Sunday, November 4, 2007

पत्रकारों को भी खुद से कुछ सवाल करने चाहिए

पत्रकारों ने ही नाम दिया था, 'बाहुबली'.आज जिन्हें पत्रकारों और टीवी चैनल ने 'बाहुबली' बना दिया है, उन्हें बचपन में हम गुंडा और लुच्चा जैसे नामों से जानते थे.बढ़िया पैकेजिंग करके चीजों को बेचने की ललक ने उन्हें नया नाम दे दिया, 'बाहुबली'.शाब्दिक अर्थ निकालें तो पता चलता है कि बाहुबली वह होता है जिसके बाहुओं में बल हो.लेकिन अच्छी पैकेजिंग के चक्कर में सब गड़बड़ हो गया.जिन्होंने पैकेजिंग की उन्होंने यह नहीं सोचा कि बंदूकों, राईफलों और चमचों के बल पर कोई बाहुबली कैसे बन सकता है.उसे तो सीधे और सटीक शब्दों में गुंडा कहा जाना चाहिए.जब बाहुबली नाम दिया था, तब इमानदारी नहीं दिखी, अब पिट गए तो इमानदारी का रोना रो रहे हैं.

सवाल पूछने ऐसे लोगों के पास क्यों जाते हैं ये पत्रकार?सवाल पूछने प्रशासन के पास क्यों नहीं जाते?प्रशासन से क्यों नहीं पूछते कि एक कत्ल हुआ है, उसके बारे में आपने क्या किया?गुंडे और लुच्चे तो लोकतंत्र का सहारा लेकर पत्रकारों को समझा देंगे कि 'हमें जनता ने वोट दिया है, इसलिए हम विधायक बने हैं.'इस बाहुबली को सवाल बर्दाश्त नहीं हुआ.कायरों को अक्सर सवाल बर्दाश्त नहीं होता और वे हिंसा पर उतर आते हैं.चुनावों के समय में जब इन्ही 'बाहुबलियों' के पीछे-पीछे कैमरा लेकर घूमते हैं तब ख्याल नहीं रहता कि हम जिसे टीवी पर दिखाने जा रहे हैं वह असल में एक अपराधी है,एक कायर है.

ऐसे लोगों को पत्रकारों द्वारा किए गए सवाल चुभेंगे ही.चुनावों से पहले ऐसे लोगों के कारनामें जनता के सामने लाने में हिचकते क्यों हैं ये पत्रकार?शायद उस समय ये सोचते हैं कि लोकतंत्र उफान पर है और हमने ख़ुद को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ घोषित कर रखा है.इसलिए हमारा कर्तव्य है कि जनता के बीच ऐसे लोगों की हिस्ट्री बोलकर हम लोकतंत्र के उफान को नुकशान न पहुचाएं.जिस विधायक ने पत्रकार की पिटाई की, क्या उसने पहले कभी अपराध नहीं किया?अगर जवाब हाँ में है, तो ये पत्रकार तब कहाँ थे?समय देखकर सच की आवाज बुलंद करने का ये नाटक कब तक चलायेंगे ये पत्रकार?एक पिट गया तो बाकी मुंह पीट कर लाल कर रहे हैं.कोई नीतिश कुमार को सड़क छाप मुख्यमंत्री बता रहा है तो कोई सरकार के कार्यों को सिरे से नकार रहा है.

मेरा सवाल इन बुद्धिजीवी पत्रकारों से है.अगर आप में से कोई पत्रकार कोई अपराध कर बैठे तो क्या उसके जिम्मेदार आपके चैनल के मालिक होंगे?मैं किसी तरह से इस गुंडे विधायक का पक्ष नहीं ले रहा, लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि पत्रकारों के अन्दर सच बोलने की हिम्मत हर मौसम में बरकरार रहनी चाहिए.ऐसा न हो कि पार्टी और राजनैतिक सोच देखकर कीडा अचानक काट ले और पत्रकार सच बोलना शुरू कर दे.

21 comments:

काकेश said...

सही खबर ली आपने पत्रकारों की.

रवीन्द्र प्रभात said...

आपने सही कहा है भाई ,पत्रकारों को भी इस दिशा में सोचना चाहिए , वैसे विधायक ने जो कुछ भी किया वह हमारे देश के लिए नया नही है , विहार के लिए टू यह आम वात है , किसी कवि ने कहा है की -
"स्व से ऊँचा चरित्र कठिन है ,
राजनीति में मित्र कठिन है ,
किसी जुवारी के अड्डे पर
वातावरण पवित्र कठिन है !"

Gyan Dutt Pandey said...

मित्र, हर प्रोफेशन के अपने खतरे हैं। लेथ मशीन पर काम करने वाले की उंगली या हांथ कट सकता है। फॉयर स्टेशन पर काम करने वाला जल सकता ऐ या ऊंचाई से गिर सकता है। स्टेशन मास्टर को पब्लिक पीट सकती है। उसी तरह पत्रकार इस तरह थुरा जा सकता है जैसे इस मामले में हुआ।

पर इसमें विकास जैसे मुद्दे को बीच में लाना और अण्ट-शण्ट बकना (आपके पास कलम या माइक है) क्या नैतिकता है?

Reyaz-ul-haque said...

apne badhiya kaha hai. sahmat hain.

han ek asahmati hai bhai. agar Nitish itnane achchhe hi hain to unke kareebi logon men Anant aur Lalan jaise lgo kaise hain? kya yah unaki anbhigyata hai?

darasal Nitish chamadi ke niche jaise hain, waise hi logon ko apne kareeb jama kar rakha hai.

kuchh aur baten hain, aage kahunga.

Rajesh Roshan said...

ये पोस्ट केवल लिखने के लिए लिखा गया है या इसमे कोई दम भी है...? जरा गौर करे...जब चुनाव होता है तो पत्रकार ये भी बताता है की फला किस मामले में आरोपी है कहा इस पर कौन से मुकदमे दर्ज हैं... लगता है आप इसे अपनी पोस्ट में नजर अंदाज कर गए.

एक बात और आपके ये कहना तो सच में बेतुका है की अपराध अगर कोई करे तो हम अपराधी के पास नही जाकर प्रशाशन से यह जाकर पूछे की उस अपराधी का आप लोग क्या कर रहे हैं, तब तो और जब वो जनता का नुमाईंन्दा हो.

पीटना का पिटाई खाना ये अच्छा सूचक नही है. हमे इस बात को समझना चाहिए. मीडिया ने तब भी मामले को उठाया था जब बिहार में पुलिस ने एक चोर को घसीटा था. कई मुद्दे पर मीडिया अच्छा काम करती है और कई कामो में ग़लत और यह मुझे ग़लत कुछ नही दिख रहा. ग़लत देखना है तो इस पोस्ट पर नजर डाले. हा! ये सब बातें मैंने एक पत्रकार होने के नाते नही एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते कही है http://rajeshroshan.com/2007/04/13/indian-news-channel-walo-ka-maansik-diwaliyapan/

बालकिशन said...

@रोशन जी -- जो घटना स्कूल टीचर उमा खुराना के साथ घटी उसपर भी कुछ कहें. इस तरह हम अगर पुरानी बातें खोदेंगे तो बहस संसद जैसी हो जायेगी. एक सच्ची बात जो कही आप दिल पर ले गए भाई. हमारा मकसद आपका दिल दुखाना नही था.

Sanjeet Tripathi said...

मीडिया/पत्रकार द्वारा ऐसे लोगों को अनावश्यक महिममंडित किए जाने वाली आपकी बात से सहमत हूं!!

Shiv said...

बाल किशन जी,

भइया दम वाली पोस्ट लिखो....केवल लिखने के लिए मत लिखो....दम वाली पोस्ट लिखने वालों से कुछ सीखिए...

दम न मिले तो आलूदम मिलाओ, लेकिन दम दिखना चाहिए.

Divine India said...

एकदम खालिस दमदार प्रश्न है भाई।

Reyaz-ul-haque said...

भाई, हमें खुशी है कि ऐसे विचार आप भी रखते हैं. मगर गुज़ारिश है कि आप पहले यह तय कर लीजिए कि आप बात नीतीश कुमार की कर रहे हैं कि लालू प्रसाद की. अगर लालू के ज़माने में जो हो रहा था, वही नीतीश के ज़माने में भी हो रहा है (जैसा कि आपने जवाब में यह प्रकारांतर से स्वीकारा भी ह) तो फिर हम लालू या नीतीश में चयन करने की ज़हमत ही क्यों उठायें? हम तो दोनों को ही खारिज़ करते हैं. फिर नीतीश उन्हीं प्रवृत्तियों के बावजूद अच्छे कैसे हो गये जिनके लिए लालू खराब या बदनाम थे?

[माफ़ कीजिएगा, आपकी पोस्ट में तो आपकी टिप्पणी दिख नहीं रही है, मगर मेरे मेल में जो टिप्पणियां आयीं हैं, जिनमें आपकी टिप्पणी भी शामिल है, उनके आधार पर जवाब दे रहा हूं. शुक्रिया. और आपके मेल का पता नहीं मिल रहा है, इसलिए इसे पोस्ट करना पडा़. आप चाहें तो इसे बाद में हटा दे सकते हैं.]

आनंद said...

"लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि पत्रकारों के अन्दर सच बोलने की हिम्मत हर मौसम में बरकरार रहनी चाहिए."

मैं आपकी बात से सहमत हूँ। यदि यह पत्रकार के पिटाई वाली घटना न होती तो न्‍यूज़ चैनल इसे प्रेस्‍टीज़ इशू नहीं बनाते और हत्‍या और बलात्‍कार जैसे आरोपी का काम बदस्‍तूर चल रहा होता। यह अधिक चिंता का विषय होना चाहिए। और बालकिशन जी, आपके लिखने में दम है, आप बिंदास लिखें।

Anita kumar said...

बाल किशन जी
आप को फ़िरंगी के पन्ने अच्छे लगे मुझे अच्छा लगा , कौशिhस करुंगी और पन्ने प्रस्तुत करने की। आप का इ-मेल पता नही मालूम इस लिए यहां लिख कर जा रही हूं , कृपया अपना इ-मेल पता दें।

नीरज गोस्वामी said...

बाहुबली नाम हम फ़िल्म ओमकारा मैं सुने पहलीबार जिसमें बड़ा गुंडा कौन है इस बात को लेकर लड़ाई झगडा खून खराबा दिखाया था. तभी समझ गए थे की बाहुबली और नेता बनना एक ही है.
बढिया लिखे हैं आप. वाह वाह .
नीरज

आलोक said...

प्रश्न चिह्न, अर्धविराम व पूर्णविराम के बाद एक खाली स्थान छोड़ें।

Anita kumar said...

Bal Krishan ji
aap mere blog per aate hain mujhe achcha lagta hai per aap ko dhanywaad kerne ke liye aap ka email id nahi hain , plz dein

रवीन्द्र प्रभात said...

तम से मुक्ति का पर्व दीपावली आपके पारिवारिक जीवन में शांति , सुख , समृद्धि का सृजन करे ,दीपावली की ढेर सारी बधाईयाँ !

राज यादव said...

बाल किशन जी दिवाली कि ढेरों सारी बधाई और शुभ कामना !

पुनीत ओमर said...

स्वयं पत्रकार होकर इतनी कोरी बात....??
सच है जी वाकई में.

Tarun said...

aapne bahut jabardast baat kahi hai, akhbar ke patrkaaron ko to nahi dekh pata, lekin jab in TV ke reporters ko sawal uthate dekta hoon to yehi lagta hai, ki kya bakvas s savaal pooch rahe hai.

aadhe reporters to mujhe lagta hai sirg film industry, cricket aur gali mohallon ki khabro ke liye bane hain.

रश्मि प्रभा... said...

आपकी रचना माँ-बाप बहुत ही अच्छी है.मैं उन विचारों का अभिवादन करती हूँ जो दिल की गहराई से और अनुभवी मस्तिष्क के निकलते हैं...कभी भी शब्द यूँ ही रूप नहीं लेते जब तक मन पर,जीवन पर गहरा असर न हो...

Batangad said...

सत्यवचन