आज स्टार न्यूज़ ने सुबह-सुबह ख़बर दी कि भगवान शिव की तीसरी आंख खुल चुकी है. इस बात पर चिंता भी जताई कि प्रलय आने का चांस है. भगवान शिव की तीसरी आँख खुलने को लेकर जब प्रोग्राम शुरू हुआ तो कमेंट्री के साथ-साथ कुछ भीषण दृश्य एक साथ मिलाकर दिखाए गए. इन दृश्यों में कहीं इमारतें गिर रही थी तो कहीं ज्वालामुखी फूट रहे थे. कहीं भूकंप आ रहा था तो कहीं सूनामी. इन दृश्यों को एक साथ मिक्स करके भयावह टेलीविजन प्रोग्राम तैयार किया गया था.
देखकर हम तो डर गए. सबसे पहला ख़याल जो दिमाग में आया वह ये था कि; 'तब तो ब्लॉग भी नहीं लिख पायेंगे क्योंकि प्रलय आने से ब्लॉग भी प्रलय का शिकार हो जायेगा.' जब प्रोग्राम कुछ मिनट चला तो पता चला कि ये भगवान की आंख नहीं बल्कि अन्तरिक्ष में करोड़ों कोस दूर किसी तारे के पैदा होने से जो तस्वीर उभरी है उसकी बात हो रही है. असल में तस्वीर में जो चित्र उभरा वह आँख के आकार का था और बीच में नेबूला हेलिक्स तारा देखा जा सकता था. स्पेस स्टेशन पर रखे गए कैमरे ने यह तस्वीर उतारी थी. ये भी पता चला कि ऐसा होता ही रहता है, मतलब तारे-सितारे बनते रहते हैं. ये कोई ने बात नहीं है. सुनकर थोड़ी राहत मिली. मन में लाऊडली खुश हो लिए. सबसे ज्यादा खुशी इस बात की थी कि; 'चिंता न करो, ब्लॉग लेखन चलेगा.'
प्रलय नहीं आएगी, जब इस बात से कन्फर्म हो लिए तो फिर बिना डरे हुए पूरा प्रोग्राम देखा. देखकर संतोष हुआ कि; 'चलो बहुत दिनों से कोई हारर फ़िल्म नहीं देखी थी सो आज देख ली. टेलीविजन पर बैकग्राऊंड से आती हुई डरावनी आवाज़ के प्रभाव को कम करने के लिए परदे पर एक न्यूज़ एंकर भी थी जो अपनी मीठी आवाज़ से परदे की पीछे से आ रही डरावनी आवाज़ के असर को कम कर रही थी. इस न्यूज़ एंकर की कृपा से डर कभी-कभी हँसी में कनवर्ट हो जा रहा था. कुल मिलाकर आनंद आया. आज की सुबह मनोरंजन के लिहाज से अच्छी रही.
इसी बात पर एक ताज़ी कविता पढिये. सूचना दी जाती है कि कविता मैंने ही लिखी है. ये किसी इंटरनेशनल कवि की कविता का अनुवाद नहीं है.
बदलते समय की निशानी तो देखो
बदलते समय की कहानी तो देखो
कि करतूत से अपनी कर दे चकित जो
ये इंसा की ताज़ी रवानी तो देखो
जला दे बुझा दे, बुझा कर जला दे
हो दीपक या बत्ती या दारू की भट्टी
मगर क्या करेंगे चला ही गया है
शरम का इन आंखों से पानी तो देखो
वही खुश जो ख़ुद को समझते हैं राजा
कभी न जगेंगे कि देखें किसी को
कि राखों पर हमरी मनाते हैं खुशियाँ
ये कैसी है इनकी शैतानी तो देखो
बस. और तुकबंदी नहीं कर पा रहा हूँ, इसलिए कविता यहीं ख़त्म.
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3 comments:
बाल किशन आपको पता न होगा; आपने मेरा हौसला बढ़ा दिया है। मैं यह पट्ट से समझ गया हूं आपकी कविता पढ़ कर - जब आप कवि बन सकते हैं तो हम भी बहुत बुरे नहीं हैं!
बहुत धन्यवाद यह अहसास कराने को! :-)
ह्म्म तो ज्ञान दद्दा अब कविताएं भी लिखेंगे, ओ भौजी जरा रूई वुई जुगाड़ लिए रहौ हां ;) ऊ का है ना कि ये कविताएं लिखेंगे तो पहली श्रोता तो आपै को तो बनना है न ;)
न रहेगा बांस(ब्लॉगर) न बजेगी बासुरी(ब्लॉग) एक दिन ये तो होना ही
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