ब्लॉग विचरण का काम भी बड़ा रिस्की है. देखिये न, कल भाई प्रेमेन्द्र (महाशक्ति) के ब्लॉग पर विचरण करते हुए महात्मा गाँधी के बारे मे उनकी टिपण्णी के दर्शन हुए. प्रमेन्द्र भाई ने एक जगह लिखा; "महात्मा गाँधी के बारे में अनुगूंज आयोजित करें, बड़ा मज़ा आएगा." मैं ठहरा ब्लॉग-गीरी में नया रंगरूट, सो मैंने अपने मन की बात वहाँ रखते हुए लिखा; "महात्मा गाँधी कोई मज़ा लेने की वस्तु नहीं हैं." मेरे हिसाब से मैंने अपने मन की बात लिख दी. लेकिन ये क्या. एक बेनामी भाई मेरे पीछे पड़ गए. अपनी बात को सही साबित करने के लिए इन बेनामी भाई ने आरकुट पर महात्मा के बारे में किए गए किसी सर्वेक्षण को दस्तावेज तक बता डाला. ब्लागिया नया हो, तो दो टिपण्णी उसे सुख दे सकती हैं, और एक छोटी सी प्रतिकूल टिपण्णी दुखी कर सकती है. दुःख से ग्रस्त मैं पूरा दिन सोचता रह गया कि प्रमेन्द्र भाई की पोस्ट पर टिपण्णी करके मैंने गलती कर दी.
कहते हैं अगर किसी बात के बारे में हम ज्यादा सोचें तो वो बात सपने में भी हमारा पीछा नहीं छोड़ती. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. सपने में महात्मा मिल गए. आपको झूठ लग रहा है? क्यों नहीं मिल सकते. अगर मुन्ना जैसे 'भाई' को साक्षात् मिल सकते हैं तो मुझे क्या सपने में भी नहीं मिल सकते. मुन्ना ने भाई-गीरी की फिर भी उन्हें महात्मा मिले. ख़ुद ही सोचिये, जब उन्हें महात्मा साक्षात मिल सकते हैं तो मुझे कम से सपने में तो मिल ही सकते हैं. मेरा अपराध तो केवल ब्लागिंग करने तक सीमित है. आप माने या न माने लेकिन मैं तो वही कहूँगा जो मैंने सपने में देखा.
हाँ, तो महात्मा मिल गए. छूटते ही बोले; "और बल किशन, कैसे हो? दिन कैसे कट रहे हैं?"
मैंने कहा; "बापू, दिन ठीक ही गुजर रहे हैं. अब तो शाम भी ठीक ही गुजरती है. जब से ब्लागिंग शुरू की है, दिन और शाम दोनों अच्छे से गुजर रहे हैं. दिन में टिपण्णी लिखते हैं और शाम को पोस्ट."
बापू ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा; "ब्लागिंग, ये क्या बला है?"
मैंने कहा; "पूछिए मत बापू, भयंकर कला है. ब्लागिंग में लोग जो सोचते हैं, वही लिखते हैं. वैसे कुछ-कुछ लोग सोचकर भी लिखते हैं."
"अच्छा, मतलब डायरी जैसा कुछ होगा"; बापू ने कहा।
"कुछ-कुछ वैसा ही है. डायरी जैसा ही. लेकिन डायरी में ज्यादातर लोग लिखने से पहले सोचते हैं. लेकिन ब्लॉग में पहले लिखते हैं, फिर सोचते हैं"; मैंने उन्हें बताया.
"अच्छा, क्या विषय होते हैं ब्लॉग में लिखने के?"; बापू ने जानना चाहा।
"बहुत सारे विषय हैं. कविता है, कविता की चिता है. गजल है, कहानी है. दादी है, नानी है. खाना है, साथ में अम्बानी का खजाना है. राजनीति है, कूटनीति है. माँ है, सिनेमा है. बहुत सारे विषय हैं. और तो और आपके ऊपर सर्वे भी एक विषय है"; मैंने उन्हें बताया.
"मेरे ऊपर सर्वे! ऐसा क्यों? वैसे किस बात पर सर्वे था ये?"; बापू ने जानकारी चाही।
"छोडिये न बापू. आप मुझसे मिले हैं तो कोई और बात करें, ब्लागिंग की बातें छोडें"; मैंने विनम्रता पूर्वक कहा.
"नहीं, फिर भी बताओ तो सही"; बापू ने कहा।
मैंने कहा; "तो सुनिए, सर्वे इस बात को लेकर था कि आपको राष्ट्रपिता का संबोधन किया जाना चाहिए या नहीं."
"इसमें सर्वे कराने की क्या बात है? वैसे भी मैंने ख़ुद को कभी राष्ट्रपिता नहीं माना. जो कुछ हुआ, मेरे जाने के बाद हुआ. इसमें बहस करने की जरूरत कहाँ आन पडी"; बापू ने कहा.
मैंने कहा; "ये तो आप न कहते हैं. इतनी बात अगर समझ आ जाए, तो समस्या ही कहाँ है."
बोले; "और क्या विषय चल रहे हैं अभी ब्लॉग की दुनिया में?"
मैंने बताया; "पिछले कई दिनों से बंदरों ने दिल्ली में जो हड़कंप मचाया, अभी वही सबसे हित विषय है."
"अच्छा, दिल्ली में बंदरों ने हड़कंप मचा रखा है. इन बंदरों में मेरे वे तीन बन्दर भी हैं क्या?"; बापू ने जानना चाहा.
मैंने कहा; "क्या बापू, आपका भोलापन भी अद्भुत है. आपने केवल तीन बन्दर दिए थे. बात पुरानी हो गई है. आज उन तीन बंदरों को कौन पूछता है. आज हमारे देश में बन्दर ही बन्दर ही बन्दर हैं. और आपको बताऊँ, तो दिल्ली के बंदरों की चर्चा केवल इसलिए हो रही है कि दिल्ली देश की राजधानी है. वरना देश के किस भाग में बन्दर नहीं हैं."
"तो दिल्ली के बंदरों से कौन ज्यादा परेशान है?"; बापू ने जानना चाहा.
मैंने कहा; "एक आदमी दूसरे आदमी से परेशान है. जाहिर है बंदरों से परेशानी भी बंदरों को ही हुई होगी. पूरी बात ही शायद इसीलिए हो रही है क्योंकि कुछ बंदरों को परेशानी हुई है. दिल्ली की मुख्यमंत्री कल परेशान दिख रही थीं. कह रही थीं कि....."
मैं उन्हें पूरी बात बताने वाला था कि नींद खुल गई. उठकर बैठ गया. सपना टूट गया. कोई बात नहीं, अगर अगली बार बापू मिले तो 'बंदरों' की कहानी उन्हें जरूर बताऊँगा.
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20 comments:
बन्धुवर,
ठीक कहा आपने कि 'मुन्ना जैसे भाई को महात्मा साक्षात् दर्शन दे सकते हैं तो आपको कम से कम सपने में तो मिल ही सकते हैं.'
महात्मा से मुलाक़ात में भी ब्लागिंग की बातें कर रहे हैं, मतलब आपका पूरा जीवन ही ब्लॉगमय हो चुका है. मैं तो कहता हूँ अगली बार बापू मिलें तो उन्हें कहियेगा कि एक ब्लॉग वे भी शुरू करें.
बापू के शत-शत नमन.
सर जी,
आप भी सपने देखते हैं, बधाई, मगर सपने में गांधी आते हैं, यह जानकर थांड़ा दुख हुआ। सपने देखों मगर गांधी के नहीं और बहुत हैं, जिन्हें सपने में देख कर भी
मनुष्य भव सागर से पार हो जाता है। लेकिन संतोष हुआ, मेरे दोस्त ने सपने देखने तो शुरु किए। मैं तुम्हारे इस विचार से सहमत नहीं हूं कि बापू मजे लेने की चीज नहीं हैं।
पूरा देश बापू से अथवा उसका नाम ले लेकर मजे ही तो ले रहा है। बापू ने जब अपने तीन बंदरों के बारे में पूछा था, तो हकीकत बता देते।
कहते तेरे तीनों बंदर ही तो नेता, अफसरशाह और मीडिया की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। आपका विचार मार्मिक हैं, बधाई।
अब देखते है कि प्रमेन्द्र को गाँधी जी सपने मे दिखते हैं कि नही :)
इस अधूरे सपने को पूरा देखने की कोशिश किजिए...सभी को लाभ मिलेगा।
महाशय, आप जैसे लोगों ने ही महात्मा गाँधी को पूजनीय बनाया है. एक इंसान की पूजा करना कहाँ तक जायज है. और आपने जिस सर्वे का जिक्र किया है, वह पूरी तरह से जायज सर्वे था. उसके निष्कर्षों का मजाक उडाना अपने ही देश में लोकतंत्र को खतरे में डालने वाली बात है.
बाल किशन जी
आप अब भी सपने देखते है, बधाई हो अपुन को तो अब सपने आते ही नहीं। नही नही ये बात सही नही जी आप सपने में गांधी जि को देख रहे है अरे वो पिक्चर तो पुरानी हो गयी अब कुछ नया देखिए, उनके तीन बंदरों ने तो इत्ते बंदर पैदा कर दिए, अब कुछ और हो जाए।
सही जा रहे हैं जी.
पहले लोग गांधी में सपने देखते थे अब सपने में गांधी देखने लगे हैं.
लगता है ब्लॉगरी आपको रास आने लगी है देखिये आपका भी पर्सोना बस चेंज ही होने वाला है. गाधी जी से शुरुआत हुई है...राखी,मीका,मल्लिका तक पहुंचेगी.
हमें तो आप बस सुनाते रहिये जी कि क्या क्या देखा.
बाल किशन आपने सही कहा था कि गांधीजी मजा लेने की वस्तु नहीं हैं।
इस सटायर के माध्यम से भी आपने उसे बखूबी स्पष्ट किया है।
बापू ने भी आज के युग की कल्पना नहीं की होगी। या पता नहीं....
आपने लिखा बहुत अच्छा है।
कलकत्ता के दो भाई टाइप लोगों की पोस्ट आज पढी और दोनों ही बन्दर को लेकर चिंतित. ये मामला क्या है? जानते हैं बन्दर के कारण दिल्ली में मदुराई के मदारियों की रोजी रोटी चल निकली है एक बन्दर को पकड़ने के लिए ४५० रुपये मिल रहे हैं ,एक आप है की उनपर ब्लॉग लिख और दूसरों के ब्लॉग पर टिप्पणियां लिख कर समय नष्ट कर रहे हैं.
आप ठीक से सोया कीजिये अभी आपकी उम्र सपने में गाँधी को देखने की नहीं है .
नीरज
मस्त!!
चलिए आप सपने मे मिल लिए गांधी जी से!!
हम तो मुन्ना भाई मीट्स हिंदी ब्लॉगर्स करवा चुके है दो किश्तों में!
बाल किशन जी मेरी दोनों कविताएँ पसंद करने के लिए धन्यवाद लेकिन ये ज्ञान भैया कौन हैं जो इलाहाबाद से मुंबई पहुँच गए?
एक और धन्यवाद बाल किशन भैया जो ज्ञान भैया का पता बता दिया। हम ठहरे नये नवाड़ी ब्लागर नए नए पाठ पढ़ रहे हैं। :)
जबरदस्त और सटीक !!
बाल किशन जी आप मेरे ब्लोग पर आते हैं और टिप्पणी भी दे जाते हैं, मुझे बहुत अच्छा लगता है, या यूं कहूं अब आप की टिप्पणी का इंतजार रहता है। आप का ई-मेल पता मालूम न होने के कारण यहीं धन्यवाद दे रही हूं , कृपया अपना ई-मेल पता बतायें।
गांधीजी को चाहे राष्टृपिता का दर्जा मिले या ना मिले लेकिन मजा लेने की चीज तो कतई नही हैं। सपने का वृतांत सही लिखा है।
पहली बार तुम्हारे ब्लाग तक पहुचने मे सफल हुआ
आप की लेखनी के कायल हो गये। बहुत खूब लिखते हो
आप मेरे ब्लाग पर आये अच्छा लगा, जल्द ही फिर से आपको देखना चाहूँगा। आज आपकी पोस्ट को 4 दिन बाद पढ़ रहा हूँ। मै भी कुछ लिखूँगा समय मिलने पर हाल में ही मैने अपने ब्लाग पर 8 माह पुरानी एक पोस्ट पर पोस्ट लिखी है, आपकी टिप्पणी नही मिली :(
बाल किशन जी धन्यवाद मुझ भी अब आप के आने का इंतजार रहता है। कृपया अपना ई-मेल पता दें , आप को और जान कर मुझे अच्छा लगेगा
बालकिशन जी सपना तो हमने भी देखा था पर आपसे थोडा हट कर। आपके ब्लाग को पढ कर अच्छा लगा। भविष्य में बहुत सी उम्मीदें हैं।
Sapne saakar ho sabhi ke gar
Khushnumaan aaj ye fizaan hoti.
Devi
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