-तुम ऐसा लिखना जो सबकी समझ में आए.
-लेकिन मैं लिख नहीं सकता.
-तुम बोल तो सकते हो न?
-मैं बोलने की कोशिश की थी. लेकिन आवाज़ पेट से निकली.
-मुन्नू कह रहा था कि सबकुछ पापी पेट की वजह से है.
-पापी तो आंतें होती हैं. पेट तो बिल्कुल सीधा होता है.
-वो देखो तुम्हारे कुरते की कंधे पर नेवला चढ़ गया है.
-तुम चिंता मत करो. वो आस्तीन के सांपो को काट खायेगा.
-कहाँ जा रहे हो?
-चाकलेट खरीदने.
-चाकलेट मीठा होता है?
-नहीं, अब मिठास जाती रही.
-मूवी देखते-देखते सो गए?
-मैं सोते हुए जाग रहा हूँ.
-मूवी में समंदर है न.
-समंदर सूख चुका है. कल ग्लोबल वार्मिंग से एक धमाका हुआ था. इसलिए सूख गया.
-और मछलियाँ कहाँ गईं?
-मैंने उन्हें उड़ते हुए देखा.
-कमीज पहनी थी, मछलियों ने?
-कुरता पहन रखा था. लेकिन कुरते में बटन नहीं था.
-और टिटहरी कहाँ गई?
-टिटहरी उसी सूखे समंदर में समा गई.
-आज पालक की सब्जी खाई थी मैंने.
-तुम्हारी आवाज़ में हरियाली दिख रही है.
-लेकिन इस हरियाली में भी अमरुद पककर पीला हो गया है.
-अमरूद तो हरा ही अच्छा होता है न.
-अब तो आम हरे होते हैं.
-मैंने अपने किताब में एक आम छिपाकर रखा था. डब्लू खा गया.
-खाने की बातें अब आम हो गई हैं.
-हाँ, सच कहा तुमने. कल ही अखबार में देखा था.
-गावस्कर की स्ट्रेट ड्राइव देखी तुमने?
-कल तो उन्हें मैंने बीयर पीते देखा था.
-स्ट्रेट ड्राइव की खुशी मना रहे थे.
-और पापा?
-वे चूल्हे पर बैठे हाथ ताप रहे थे.
-चूल्हा बुझ गया होगा.
-हाथ बुझ गया. पाँव में उन्होंने एक अंगूठी पहन रखी थी.
-एक अंगूठी मेरी नाक में पहना दो न.
-तुम्हारी नाक बिल्कुल तोते के जैसी है.
-और तोता काला पड़ गया.
-काला तो घोड़ा था. बिक गया.
-हाँ, कल मैंने अखबार में पढा.
-अब तो अखबार भी बिकने लग गए.
-खरीदने का अरमान चाहिए. सब बिकता है.
-वो विज्ञापन देखा?
-हाँ, उसमें उस लड़की को देखा जो रो रही थी.
-वो तो लड़की की आँखें रो रही थीं.
-हाँ, रोते हुए लड़की प्यारी लग रही थी.
-मुझे वो पसंद है.
-और मैं?
-तुम तो बेहद पसंद हो.
-और मेरी चूडियाँ जो मैंने कान में पहन रखी हैं?
-चूडियाँ पसंद नहीं. मुझे बिंदी पसंद है.
-जो मैंने अपने गले पर लगा रखी है?
-नहीं जो तुमने अपने कानों में दाल रखी है.
-कालेज जाते हुए मैंने रास्ते पर घास देखी.
-हाँ मैंने भी देखी. तुमने उस घास में तिलचट्टे को देखा?
-हाँ, देखा. तिलचट्टा उछलकर मेरी जेब में बैठा.
-लेकिन तुम वो लिखना जो सबकी समझ में आए.
-लेकिन मुझे लिखना नहीं आता.
-बोलना तो आता है न.
-हाँ, लेकिन मेरी आवाज़ गले में अटक गई है.
- बालकिशन
२२.०७.२००८
प्रातः ९:३०
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
31 comments:
सिर पर कुछ बचे हैं बाल
पहले से हो गये हैं छोटे और बारीक
चाहते हो क्या मित्र?
क्या उन्हें भी खुजला खुजला कर
कर दें खतम
यह कविता पढ़ कर।
---------
खैर, कविता सुन्दर है। अत्यन्त मधुर!
अद्भुत रचना है. ऐसी ही एक रचना आज गौरव सोलंकी जी की पढी. दोनों कवितायें शानदार लगीं.इसी बात पर एक कविता मेरी भी पढ़िए. साल २००४ में लिखी थी.
-रोटी जल गई.
-जल तो चूल्हा गया. रोटी तो सिंक गई.
-घी गरम है?
-घी ठंडा है. रोटी पर रखो, गरम हो जायेगा.
-मुझे सुगर है. मैं खीरा खाऊंगा.
-तुम कितने प्यारे हो. तुम्हें सुगर है न.
-प्यारा तो सुगर भी होता है.
-और खीरा?
-वो तो नमक के साथ अच्छा लगता है.
-लेकिन मुझे चीनी के साथ खाना है.
-खीरे में बटर और चाकलेट भी मिला देना.
-लेकिन चाकलेट तीता है.
-तो उसमें रसगुल्ला मिला लेना.
-लेकिन मुझे तो सुगर है न.
-तुम कितने प्यारे हो. तुम्हें सुगर है न.
ise ulatbaansi kahen ya fantesy?
waise shabdon ka sundarsanyojan hai.
वाह! वाह!
ये कविता है या कविता की चिता है?
कविता की माँ है या कविता का पिता है?
कविता लिखने की कसम से निजात पाओ
पढने वालों के लिए थोडी राहत ले आओ
एक कविता उनकी और एक ये तुम्हारी
ब्लाग-जगत में फूट पड़ी बनकर चिंगारी
जान न पाये, कि कैसे जान जाए
इनकी, उनकी, सबकी और हमारी
कविता लिखना है तो ढंग का लिखो
यमुना, गोदावरी, गोमती या गंग का लिखो
अकेले में घूमने या फिर संग लिखो
जैसे भी लिखो कुछ रंग का लिखो
बनना है कवि बनो, सवी न बनो
दूसरों की बातें भी कुछ ध्यान से गुनो
शब्दों का चक्कर चला, चादर तो बुनो
पर ऐसी न लिखो कविता हमरी भी सुनो
कहाँ हो भाई ?आये तो ये कविता लेकर ?आधुनिक कविता ...लम्बी कविता ,यथार्तवादी कविता ,क्रांतिकारी कविता ?क्या कहूँ ....सोचता हूँ डॉ अमर जी के टिपण्णी संग्रह से कुछ टिपण्णी लाकर यहाँ चिपका दूँ.....बंधू लिखते रहा करो.....ओर मिश्रा जी के ऑफिस भी बहुत दिन हो गये आपका चक्कर नही लगा.....
ab samajh me aaya ki is kavita ka janm kaise hua .....jab chittha me kuch neeche gaya ......yar bhale aadmi ne theek thaak likhi hai..
ओहोहो, चरम. परम. गरम तो है ही. गौरव बच्चा को इत्तिला देके लिखे, कि बिनबताये माथा चढ़के कलम चलाय लिये? ख़ैर, जौनो किये, उत्तमेव ही है.
शिवकुमार ने पाठकीय ऊंचाई का कवि-धरम भी निभा दिया है. ओहोहो, हे गिरधारी, ओ बिरिजबिहारी.. ऐसा लिखना, और फिर ऐसी की तैसी लिखना.
सब कुछ साफ़ साफ़ समझ आ गया!!
ओहो! ये कविता है? हम तो सोचे कि ये और वो दोनों ही संवाद हैं। उसको पढ़कर लगा एक-दूसरे से अघाए हुए लोग एक-दूसरे की सुने बिना प्रलाप किये जा रहे हैं और इसको पढ़कर भी यही लगा। समझ में तो दोनों से ही कुछ नहीं आया।
बाल किशन भाई
ऐसी बाल सुलभ जिज्ञासाओं जैसे कविता मत लिखा करो...कहीं शिक्षा मंत्री ने देख या पढ़ली तो बच्चों की हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में लगा देगा...बच्चों का तो कुछ बिगडेगा नहीं बेचारे हिन्दी के अध्यापक जो निराला, अजेय, दिनकर,पन्त, नीरज (गोपाल दास नहीं...गोस्वामी वाले नीरज) आदि को पढाने के अभ्यस्त हो चुके हैं... जरूर नौकरी छोड़ के चले जायेंगे....रहम करो भाई...मास्टर को अपने बच्चे पालने के लिए क्या क्या जुगत बिठानी पढ़ती है...खास तौर पर हिन्दी के मास्टर को...वो तो आप जानते ही होंगे...उनपर सुनामी की लहर जैसी कविता का प्रहार मत करो...
शिव ने अच्छा किया जो कविता लिखना छोड़ दिया वरना देश में बागियों की संख्या में इजाफा हो जाता...जो पढता वो सोचता ऐसी कविता पढ़ कर पास होने से अच्छा है की बन्दूक पकड़ के बीहड़ में बागी हो जायें...
नीरज
are baap re...aisi kavita bhi hoti hai?
हा हा ! ये क्या था? लगता है इतने दिनों से नहीं आ रहे थे.. और जो शोध कर रहे थे.. उसी का नतीजा है!
ITNA KUCH EK SAATH...BAHUT BADHIYAA...SHIV JI AAP BHI KAMAAL
अभी इसको दो बार पढ़ा है समझ रहे हैं कि क्या है यह इतने दिनों बाद का लिखा विरह गान, या कुछ संदेश या कविता ...अभी लौट के समझ के टिप्प्याते हैं ::)शिव जी बेरागी जी ने भी खूब कहा :)
अभी समझ में आ गया सर कि यह रिमिक्स सोंग है और हिट है :) आप ख़ुद देख ले हिट और ..:)
इसी मीटर की एक गज़ल अभी अभी पढ़कर चले आ रहे हैं..हा हा!! आपके दिमाग की उर्वरा को दाद, आपको नहीं..बदला मित्र बदला!!! :)
-तुम ऐसी ब्लाग पोस्ट लिखना, जो किसी को समझ आ कर भी समझ न आये.
-लेकिन मेरा तो ब्लाग ही नहीं है
- कम्यूनिटी ब्लाग पर ईमेल तो कर सकते हो न?
-मैने कोशिश की थी, ईमेल बाम्पस हो गई.
-मुन्नू बता रहा था सब कुछ स्पैम की वजह से है.
-स्पैम तो प्रोडकट्स का होता है, तुम तो कवि हो.
-वो देखो तुम्हारी जेब से किसी शो की टिकिट झांक रही है!
-कहाँ जा रहे हो, बिना बताये?
-साँप नेवले की लड़ाई का शो है संसद में.
-संसद में तो नेता होते हैं.
-वो ही तो सांप होते हैं.
-और नेवले?
-वो जेल में होते हैं, वोट देने लाये जाते हैं.
-मेरे पास बांसूरी है.
-तो तुम साँप नेवले और बांसूरी की कहानी लिखना.
-कहानी तो सांप नेवले और बीन की होती है.
-इसीलिए तो कहता हूँ तुम ऐसी ब्लाग पोस्ट लिखना, जो किसी को समझ आ कर भी समझ न आये.
-लेकिन मेरा तो ब्लाग ही नहीं है
-फिर यहीं टिप्पणी में लिख देना.
और मछलियाँ कहाँ गईं?
-मैंने उन्हें उड़ते हुए देखा.
-कमीज पहनी थी, मछलियों ने? ----
आधुनिक कविता का क्रांतिकारी रूप आपकी कविता में भी दिखा और टिप्पणियों में लाजवाब...
-आज मैंने मीटर में गजल लिखी.
-कितने मीटर की?
-अरे, मीटर में मतलब मीटर में बैठकर.
-संभालना. करंट लगने का चांस रहता है.
-लगने को तो पत्थर भी लग सकता है.
-ऐसी गजल लिखोगे तो पत्थर लगेंगे ही.
-बेचारे पत्थरों की दुर्गति है न.
-दुर्गति तो गजल की भी हो रही है.
-गजल की दुर्गति कौन करेगा भला?
-बहुत बैठे हैं दुर्गति करनेवाले.
-जो करंट हैं उन्हें करने दो. तुम तो अपना नेवला संभालो.
-और सांप? उन्हें कौन संभालेगा?
-उनकी चिंता मत करो. नेवला है न.
-आजकल नेवले भी कभीकभी सांप बन जाते हैं.
-उन्हें रोकना होगा.
-कैसे?
-मीटर में गजल लिखकर.
bal kishan ji dekhna kahi gaurav "hurt "na ho jaaye ..umeed karta hun aapne sirf ise ek halke fulke tareeke se likha hai...
यह कैसा अंदाज है, जी ?
जो भी है...चकाचक है, बस भकाभक..
रुकिये, शायद मेरी ज़ेब में भी तिलचट्टा कुलबुला रहा है !
अच्छा है...।
इसलिए कहते है ज़्यादा दिन ब्लॉगिंग से दूर नही रहना चाहिए.. ग़लत असर पड़ सकता है...
@ डॉक्टर अनुराग
सर, गौरव जी को हर्ट फील नहीं करना चाहिए. मेरा ऐसा विश्वास है. पैरोडी की विधा सदियों से चलती आई है. ये 'रचना' (अगर इसे रचना माना जाय तो) उसी विधा के तहत है.
कभी कभी हिन्दी ब्लॉग दुनिया देखकर अपनी भाषा के लिए अफ़सोस होता है। बाकी कुछ नहीं।
म्हारा कवि बालकिशन ! भाई तन्ने तो घण्णै चाल्हे रौप राखें सै ! भई आज थारा ब्लॉग देख देख कै ताऊ की तो आंख्यां मैं घी सा घल्ग्या ! भई यूँ ही लिखता रह ! इब हम थारी पुरानी कविता पढ़ पढ़ कै आनंद लेते रहेंगे !
सुधर जाओ पंगे लेने का कापी राईट केवल हमारे पास है :)
मैं तो आज जाकर इसे पढ रहा हूं.. जो भी कहिये पढ़ कर मजा आ गया.. :) शिव जी की कविता भी शानदार है और समीर जी की भी..
सारे पोस्ट पढ़ कर अपनी हंसी रोक नहीं पा रहे हैं.. मगर एक अफसोस भी हो रहा है कि एक छोटे से मजाक को लेकर तिल का ताड़ बना दिया गया है..
mast
सही सही।
फिर तो नही कहोगे की तुम लिखते क्यूँ नही ?
-फिर तो नही कहोगे की तुम लिखते क्यूँ नही ?
-नही
-तो अब क्यूँ कहा ?
-मामा केले लेने चले गए थे ?
-और सेव
-वो तो पेड़ पे लगते हैं
-चलो शादी कर लें
-भागकर शादी करना अच्छा नही होता
-क्यूँ
-अखबार में छप जाता है
-अखबार में तो फिल्मो के बारे में भी छपता है
-कोन सी
-दा लास्ट लिएर
-आर्ट मूवी है
-समझ में नही आएगी
-साइंस भी तो समझ नही आती
- तो फिर क्या समझ में आता है
-गुड्डे गुडिया की शादी
-शादी में क्या क्या मिलता है
-टीवी, फ्रिज, मोटर, सोफा, कूलर.
-मोटर पानी वाला ?
- ना
- मोटर गाड़ी
- और वाइफ ?
-वाइफ भी मिलती है
-कितनी ?
-१.६ मीटर की
-फिर तो नही कहोगे की तुम लिखते क्यूँ नही ?
-नही
-पक्का
-हाँ पक्का
Post a Comment