हम आम लोग भी अजीब-अजीब बातों से परेशान रहते हैं। जिन बातों में हम अपनी रूचि नहीं रखते, समय आने से उन बातों में भी टांग अडाने से नहीं चूकते. अमिताभ बच्चन का किसान का स्टेटस हो या फिर देश की राजनीति, सलमान खान का हिरन प्यार हो, ये उनका किसी फिल्मी हसीना के लिए प्यार, हम सब बातों के बारे में बोलते हुए सुने और लिखते हुए पढे जाते हैं. वोट देने नहीं जायेंगे लेकिन देश की बिगड़ती राजनीति और राजनीति में बढ़ती हुई गुंडागर्दी के बारे बातें करेंगे. अगर ब्लॉग लिखते हैं तो उनके बारे में लिखेंगे भी.
अब देश के शेयर बाजार के बारे में लिख रहे हैं. एक तरफ़ तो ये रोना रोते हैं कि शेयर बाजार से आम आदमी को कुछ फायदा नहीं होता, ये सब तो बड़े लोगों के लिए हैं. लेकिन जब बाजार गिरता है, तो उसके बारे में लिखने से नहीं चूकते कि आम आदमी का पैसा बाजार में डूब गया. अरे भइया, जब आम आदमी शेयर बाजार में पैसा लगाता ही नहीं, तो फिर डूबने का सवाल कहाँ है. बाजार में गिरावट शुरू हुई नहीं कि डंडा लेकर पिल पड़े नेताओं के पीछे, सेबी के पीछे. क्यों तकलीफ होती है इतनी. ये क्या हमारा आम आदमी के लिए प्यार बोलता है? मुझे नहीं लगता.
शेयर बाजार के चलने का अपना तरीका हैं.और बाजार अपने हिसाब से चलेगा.पूरी दुनिया में ऐसा होता हैं, केवल भारत में नहीं.तो क्यों हम इसके बारे में रोना रोयें.हमें चीजों के बढ़ते दामों पर सरकार से जवाब माँगना चाहिए.हमें न्याय व्यवस्था पर सरकार से जवाब माँगना चाहिए.हमें बाक़ी के क्षेत्रों में सुधार पर सरकार से जवाब मांगना चाहिए.लेकिन हम हैं कि शेयर बाजार के गिरने पर दुखी हैं.हमारे अपने हित के बारे में हम नहीं सोचेंगे तो और कौन सोचेगा.एक बार सोचें और इसपर चिंता करते हुए बोलें और लिखें तो शायद ज्यादा अच्छा होगा.
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4 comments:
बिल्कुल टंच पकड़ा आपने। लोग समाजवाद-साम्यवाद का रोज जैकारा लगाते हैं। पर शेयर बाजार गिरे तो जार-जार रोते हैं जैसे कॉमन मैन पिस गया हो!
बहुत सही दिया भाई. वैसे यह भी पान की दुकान पर खड़े हो कर की जाने वाली चर्चा की तरह ही है.जिनको इससे कुछ लेना देना है, उनके पास चर्चा का समय कहाँ. यह तो बाकी के बचे लोग हैं जो स्यापा कर रहे हैं. :)
"लेकिन हम हैं कि शेयर बाजार के गिरने पर दुखी हैं"…। ठीक ही कहा है।
सही मुद्दे को पकड़ा आपने!
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