कौन सा शे'र सुनाऊं मैं तुम्हे, सोचता हूँ
नया मुब्हम है बहुत और पुराना मुश्किल (उलझा हुआ)
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ऊँची इमारतों से मकां मेरा घिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
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हमको उठना तो मुहं अंधेरे था
लेकिन इक ख्वाब हमको घेरे था
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सब का खुशी से फासला एक कदम है
हर घर मे बस एक ही कमरा कम है
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इस शहर में जीने के अंदाज निराले हैं
होठों पर लतीफे हैं आवाज में छाले हैं
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सब हवाएं ले गया मेरे समंदर की कोई
और मुझको एक कश्ती बादबानी दे गया
ये तीन शेर बहुत ही खास और मेरे दिल के करीब हैं.
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आज की दुनिया मे जीने का करीना समझो (तरीका)
जो मिले प्यार से उन लोगों को जीना समझो (सीढ़ी)
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वह शक्ल पिघली तो हर शय में ढल गई जैसे
अजीब बात हुई उसे भुलाने में
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अपनी वजहें-बरबादी सुनिए तो मजे की है
जिंदगी से यूं खेले जैसे दूसरे की है
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अगली पोस्ट मे खुलेगा रहस्य मेरे ब्लॉग पर पोस्ट कैसे आई.
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17 comments:
वाह! वाह!
बहुत अच्छे शेर चुन लाये हो भाई..जावेद अख्तर साहब का लिखा हुआ वैसे भी शानदार रहता है. बहुत सुंदर प्रस्तुति...
बहुत सुंदर अशार,
पढ़कर मन प्रसन्न हो गया |
तब हम ब्लॉग पर वक्त चुराकर लिखते थे,
अब लिखते हैं जब भी फुरसत होती है | :-)
जावेद अख्तर जी क्षमा याचना सहित, उनका शेर था:
तब हम दोनों वक्त चुरा कर मिलते थे,
अब मिलते हैं जब भी फुरसत होती है |
चलिए, राज की बात का भी इन्तजार रहेगा |
एक सवाल जावेद साब से बामुलाहिजा....
कम्युनिज्म और जेपी सीमेंट के रीयलिटी शो में क्या फर्क है?
लाहौल.....
बंधू वर
जावेद साहेब को तो बरसों से पढ़ते आ रहे हैं...उनके शेर कभी दिमाग में तो कभी जबान पर घूमते रहते हैं...लेकिन जयादा दिलचस्पी अब आप के रहस्य से परदा उठने में है.
नीरज
अजी फर्क कैसा...कम्यूनिज्म का अपना रियल्टी शो है...और; "कम्यूनिज्म के इस रियलटी शो के प्रायोजक हैं, जेपी समेंट........."
वैसे आपके अल्फाज कुछ दुरुस्त नहीं लग रहे. एहसास हो रहा है जैसे आपको हमसे शिकायत है. अब मेरी एक नज्म पढिये, कम्यूनिज्म और जेपी समेंट के बारे में..
कम्यूनिज्म है कम्यूनिस्ट है
कम्यूनिस्ट है तो शायर है
शायर है तो शेर है
शेर है तो शिकारी है
शिकारी है तो बंदूक है
बंदूक है तो कम्यूनिस्ट है
क्योंकि
बिना बंदूक के
कम्यूनिस्ट का टिकना मुमकिन नहीं
waah! ye sher to bade bhaye hame.. shukriya aapka javed sahab ke sher yaha share karne ke liye
सब का खुशी से फासला एक कदम है
हर बस मे बस एक ही कमरा कम है
यह शेर जावेद साहब का मुझे बेहद पसंद है ..शुक्रिया यहाँ शेयर करने के लिए
बहुत खूब!
शुक्रिया।
बेहतरीन शायरी।
tarksh padhiyega unka likha hua....aapko aor kai nazme milengi ...jo unke filmi rup se alag hai.
वाह बेनाम जी, जवाब के लिये "जावेद" को लिखना पड़ा!
और क्या खूब लिखा है "जावेद" ने! :)
वाह-वाह !
इरशाद-इरशाद !
आपकी अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा। अरे रहस्य जो खुलना है। :)
बढ़िया मोती चुनकर लाये हैं जावेद साहब की बगिया से:
इस शहर में जीने के अंदाज निराले हैं
होठों पर लतीफे हैं आवाज में छाले हैं
-मजा आ गया. और लाते रहिये.
बालकिशन जी ,
जो शेर आपके दिल के क़रीब हैं
यकीन मानिये हमें भी क़रीब लगे.
और फिर जावेद साहब का
अंदाज़ भी तो खूब है न !
....और हाँ सिर्फ़ एक कमरे की कमी
और अपने हिस्से की धूप
वाली बात .... ! पूछिये मत....
बेहद मुक़म्मल है !......शुक्रिया
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आपका
चंद्रकुमार
जावेद साहब की लेखनी का सुंदर गुलदस्ता पेश किया है आपने !
जावेद साहब सफल पटकथा लेखक और शायर भी हैँ -- बढिया शेर !
भाई, जावेद साब के ये अश'आर पढ़वाने के लिए धन्यवाद!
जावेद साब ने तारीख २०-८-९६ को अपने जुहू स्थित अपार्टमेंट में 'तरकश' मुझे अपने हाथों से सप्रेम भेंट लिख कर दिया था. वह प्रति मेरे लिए अमूल्य है.
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