क्या कहा, बड़े दिन के बाद आया. अरे भइया आया, यही क्या कम है. ओह, सॉरी सॉरी, आप अपने आने की बात कर रहे हैं. मैंने सोचा मेरे आने की. कोई बात नहीं. अब आए हैं तो एक ठू (थू नहीं) टिपण्णी भी दे दीजिये. अरे चिंता नहीं न करें, हम काल आपके ब्लागवा पर जाकर उतार आयेंगे. नहीं नहीं, ऐसा मत सोचिये, भड़ास नहीं, मैं टिपण्णी की बात कर रहा हूँ.
अब देखिये न, टिपण्णी की जरूरत तो आजकल उन्हें भी महसूस हो रही है. क्या? आपको मेरे कहने पर भरोसा नहीं है? इसका मतलब आपने हाल ही में उनकी तमाम पोस्ट नहीं देखी. होता है जी, होता है. ऐसा ही होता है. एक समय आता है जब उनको भी ख़ुद के ऊपर डाऊट हो जाता है और वे भी भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं. लेकिन भीड़ में पहुंचकर चिल्लाते भी हैं कि हे टुच्चों, मुझे अपना हिस्सा समझने की भूल मत करना. देख नहीं रहे, मेरी कमीज का रंग तुम लोगों से पूरी तरह से अलग है. दो-चार बार चिल्लायेंगे. लेकिन ज्यादा चिल्लाने पर भीड़ कमीज फाड़ डालेगी है. बस, थोड़े दिनों का बदलाव अपनी जगह पहुँच जायेगा. एक-दो महीने के बाद फिर से दोहराएंगे.
कन्फ्यूजन से उबरना, मतलब सोच का अंत. इसलिए, कन्फ्यूजन बना रहे, यही मूल है सारी बातों का. ब्लागिंग का भी. विचारधारा का भी. कहते हैं कन्फ्यूसियस के रास्ते पर चलते हैं, नहीं तो जीवन में पर्याप्त मात्रा में कन्फ्यूजन नहीं रहेगा.
इसी बात पर ये कविता पढिये. निकारागुआ के महान कवि स्टीवेन ह्वाईट की कविता है.
किसे कहें क्रांति?
उसे, जो तुम ले आए
या फिर उसे,
जो तुम नहीं ला सके
किसे कहें क्रांति?
उसे, जो तुम्हारी सोच में कैद है
या फिर उसे,
जो तुम्हारी करतूतों में दिखती है
किसे कहें क्रांति?
उसे, जिसको तुम कहते हो
या फिर उसे,
जो हमने समझी है
समय मिले तो सोचना
कर सको, तो फैसला करना और;
क्रांति ले आना
हम उसकी रक्षा करेंगे
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7 comments:
किसे कहें क्रांति?
उसे जिसमें दिलीप कुमार ने काम किया या उसे जिसमें बाबी देओल ने काम किया....:-)
देखबेन दादा,
आमि एसे टिप्पी टिप्पी कोरे जास्छी.आपनियो आसबेन..
अनोनिमस की बात का जबाब मांगा जाये ..कवि से.
खुशी हुई कि आपने लिखा तो सही!!
बाकी सब चलेगा कोई वान्दा नई ;)
ये टिप्पणी रख लो...और बाकी सब ठीक.
टिप्पीयाने ही आये है भैया...:)
काकेश>अनोनिमस की बात का जबाब मांगा जाये ..कवि से.
कौन कवि भाई?
बालकिशन जी
बहुत दिनों बाद दिखे हो भैय्या कहाँ थे? न अपने ब्लॉग पे और न ही औरन के ब्लॉग पे? अब नज़र आए भी हो तो हाथ में एक पोस्ट का कटोरा और टिपण्णी की भीख मांगते हुए...भाई जो तुम्हारी पोस्ट पे न टिपियाये समझो वो ब्लोगेर नहीं...खारिज करदो उसे..अब विदेश के अनजान किंतु शशक्त कवियों की कविता क्या हर कहीं पढने को मिला करती है...?आप तो भाई विलक्षण प्रतिभा के धनि हैं...और प्रतिभा की पहचान करने वाले देश में कितने हैं ये आप से क्या छुपा है?लिखते रहिये...बस.
नीरज
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