कल का दिन कोलकाता के इतिहास मे एक काला दिन गिना जायेगा. हर आम आदमी तो यही कह रहा है. वैसे इतिहास लिखने का काम ख़ास लोग करते हैं, सो ऐसा होगा या नहीं, कहना मुश्किल है. एक समूह ने नंदीग्राम के मुद्दे पर सभा कर शहर में विरोध प्रदर्शन करने का कार्यक्रम बनाया था. वैसे पिछले कुछ दिनों से विरोध प्रदर्शन जारी है. संगठनों ने विरोध के लिए अलग-अलग दिन मुक़र्रर कर रखे हैं. सबको चिंता है कि कहीं विरोध प्रदर्शन करने में वे पीछे नहीं रह जाएँ. विरोध करना कोई बुरी बात नहीं लेकिन विरोध करते हुए अपना स्वार्थ साधना बुरी बात जरूर है.
वैसे तो इस बार विरोध प्रदर्शन नंदीग्राम के मुद्दे पर था लेकिन नंदीग्राम के मुद्दे के साथ तसलीमा नसरीन का भी मुद्दा जुड़ गया. विरोध प्रदर्शन करने वाले कह रहे थे कि तसलीमा इस्लाम विरोधी हैं, ऐसे में उन्हें यहाँ रहने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए. लेकिन ये विरोध प्रदर्शन तक तो ठीक था लेकिन बाद में पता चला कि इसके बहाने योजनाबद्ध तरीके से पुलिस पर आक्रमण किया गया. लोगों का कहना है कि ये भीड़ चाहती थी कि पुलिस गोली चला दे.
यह तो घटना थी. दूसरी, इसके पीछे की कहानी है कि कैसे टी.वी. और सेल फ़ोन के द्वारा अफवाह फैलती है या फैलाई जाती है. टी.वी. पर न्यूज़ फ्लैश किया गया कि पार्क स्ट्रीट मे हंगामा शुरू हो गया है. ठीक उसी समय मेरे पिताजी पार्क स्ट्रीट मे थे. उनसे फ़ोन पर बात हुई तो उन्होंने बताया कि यंहा तो सब शांत ही लग रहा है. गाडियाँ आ जा रही है. बच्चे मैदान मे खेल रहे है. शाम ४ बजे मैं अपने डॉक्टर के चेंबर मे था. मेरे सेल पर किसी ने फोन कर के बताया कि मानिकतल्ला में भी काफ़ी भीड़ इकठ्ठी हो गई है शायद वंहा कोई शांति-जुलूस निकाला गया है. मैंने ये बात बगल मे बैठे एक सज्जन को बताई तो उन्होंने तुरंत अपना सेल फ़ोन उठाया और किसी को फ़ोन करते हुए सूचना दी; " अरे भाई, मानिकतल्ला और काकुड़गाछी मे भी झमेला शुरू हो गया है वंहा कर्फ्यू लगने वाला है."
अब जिन सज्जन ने ये सुना होगा उन्होंने कर्फ्यू को करीब तीन किलोमीटर आगे तक चलाकर उल्टाडांगा तक जरुर पहुँचा दिया होगा. एक सज्जन तो डॉक्टर साहब के आते ही उनसे कहने लगे; "सर हिंदू-मुस्लिम राइट शुरू हो गया है."
अब जरा तीसरा पक्ष भी देखिये- नेताओं का. उन्होंने नंदीग्राम के मुद्दे के साथ तसलीमा नसरीन का मुद्दा, जो कि पूरी तरह से एक धार्मिक मुद्दा है, को जोड़ कर किस तरह की दायित्व-हीनता का परिचय दिया है. ऐसे माहौल में कुछ भी हो सकता था. शायद साम्प्रदायिक दंगे भी. ये नेता भीड़ का चरित्र जानते - बुझते भी इस ढंग कि हरकते करते हैं कि इनकी गलतियों की सज़ा आम आदमी को झेलनी पड़ती है.
भीड़ की कोई शक्ल नही होती
भीड़ को कोई अक्ल नही होती
भीड़ का कोई धर्म नही होता
भीड़ का कोई ईमान नही होता
भीड़ तो जानती है सिर्फ़ आग
भीड़ तो करती है सब राख
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11 comments:
बड़ा हवा-हवाई है अफवाह का मनोविज्ञान। और बड़ा विस्फोटक भी। यह मानवीय सम्वेदना का मिसयूज करता है - बहुत कुछ मीडिया की खुराफात की तरह।
सही कह रहे हैं बन्धु...भीड़ इकठ्ठा करने वाले भीड़ से कुछ भी करवा सकते हैं, क्योंकि अक्सर भीड़ की अक्ल उसके हाथ और पाँव में चली जाती है. हाथ से पत्थर और बम फेंकती है और पाँव के सहारे भागती है.
बालकिशन जी नमस्कार,
जिन लोगों ने इतिहास लिखा है, वे अपने ही इतिहास के मुंह पर कालिख पोत रहे हैं। किसानों के हितैषी कहे जाने वाले लोग ही उनकी जमीन की खातिर उनकी खून पीने की कोशिश कर रह है। दूसरी ओर उनको बचाने क नाम पर दूसरे अपनी गोटी सेट करने में लगे हैं। दुखी हूं...
अफवाह हवा बनाती और बांकी काम भीड़ करती है.भीड़ ऎसी ही होती है.
लेकिन यह जानकर खुशी हुई कि आप हमारे प्रिय शहर कलकत्ता में रहते हैं.
केमोन आछेन?
चलिए यह तो मालूम चला कि आप कोलकाता मे हैं!!
अफ़वाहों को और अफ़वाह फ़ैलाने में सहयोग देने वालों को क्या कहा जाए समझ नही आता!!
लोचा यह है कि पढ़े लिखे लोगों की इसमे ज्यादा भूमिका रहती है!!
यही लिये मेराज फ़ैजाबादी कहते हैं नेता लोगन के लिये:
पहले पागल भीड़ में शोला बयानी बेचना
फिर जलते हुये शहरों में पानी बेचना।
बालकिशन जी
भीड़ का कोई धर्म नही होता
भीड़ का कोई ईमान नही होता.
भीड. दीन ईमान और मज़हब है
इसमें तन्हाइयों का डर नहौं होता
बहुत भली लगी रचना की सरलता
देवी
"कल का दिन कोलकाता के इतिहास मे एक काला दिन गिना जायेगा. "
एकदम नग्न सत्य !!
-- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??
मंजिल तुझे मिलेगा गर तू चलेगा तनहा
संग भीड़ के किसी ने कुछ भी ना पाया है
नीरज
भीड़ की कोई शक्ल नही होती
भीड़ को कोई अक्ल नही होती
भीड़ का कोई धर्म नही होता
भीड़ का कोई ईमान नही होता
भीड़ तो जानती है सिर्फ़ आग
भीड़ तो करती है सब राख
आज के संदर्भ में यह रचना पाश की रचनाओं से भी एक कदम आगे है। सच ही सही कविता है। बधाई।
भीड़ की कोई शक्ल नही होती
भीड़ को कोई अक्ल नही होती
भीड़ का कोई धर्म नही होता
भीड़ का कोई ईमान नही होता
भीड़ तो जानती है सिर्फ़ आग
भीड़ तो करती है सब राख
आज के संदर्भ में यह रचना पाश की रचनाओं से भी एक कदम आगे है। सच ही सही कविता है। बधाई।
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