Tuesday, May 27, 2008

एक बहस की शुरुआत फ़िर से -- कृपया करें.

बहुत हो-हल्ला हो रहा है आजकल. ब्लॉग ये है, ब्लॉग वो है, ये होना चहिये, वो होना चाहिए, वो नहीं होना चाहिए . ब्लोगियर को ये लिखना चहिये, ये नहीं लिखना चाहिए आदि-आदि. कई एक तो एक-आध दिन परेशान भी दिखते हैं कि अपने ब्लॉग जगत मे ये क्या हो रहा है. कल-परसों शिवजी हो रहे थे आज समीर भाई परेशान दिख रहे हैं. कुश भी चिंतित है. और भी कई महानुभाव चिंतित हैं.

इन सब के मूल मे क्या होता है? दरअसल हो क्या रहा है कि गाहे-बगाहे कुछ एक विवाद किस्म के मसले खड़े होते हैं या यूं कहिये खड़े किए जाते हैं. उनपर पोस्ट लिखी जाती है अब चूँकि विवादास्पद पोस्ट पढी भी ज्यादा जाती है और कमेंट्स भी ज्यादा मिलते हैं तो लोग इनकी तरफ़ आकर्षित भी ज्यादा होते हैं. पर खतरनाक बात ये है कि इन पोस्ट और इन पर आने वाली टिप्पणियों मे जिस भाषा का इस्तेमाल होता है वो बहुतो को गले नहीं उतरती और उतरनी भी नहीं चाहिए. आख़िर हम सब जुड़े हैं कुछ कारणों से कोई अभिव्यक्ति की बात कर रहा है, कोई सृजन की बात कर रहा है, कोई मस्ती की बात कर रहा है. तो फ़िर ये अभद्रता कंहा से आगई. आप किसी से सहमत नहीं हैं तो विरोध प्रदर्शन के कई रास्ते है पर अभद्रता या फ़िर गुंडई तो कतई नही.

विवाद हो बहस भी हो खूब जम कर हो पर जिस स्तर पर हम उतर आते है वो गंदगी का पर्याय बन जाता है. आप पिछले छ महीने साल भर के ब्लोग्गिंग को ध्यान से देंखे तो पता चलेगा का कि इन विवाद की जड़ें सिर्फ़ आठ-दस ब्लोगों से ही निकलती है. और इनको बढावा देने मे कुछ तथाकथित बड़े ब्लोगियारों का हाथ होता है. जो ४-५ दिनों के अंतराल मे ही इस बिषवृक्ष को इतना बढ़ा देतें है कि कईयों का दम घुटने लगता है.

इस बीमारी से ब्लॉग जगत को बचाने के लिए हम सब को प्रयत्न करना होगा. जो जितना पुराना है, जितना वरिष्ठ है उसकी जिम्मेदारी उतनी ही अधिक होगी. सिर्फ़ एक - दो पोस्ट लिख कर अपनी पीडा व्यक्त कर आप अपने कर्तव्य की इतिश्री नही कर सकते. और नाही कोई तटस्थ रहकर कर सकता है क्योंकि :-

"जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध."

हमे बहुत सी बातों के बारे मे सोचना होगा जैसे:-

और क्या किया जाय कि इस तरह की बातों की पुनरावृति ना हो?
जो ब्लोगियर इस तरह की हरकतें करे उसके खिलाफ क्या कदम उठाएं जायं?
कैसे हम यंहा के वातावरण को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं?
आने वाले समय को हम क्या मुंह दिखायेंगे?


इन्ही सब बातों पर चर्चा के लिए मैंने ये शुरुआत करने की कोशिश की है इस अर्ज़ के साथ कि हर ब्लोगियर इस विषय को आगे बढ़ने के लिए अपने विचार एक पोस्ट के माध्यम से जरुर सब के सामने रखें.
आख़िर जब हम लोग घटिया विवाद के बिषवृक्ष को बढ़ने मे मददगार हो सकते है तो फ़िर ये तो हमारे अपने ब्लॉग जगत का मामला है. क्योंकि ये ब्लॉग जगत हम सबका है. इसे स्वच्छ और साफ रखना हम सबका कर्तव्य हो जाता है.


मुस्कुराते रहिये.

12 comments:

अनिल रघुराज said...

छोटी लकीर के आगे बडी लकीर खीच देने से छोटी लकीर महत्वहीन हो जाती है। जो लोग इन व्यक्ति-केंद्रत बहसों में लिप्त हैं, उन्हें रहने दीजिए। मसले बहुत से, सवाल बहुत से हैं, जिनको सुलझाना ज़रूरी है। मुझे लगता है कि अपनी सीमित ऊर्जा हम उन पर लगाएं तो ज्यादा सार्थक संवाद और काम होगा।

डॉ .अनुराग said...

अपना कार्य करते रहिये इन पर ध्यान न दे....वही सबसे उचित उपाय है...

नीरज गोस्वामी said...

मान्यवर
भाई अनुराग जी ने सो टके सी खालिस बात कह दी है...आप जितना इस पर सोच विचार करेंगे उतना ही ये लोग उछल कूद मचाएंगे....दो चार दस लोगों के घटिया पन पर उतर आने से क्या बाकि लोग लिखना पढ़ना बंद कर दें?
ब्लॉग में ही क्यों इस किसम के लोग सदियों से हमारे समाज में उभरते रहे हैं और अंत में हाशिये पर जाते रहे हैं...इतिहास पढ़ें हैं ना आप?
नीरज

Udan Tashtari said...

बिल्कुल सहमत हो रहा हूँ अनिल जी, अनुराग जी और नीरज भाई की टिप्पणी से और आपने जो मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी दी है, उससे भी. :)

कुश said...

स्वयं पर ध्यान देकर व्यर्थ के पचडे में ना पडे.. आप सबकी टिप्पणियो का यही सार नज़र आता है मुझे.. और यही ठीक भी है..

Gyan Dutt Pandey said...

ऊपर सभी एक मत में सही कह रहे है।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

एकनिष्ठ और नेक नीयत
कर्म के परिणाम सदैव श्रेष्ठ आते हैं.
ग़लत को ग़लत कहना
बेशक ठीक है
लेकिन ग़लत को सही
करने की कोशिश में गल जाना
जायज़ नहीं है......ये मेरी अपनी सोच है,
सब इत्तिफाक रखते हों ज़रूरी नहीं.
आप सीधी-सहज-सकारात्मक ख्यालों के
मोती लुटाते रहिए......!
सोना सतह पर नहीं मिलता !
टनों मिट्टी हटाओ तो तोला भर मिलता है
वह भी बगैर तराशा हुआ !......
अच्छी बातों के असर के लिए
धीरज से खुदाई करनी होती है
अपनी ही ज़मीन की !
क्या कहते हैं आप ?
=============================
शुभ भावनाओं सहित
डा.चंद्रकुमार जैन

Arvind Mishra said...

सुविचार ,धन्यवाद !

Shiv said...

अरे, तुम तो बड़े चिंतित दीख रहे हो....वाह. हम सोचते थे कि हम अकेले ही चिंतित हैं...हम तो चिंता की सारी हवा इकठ्ठा कर जेब के हवाले करने वाले थे. और तुम बीच में आकर बंटवारा करना चाहते हो....ठीक है, कर लेंगे.

वैसे, बन्धुवर दो ही लोग हैं इस ब्लॉग जगत में जो इसके भविष्य को लेकर चिंतित हैं. एक आप और दूसरे हम. बाकी लोग अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं और इसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं.

सही भी है. आख़िर हमारी हैसियत चिंतित होने तक ही है........:-)

mamta said...

अनुराग जी की बात बिल्कुल सही है।

रंजू भाटिया said...

मैं भी अनुराग जी की बात से सहमत हूँ ...इतने लोगो के विचार एक हो यह सम्भव नही है ...

Abhishek Ojha said...

अनुराग जी ही सही कह रहे हैं.