Tuesday, May 20, 2008

'उनकी' एक कविता

जिन्होंने भी परसाई जी का उपन्यास, रानी नागफनी की कहानी पढा है, उन्हें वह कवि जरूर याद होंगे जो कुँवर अस्तभान को कविता सुनाकर उनका मनोरंजन करना चाहते हैं. उन्ही कवि की एक कविता पढ़िए...

कल तक मैं समंदर था
स्थिर था
धरती को डुबोये था
एक दिन इच्छा हुई;
मैं आकाश में उड़ जाऊं
एक गौरैया की तरह

कभी सोचता;
'काश, कि मैं हिमालय पर बहता'
तो हिमालय को ख़ुद में डुबो लेता
किंतु हाय; ऐसा हो न सका

लेकिन ये कौन है
जिसने मुझे हिमालय से अलग कर रक्खा है?
ये कौन है
जो मुझे रोकता है आकाश में उड़ने से?
ये कौन है
जो मुझे रोकता है गौरैया बनने से

ये नीली व्हेल
ये शार्क
ये छोटी छोटी मछलियाँ
मेरी किस्मत में क्या यही हैं?
क्या मैं कभी हिमालय को नहीं डुबो सकूंगा?
कोई मुझे क्यों नहीं बताता?

जिसने भी मुझे रोक रक्खा है
उससे मेरी विनती है;
एक बार तो मौका दो
हिमालय को ख़ुद के अन्दर डुबोने का
गौरैया बनकर उड़ने का

एक बार मौका दो
कि मैं भी कश्मीर में बह जाऊं
वहाँ से हिमाचल होते हुए
दिल्ली तक पहुँच जाऊं

8 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

आज के जमाने में तो इस कविता की बात बड़ा मुशर्र्फी स्वप्न है। बेचारे वे यही तो चाहते हैं सियाचिन-कश्मीर के रास्ते दिल्ली!

Manas Path said...

अच्छा लगा पढकर.

दिनेशराय द्विवेदी said...

कविता पढ़ कर याद आया- विनय न मानत......

काकेश said...

मार्च के बाद मई में आपकी कविता पढ़ी. आप जो महान कवियों की कवितायें छाप रहे थे उसका क्या हुआ.

पिछ्ली बार आपने वादा किया था कि अर्जेंटीना के कवि.. रोंचाक फ़रगोजी की नयी कविता पढ़वायेंगे उसका क्या हुआ.

हम प्रतीक्षा में हैं.

राजीव रंजन प्रसाद said...

एसी उम्दा रचना पढवाने का आभार..

***राजीव रंजन प्रसाद

Udan Tashtari said...

आभार इस रचना को पढ़वाने का.

Shiv said...

वाह! बहुत जोरदार कविता ले आए भाई. इतने दिनों बाद आए लेकिन बहुत खूब आए.
और काकेश जी की फरमाईश पर अर्जेंटीना के महान कवि की कविता भी छापिये.

रंजू भाटिया said...

सुंदर कविता लगी यह पढ़वाने के लिए शुक्रिया