प्रस्तुत है श्री जयराम 'आरोही' की एक कविता "दुःख-सागर". आप कविता बांचिये.
कैसे बारिश लताडती है
सिकुड़े हुए पीले पत्तों को
कागज़ की नावों को
सड़े हुए गत्तों को
झारखंडी झुरमुटों का लतियाया जाना
संवार पायेगा जंगलों को?
खिसियाई बिल्ली रोक पाएगी
चूहों के दंगलों को?
टुटही छतरी ओढे बलेशर
कांख में पनही दबाये भुलेषर
खींचेंगे बिरहा का तान
करेंगे सच का संधान?
देखेंगे कोसी की बाढ़
वही सावन, वही असाढ़
कहाँ से लौकेगा सुख?
छोड़ कर जाएगा?
हिचकोले मारता दुःख?
दुनियाँ भर की अमीरी
सतनारायण की कथा वाली पंजीरी
न्याय की गुहार लगाता लतखोर
लात खाने के लिए तैयार
रोटी का चोर
जीने की लडियाहट
चार पैसे कमा लेने की चाहत
दबे हुए कन्धों का भार
कौन थामेगा?
कहाँ से आएगा?
कोई अवतार?
सुख का सरग-बिल-खोज
प्रयागराज की गंगा का ओज
कौन से जनम में मिलेगा
ई पाथर कब हिलेगा?
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15 comments:
यह कविता ऐसी नहीं की पढ़कर तत्काल त्वरित टिपण्णी की जा सके.....
कुछ देर में आती हूँ ....
ठेठ क्षेत्रीयता का भाव लिए इस महान रचना के लिए आपका आभार :)
टुटही छतरी ओढे बलेशर
कांख में पनही दबाये भुलेषर
खींचेंगे बिरहा का तान
करेंगे सच का संधान?
अहो अहो...अहहहः....वा वा वा वा वा...शब्द चयन और भावः...बेमिसाल...अद्भुत...लाजवाब.
जय राम आरोही जी को नमन...लगता है उनके लेखन में निराला, पन्त दिनकर और अज्ञेय सभी बसते हैं...
बहुत ख़ुशी हुई बालकिशन जी अपने बीच फिर से पाकर..आप इस तरह गायब मत हुआ कीजिये...ब्लोगर्स, जिन्हें आप अपनी टिपण्णी से नवाजते हैं, के दिल इतने मजबूत नहीं होते की आपका विछोह लम्बे समय तक सह सकें...
आप चाहे जिस कवि की कविता हमें पढ़वाएं हम चूँ भी नहीं करेंगे लेकिन आप नियमित आते रहें...कृपा होगी...
नीरज
बाल किशन भाई, सबसे पहले तो उलाहना कि जीवन के छूहे दौड़ में आपने लेखन को बाय बाय कर रखा है......लेकिन फिर आपका धन्यवाद भी करना पड़ेगा कि आपने इतनी अच्छी कविता पढने का हमें सुअवसर दिया...
अब कविता की क्या कहूँ......इसके रचयिता को आभार तथा आगे भी इसी तरह लिखने का आग्रह पहुंचा दीजियेगा....!!!
आहा... धन्न भाग हमारे, जो आप यहां पधारे.. :)
अब निरन्तर लिखते रहियेगा..
नीरज जी कि बात पर द्यान दिया जाये..
"आप चाहे जिस कवि की कविता हमें पढ़वाएं हम चूँ भी नहीं करेंगे" ;-)
फ़िलहाल रंजनाजी की पहली टिप्पणी से सहमत!
रंजना जी की बात ही मेरी भी। हाँ शिल्प के स्तर पर नवीनता लिए है।
शिल्प और कंटेंट दोनों के स्तर पर बहुत सुंदर रचना।
बेजोड़ चित्र बनाती कविता। पढ़वाने का आभार।
ये जयराम "आरोही" जी वही हैं जो पलामू में रहते हैं? इन्हे तो झारखण्ड के राज्य कवि का दर्जा प्राप्त है।
बालकिशन जी, आप उन्हें जानते हैं तो आपके प्रति मेरे मन में आदर भाव बढ़ गया है - व्यक्ति को उसकी कम्पनी से जाना जाता है।
आप आरोही जी के परशुराम का समर्पण से भी कुछ कवितायें ब्लॉग पर रखिये न!
टुटही छतरी ओढ़िके बिरहा गायेंगे, अंय? लोहरदग्गा में कोइला बीनबे से फुरसत मिलि?
इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.
wava,wava,wava!
Puraskaar ke waqt Jayaram ji ke mukhar vindu se yah kavita suni thi. Adbhut kavita lagi thi mujhe.
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