut
Aapki rachna ka to koi jawab hi nahi. Ati sawedanseel aur sparshi hai.
जनाब, आपने इन फिरकापरस्त दंगाईयों से वाजिब सवाल किया है. दिल को कहीं और रखने की बात तो है ही, गुनाह-ए-अजीम करने का जरा भी पछतावा नहीं रहा इन दहशतगर्दों को. खुदा से सजा मिलेगी इन्हें. ये सरज़मीं इन्हें कभी मुआफ नहीं करेगी.
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