मनोहर भइया मिल गए. मैंने पूछा क्या हाल-चाल है. उन्होंने मुझे देखा और बड़े जोरों की साँस खीची. मैंने सोचा कोई लोचा हो गया लगता है. कुछ तो बात है जो मनोहर भइया सरीखा मानव भी बोलने की जगह साँसे खींच रहा है. अब बताईये, ऐसे विचार क्यों नहीं आयेंगे. अरे जिस आदमी को लोगों ने 'बोलतू' उपनाम दे रखा है, वो अगर बोलने की जगह साँस खींचे तो ये भाव तो मन में आयेंगे ही.
मैंने उनसे फिर वही सवाल किया; "क्या हाल-चाल है?"
बोले; "बहुत ख़राब. बहुत ख़राब, मतलब बहुते ख़राब."
उनकी बात सुनकर मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ. मनोहर भइया का हाल भी ख़राब हो सकता है, इस बात पर विश्वास नहीं हुआ. फिर भी मैंने पूछा; "देखिये, हाल ख़राब है तो कोई बात नहीं. कभी-कभी ऐसा हो जाता है. लेकिन ये तो बताईये कि हुआ क्या है."
बोले; "आज शाम की बात है, हम छत पर खड़े होकर चिल्लाते रह गए कि हम पतित हैं. लेकिन कोई हमारी बात मानने के लिए तैयार नहीं है. अब तुम्ही बताओ, ऐसे में हाल ठीक कैसे रह सकता है."
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. कोई मनोहर भइया की बात पर विश्वास क्यों नहीं कर रहा. ऐसा क्यों हुआ. जब मनोहर भइया चिल्लाए तो आस-पास कितने आदमी थे. जितने होंगे, उनमें से कम से कम दो-चार तो इन्हें पतित मानते. वैसे भी आजतक ऐसा नहीं हुआ कि मनोहर भइया ने अपने बारे में जो कुछ कहा, उनके आस-पास के लोगों ने नहीं माना है. रेकॉर्ड है कि उन्होंने जब-जब जो-जो कहा है, लोगों ने माना है.
मुझे याद है, एक दिन उन्होंने कहा कि वे समाजवादी हैं, लोगों ने माना. एक दिन उन्होंने कहा कि लालू-मुलायम वगैरह समाजवादी नहीं रहे, लोगों ने माना. एक दिन उन्होंने कहा कि लालू, मुलायम वगैरह समाजवाद नहीं ला पायेंगे, वो भी लोगों ने माना. फिर एक दिन उन्होंने कहा कि देश में समाजवाद वही लायेंगे, तो भी लोगों ने माना. और तो और, उन्होंने जब ये फैसला किया कि अब ब्लॉग के जरिये ही समाजवाद लायेंगे तो भी लोगों ने उनकी बात मानी. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि लोगों ने उनकी इस बात को मानने से इनकार कर दिया कि वे पतित हैं.
ऐसा सोचते हुए मैंने उनसे पूछा; "लेकिन आप पतित कब हुए? और क्यों हुए?"
बोले; "सब हो रहे थे तो हम भी हो लिए. तीन-चार दिन से देख रहा था, पतित होने की होड़ लगी हुई थी. मैंने सोचा कहीं मैं पीछे न हो जाऊं, इसलिए तुरत-फुरत फैसला करके मैं भी पतित हो लिया."
मैंने पूछा; " लेकिन जब आपने अपने पतित होने की घोषणा की, उस समय कितने लोगों ने आपकी इस घोषणा को सुना?"
बोले; "क्या बाल किशन, किस तरह का सवाल है तुम्हारा. अरे भाई समाजवादी हूँ, जाहिर आस-पास पूरी भीड़ होगी. तुम्हें क्या लगा, आस-पास क्या दो-चार लोग थे? ऐसे विचार दिमाग से निकाल दो. कम से कम तीन-चार सौ लोगों की भीड़ थी. भाई, समाजवादी हूँ, मजाक है क्या?"
मुझे अपनी सोच पर अफसोस हुआ. मुझे लगा था सचमुच में दो-चार लोग ही होंगे. फिर मैंने उनसे कहा; "लेकिन ये बात तो वास्तव में ठीक नहीं हुई. इतने सारे लोगों ने आपको पतित नहीं माना, ये तो खतरे की घंटी है मनोहर भइया. कुछ कीजिये कि लोगों को विश्वास हो कि आप पतित हैं."
वे मेरी बात सुनकर सोचते रहे. फिर अचानक यूरेका यूरेका चिल्लाने लगे. मैंने पूछा; "क्या हुआ? कारण समझ में आया क्या?"
बोले; "धत् तेरी. मैं भी रह गया बेवकूफ ही. अभी मुझे समझ में आ गया कि लोग मुझे पतित क्यों नहीं समझ रहे."
मेरी उत्सुकता बढ़ गई. मैं तुरंत जानना चाहता था कि उनकी समझ में क्या आया. मैंने उनसे कहा; "बताईये, बताईये, ऐसा क्यों हुआ?"
बोले; "मैं कल ही कहीं पढ़ रहा था कि अब पतनशीलता का असली मतलब प्रगतिशीलता है. ठीक है, समझ में आ गया कि लोग मुझे पतनशील क्यों नहीं मान रहे. वे सोच रहे हैं कि पतनशील होकर मेरी गिनती तो प्रगतिशील लोगों में होने लगेगी. मैं भी रहा बौड़म का बौड़म. तुम्ही सोचो, कौन समाजवादी को प्रगतिशील देखना चाहेगा."
मैं उनकी बात सुनकर दंग रह गया. ये सोचते हुए कि लोग कैसे-कैसे दो विपरीत शब्दों के एक ही अर्थ साबित कर देते हैं. मैं उनसे ये कहते हुए चला आया कि; "लोग केवल बोलने से नहीं मानेगे. आप एक काम कीजिये. आप अपने ब्लॉग पर एक हलफनामा पोस्ट कर दीजिये कि आप सचमुच पतित हो गए हैं."
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5 comments:
हमको भी पतित होना है जी.
"अब पतनशीलता का असली मतलब प्रगतिशीलता है"
इधर कुछ दिनों से इतनी प्रगति और इतना पतन हो रहा है ब्लाग जगत का कि सब कुछ गड़बड़ झाला सा हो गया है. कुछ समझ भी नही आ रहा है कि क्या और कौन प्रगतिशील है और क्या कौन पतनशील है.
ऐसे मे क्या बस मनोहर भइया ही बाकि रह गए थे वो भी आ गए.
जय हो.
पतित हूं कहते हुए तीसरी मंजिल से क्यों नहीं कूदे मनोहर भइया ? भीड़ भी लगती, लोग इकट्ठा भी होते, होठों पर कान लाकर सुनने की कोशिश भी करते, टीवी कवरेज भी होता...कूदे काहे नहीं भइया?
मनोहर जी जायें जहां जा सकते हों।
"अब पतनशीलता का असली मतलब प्रगतिशीलता है" - परिभाषा स्पष्ट करने के लिये आप तो पतितेश्वर की उपाधि से अलंकृत किये जाते हैं बालकिशन जी!
बालकिशन भाई, अच्छा है् हमें भी कोई रास्ता सुझाओ कि मैं भी पतित हो जांउ, प्रगतिशील हो जांउ
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