Wednesday, April 14, 2010

आयेंगे और रह जायेंगे

दिन की रोशनी की आवाज़ कानों में उड़ेलते
चेहरे पर फैले पसीने की सनसनाहट का शोर मचाते
आते होंगे किसी पर्वत की गहराई से
निकलकर किसी आसमान की तराई से
न जाने कौन सी गरम हवा वाली शहनाई से

तकरीरों की झंझट का कोई स्टीली-शीट ओढ़े हुए
फटे हुए कुर्ते का दाहिना हाथ मोड़े हुए
पेड़ की छाल और पत्तों की चादर संभालते हुए
किसी अमीर की क्रिकेट टीम की टोपियाँ उछालते हुए
न जाने कौन-कौन से मर्यादाओं से खून निकालते

अदालतों के दरवाजे पर हथौड़ा चलाते हुए
हड्डियों के बुखार से लोहा गलाते हुए
मौसम को अपने कांख में दबाये हुए
गले की फ़सान में अकुलाये हुए
आयेंगे और रह जायेंगे, छाएंगे
और वापस नहीं जायेंगे

Saturday, March 13, 2010

पत्थर पर भी नहीं.

किसी अन्धियरिया रात का सपना होगा
पसीने से नहाए अकबकाये से मुंह पर
खिंचती जायेगी आश्वासन की रेखा कि;
कंधे पर रखा हिमालय उतरेगा कभी

कटोरी भर आटा चेहरे पर पोत कर
दिखाएँगे, लाजवायेंगे सब को कि;
देखो खली पेट अब भर गया है
भूख का अजगर पाँव के रास्ते उतर गया है

किसी राजा की कहानी सुनेंगे
हिरन पर तीर चलाने वाला राजा
काट कर रखेगा दो फांक आम
जंगल के झरने पर लिखेगा अपना नाम

राजा का तो पानी पर लिखा नाम भी
सदियों रहता है, खिंचता है
उड़ता रहता आसमान में
और मेरा?
पत्थर पर भी नहीं.

Tuesday, February 2, 2010

ब्लॉगर का धाँसू हो बसंत

लगता है हिंदी ब्लागिंग जयराम 'आरोही' जी को भा गई है. इसीलिए तो उन्होंने इसी विषय पर एक और कविता लिख डाली. मैंने तो सुझाव दिया कि परमानेंट ब्लागिंग में ही आ जाइए. मेरी बात सुनकर बोले; "पहले पूरी तरह से स्योर हो जाएँ कि कोई मुकदमा नहीं दायर करेगा तब ही ब्लागिंग में आऊंगा."

खैर, आप कविता बांचिये.

भाई-चारा से चारा निकाल
फिर उसमें थोड़ी मिर्च डाल
अब खाकर थोड़ा मुंह बिचका
औ कर ले भाई से भिड़ंत
ब्लॉगर का धाँसू हो बसंत

कह ले चाहे परिवार इसे
चाहे कह रिश्तेदार इसे
जब बात लगे कोई भी बुरी
गाली-फक्कड़ दे दे तुरंत
ब्लॉगर का धाँसू हो बसंत

बेनामी का भी आप्शन था
तब इतना नहीं करप्शन था
मन की बातें लिख देता था
अब बड़े हुए हैं विष के दन्त
ब्लॉगर का धाँसू हो बसंत

विष-दन्त लिए घूमा करता
बस अपनों को चूमा करता
औरों को बस उल्टा-सीधा
दे-देकर अक्षर पर हलंत
ब्लॉगर का धाँसू हो बसंत

संगठन बना करता है वार
करता सम्मलेन बार-बार
अब आज बना है ऑक्टोपस
सूडें फैलाकर दिक्-दिगंत
ब्लॉगर का धाँसू हो बसंत

कितनी चर्चाएँ करता है
कितने पर्चे तू भरता है
चिरकुटई की भी कुछ हद है
न दिक्खे इसका कोई अंत
ब्लॉगर का धाँसू हो बसंत

इक मिनट लगेगा ठहर जरा
कुछ कम कर ले ये जहर जरा
ये ज़हर अगर बढ़ जाएगा
कर देगा ये तेरा ही अंत
ब्लॉगर का धाँसू हो बसंत

ये कोर्ट केस ये मार-धाड़
हो दिल्ली या हो मारवाड़
है नहीं मगर दिखता तो है
कल को न दिक्खेगा तू संत
ब्लॉगर का धाँसू हो बसंत

Monday, January 25, 2010

धन्य-धन्य कंसल्टिंग वाले ब्लॉगविधाता

प्रस्तुत है जयराम 'आरोही' की कविता जो उन्होंने कल ही ब्लागिंग जैसे नए विषय पर लिखी है. आप कविता बांचिये.


लिखने का न लूर था, ब्लागिंग होइ गई बंद
कहाँ से लाता आईडिया, लगवाता पैबंद
लगवाता पैबंद थाम के रखता इसको
समझ में आया यही यहाँ से जल्दी खिसको
मगर आईडिया लेकर फिर से वापस आया
जल्दी से न भूले ये ब्लागिंग की माया

आज दिया कंसल्टेंट ने एक आईडिया मस्त
बोला डर की बात क्या? क्यों होते हो पस्त
क्यों होते हो पस्त मानकर बात हमारी
कसो कमर उतरो रन में करके तैयारी
कंसल्टिंग लेकर फिर से तैयार हुआ हूँ
खेने हिंदी की नैया पतवार हुआ हूँ

अगर नहीं कुछ लिख सकते तो बड़े बनो तुम
जो छलके हर पग पर ऐसे घड़े बनो तुम
घड़े बनो और बांटो ब्लागिंग के रहस्य हो
फिरो रात-दिन दो कमेन्ट तुम हर सदस्य को
फिर देखो कैसे चलती तुम्हरी दूकान है
इसी नींव पर खड़े हुए कितने मकान हैं

ब्लागिंग का ये ज्ञान अगर न बाँट सको तुम
अगर न ऐसी हीरोगीरी छाँट सको तुम
छाँट सको न हीरोगीरी मान वचन को
सजा सको गर नहीं बड़ी सी एक किचेन को
धैर्य न खोवो एक आईडिया देता हूँ मैं
तुम जैसे ब्लॉगर की नैया खेता हूँ मैं

सुनो आईडिया देता हूँ ब्रह्मास्त्र मानकर
फूले नहीं समाओगे तुम इसे जानकर
इसे जानकर आगे बढ़ एक काम करो तुम
दे अवार्ड ब्लागिंग का अपना नाम करो तुम
टिक जाओगे ब्लाग-जगत भी हिल जाएगा
तुम्हें ब्लागपति का पद झट से मिल जाएगा

वापस आया हूँ अब ब्लागिंग कर पाऊंगा
दे अवार्ड फिर से अपना पग धर पाऊंगा
धर पाऊँगा पग फिर उसे जमकर अंगद जैसे
रख दूंगा फिर ऐसे की वो उखड़े कैसे
धन्य-धन्य कंसल्टिंग वाले ब्लॉगविधाता
तुम न होते आज भला मैं कहाँ को जाता

Tuesday, October 6, 2009

चिरकुटई पर प्रीमियम

प्रस्तुत है जयराम 'आरोही' की बिलकुल नई कविता चिरकुटई पर प्रीमियम. आप कविता पढिये.

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चिरकुट ऐक्ट्रेस
चिरकुट ऐक्टर
चिरकुट ऐक्ट्रेस की माँ
चिरकुट म्यूजिक डायरेक्टर

चिरकुट कांसेप्ट
चिरकुट इफेक्ट
चिरकुटई की हद
चिरकुटई बेहद

चिरकुटई वाला बिग बॉस
पब्लिक का अपेटाईट लॉस
चिरकुटई का रियलिटी शो
गन्दगी टीवी पर धो

कब कुछ करेंगे हम?
निकले चिरकुटई का दम?
कब तक मिलता रहेगा
चिरकुटई पर प्रीमियम?

Wednesday, September 16, 2009

श्री जयराम 'आरोही' की एक कविता "दुःख-सागर"

प्रस्तुत है श्री जयराम 'आरोही' की एक कविता "दुःख-सागर". आप कविता बांचिये.


कैसे बारिश लताडती है
सिकुड़े हुए पीले पत्तों को
कागज़ की नावों को
सड़े हुए गत्तों को

झारखंडी झुरमुटों का लतियाया जाना
संवार पायेगा जंगलों को?
खिसियाई बिल्ली रोक पाएगी
चूहों के दंगलों को?

टुटही छतरी ओढे बलेशर
कांख में पनही दबाये भुलेषर
खींचेंगे बिरहा का तान
करेंगे सच का संधान?

देखेंगे कोसी की बाढ़
वही सावन, वही असाढ़
कहाँ से लौकेगा सुख?
छोड़ कर जाएगा?
हिचकोले मारता दुःख?

दुनियाँ भर की अमीरी
सतनारायण की कथा वाली पंजीरी
न्याय की गुहार लगाता लतखोर
लात खाने के लिए तैयार
रोटी का चोर

जीने की लडियाहट
चार पैसे कमा लेने की चाहत
दबे हुए कन्धों का भार
कौन थामेगा?
कहाँ से आएगा?
कोई अवतार?

सुख का सरग-बिल-खोज
प्रयागराज की गंगा का ओज
कौन से जनम में मिलेगा
ई पाथर कब हिलेगा?

Wednesday, June 3, 2009

ओसोलन मोशावा के काव्य संग्रह 'मिराज एंड वाटर' से एक कविता

समय का इतना अभाव है कि ब्लॉग लिखने तक की फुर्सत नहीं है. काम से फुर्सत निकालता भी हूँ तो बीमार होने के लिए. बीच-बीच में मन खिन्न हो जाता है. मित्रों का ब्लॉग न पढता तो शायद बीमारी बनी रहती. काम करने की फुर्सत नहीं देती. ब्लॉग के अलावा साथी हैं, कुछ किताबें.

हाल ही में इथियोपिया के प्रसिद्द कवि ओसोलन मोशावा का काव्य संग्रह 'मिराज एंड वाटर' पढ़ रहा था. एक कविता पढी. अच्छी लगी. कोशिश की है, भावानुवाद करने की. पता नहीं कितना सफल रहा. लेकिन जो कुछ निकला, सोचा आपके साथ बाँट लूं.

कौन किसे बनाता है?
मनुष्य को व्यवस्था
या
व्यवस्था को मनुष्य?

कौन किसे चलाता है?
मनुष्य व्यवस्था को?
या
व्यवस्था मनुष्य को?

कौन किससे पाता है?
मनुष्य व्यवस्था से?
या
व्यवस्था मनुष्य से?

उत्तर मिलना कठिन है?
शायद हाँ

व्यवस्था को गढ़ लेने की चाहत
और
उससे होता मन आहत
जब उदास होता है
अन्दर से रोता है

तब सवाल पूछता है
मनुष्य से
सवाल पूछता है
व्यवस्था से

क्या मिला व्यवस्थित होकर?
एक व्यथित मन?
एक थका हुआ तन?
क्या यही है तुम्हारा धन?