पास मेरे जो तुम आओ तो कोई बात बने
पास आकर दूर ना जाओ तो कोई बात बने
नफरत से प्यार क्यों करते हो इस कदर
प्यार से प्यार करो तो कोई बात बने
उम्र सारी तमाम कि सौदेबाजी मे अब तो
एक रिश्ता कायम करो तो कोई बात बने
गिरे हुए पर तो हँसते है दुनिया मे सभी
गिरतों को तुम संभालो तो कोई बात बने
रोने से कंहा हासिल किसी को कुछ होता है
जरा किसी के साथ मुस्कुराओ तो कोई बात बने.
ख्वाबों कि राख पर बैठ हाथ मलने से क्या हासिल
इक नया ख्वाब किसी आँख मे तुम सजाओ तो कोई बात बने.
जिन घरो मे सदियों से छाया है अँधेरा वंहा
एक दीपक तुम जलाओ तो कोई बात बने.
हिंसा गर सारा जमाना तुमसे करे तो क्या
अहिंसा तुम बापू सी करो तो कोई बात बने.
13 comments:
भाई बालकिशन जी,
बहुत खूब लिखा है आपने....वाह!
आपका लेखन वाकई बहुत बढ़िया है...बाकी तकनीक के बारे में तो नीरज भइया कहेंगे...
जय हो बालकिशन! नीरज जी की टक्कर की दुकान बन रही है! :-)
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खैर मजाक एक तरफ, कविता बहुत अच्छी लगी। इसलिये कि भाव बड़े सात्विक हैं और पूरी तरह समझ में आते हैं। अच्छी कविता पेश करने की बधाई।
बहुत अच्छा लिखा है।
अहिंसा तुम बापू सी करो
में दम है। किन्तु मै इस बात से सहमत नही हूँ।
बहुत भावभीनी रचना.... एक एक पंक्ति बोलती सी... बस अंत की दो पंक्तियाँ ... उन्हें लेकर एक और कविता का जन्म हो सकता है... यह मेरा विचार है क्योंकि हर पाठक अपने तरीके से भाव ग्रहण करता है...
dil ko chu gayi apki kavita...
कविता के भाव बहुत अच्छे है।
उम्मीद है की आगे भी ऐसी ही अच्छी कवितायें पढ़ने को मिलेंगी।
बाल किशन जी साधुवाद.. हम दोनों के पास उम्मीदें हैं,
ये अच्छा कहा है की "इक नया ख्वाब किसी आँख मे तुम सजाओ तो कोई बात बने. "
अपनी आखों में ख्वाब सजाने को तो हर कोई कहता है. अच्छा है.....
क्या ज्ञान भईया आप भी कैसी बात करते हैं? भला हम सी राई की बाल किशन जी के पहाड़ से कैसी टक्कर?हम तो आते ही कहाँ हैं उनके रास्ते में, पहले से ही हट जाते हैं. पहले जनाब गध्य लिखते थे अब ग़ज़ल लिखने लगे हैं. क्या करें अब हमारे पास बोरिया बिस्तर बाँधने के अलावा और रास्ता ही क्या बचा है?बड़े बेआबरू हो कर ब्लोगिंग से निकलने से अच्छा है की समय रहते इज्ज़त से रवाना हो जायें.
बहुत बढ़िया लिखे है बाल किशन जी महाराज जहाँ तक ग़ज़ल लेखन के तकनिकी पक्ष का सवाल है तो उसमें अभी हाथ साफ करने की ज़रूरत है ऐसा मुझे लगता है, हालांकि मैं ख़ुद अभी क ख ग सीख रहा हूँ सुबीर जी से.
नीरज
सुंदर!!
पसंद आई रचना।
बहुत सुंदर रचना. बाल किशन जी आपही के नाम का मेरा एक और मित्र भी है और तो और आपका फोटो भी कुछ कुछ उससे मिलता है.
@कीर्तिश भट्ट
अरे सर जरा ध्यान दीजिये कंही वो मैं ही तो नही.
@ नीरज भइया
वड्डे वाप्पाजी सिखलाना तो आपको पड़ेगा ही.
भला बाल-सुलभ हठ के आगे किसी की कंही चली है जो आपकी चलेगी.
@ज्ञान भइया
आप भी हमको झाड़ पे चढाने मी लगे है. शायद आपको पता नही हा नही जानते है चढ़ना. गिर-गिरा जायेंगे तो हाथ पैर तुड़वा बैठेंगे और आपका नाम ख़राब होगा सो अलग.
ख्वाबों कि राख पर बैठ हाथ मलने से क्या हासिल
इक नया ख्वाब किसी आँख मे तुम सजाओ तो कोई बात बने..
बहुत खूब जनाब...
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