Sunday, June 1, 2008

क्या हम इनसे कुछ सीख सकते हैं?

ये सच्ची घटना है कुछ बच्चों के बारे में जिन्हें हम मानसिक रूप से विकलांग कहते है.
हेदाराबाद मे ये एक खेल का मैदान था.
National Institute of mental Health ने एक दौड़ प्रतियोगिता आयोजित की थी.

आठ बच्चे दौड़ प्रतियोगिता मे भाग लेने के लिए ट्रेक पर खड़े थे.

* Ready! * Steady! * Bang!!!

जैसे ही बंदूक गरजी आठों ने दौड़ना शुरू किया.
मुश्किल से दस या पन्द्रह कदम दौड़ते ही एक छोटी बच्ची फिसली और गिर पड़ी. पाँव और हाथ छिल गए और वो दर्द से रोने लगी.
जब दुसरे सात बच्चों ने ये देखा और उसका रोने सुना वे रुक गए, एक पल को थमे और पीछे मुड़ गए और फ़िर दौड़ के उस छोटी बच्ची के पास पंहुचे.
फ़िर जो हुआ वो चमत्कार नहीं था पर..........
एक थोडी बड़ी लड़की ने उसे उठाया, सहलाया और एक पप्पी दी. फ़िर पूछा; "अब दर्द कुछ कम हुआ ना."
दो बच्चों ने उस छोटी बच्ची को मजबूती से पकड़ा, सातों ने एक दुसरे का हाथ पकड़कर एक साथ कदम बढ़ाते दौड़ना शुरू किया और एक साथ ही विजय रेखा पार की.

सारे ऑफिसर अवाक थे! दर्शको की तालियों की गुंज से मैदान भर गया.
कई आंखों मे आंसू थे.
शायद भगवान की भी आँखे भींगी थी.

क्या हम कुछ सीख सकते हैं इनसे.

समानता?
मानवता?
एकजुटता?

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आभार
एस. के. मिश्रा जी (अपने ब्लॉग वाले नहीं) का.
जिन्होंने मेल द्वारा मुझे इस सच्ची घटना की जानकारी दी.

20 comments:

Arvind Mishra said...

हृदयस्पर्शी !

Gyan Dutt Pandey said...

आपाधापी और किसी भी कीमत पर सफलता के युग में नैसर्गिक मानवीय मूल्यों को रेखान्कित करती यह पोस्ट बहुत प्रिय लगी। धन्यवाद।

Udan Tashtari said...

हमारी आँखे भींगी हैं अभी. बहुत उम्दा पोस्ट. अति आभार इसका.

Rajesh Roshan said...

बेहद सुंदर, मार्मिक पोस्ट

रंजू भाटिया said...

दिल को छूने वाली पोस्ट है यह .और सीखने के लिए एक सबक .जो आज की ज़िंदगी में कहीं भूलते जा रहे हैं .

अनूप शुक्ल said...

भगवान का क्या कहें , हमारी आंख गीली हैं।

संजय बेंगाणी said...

इंसान होने का गर्व हो रहा है.

Shiv said...

बहुत बढ़िया पोस्ट है भाई...सीखना चाहें तो जरूर सीख सकते हैं. शर्त केवल एक ही है. किसी भी कीमत पर आगे जाने की बात मन से निकाल कर कहीं रख देनी पड़ेगी.

Sanjeet Tripathi said...

पहली बार इसे पढ़ा था तब भी आंखें नम हुई थी और आज भी।

अगर हम सीखना चाहें तब ही सीखेंगे!

Rachna Singh said...

adbhut

Arun Arora said...

आज का सबसे शानदार पाठ

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

मर्मस्पर्शी और दुर्लभ उदाहरण! आज के दौर में बच्चे ही ऐसा कर सकते हैं.

Anonymous said...

कई महीने पहले मैंने "अखंड ज्योति " नामक पत्रिका में ऐसी ही एक "सीखने योग्य बातें " पढ़ा था जिसका शीर्षक था "जीत " ....
अन्तिम पंक्ति थी ...."उन विकलांगों ने ऐसे प्रतियोगिता जीती जिसे सामान्य व्यक्ति कभी नहीं जीत सकता "...कितना गहरा व्यंग्य है ....सामान्य लोगों के लिए !!

आपने इसे अलग अभिव्यक्ति दी है .....पढ़कर ख़ुशी हुई ....

मीनाक्षी said...

bhav bheeni post padkar payare bachhoin par garv hua aur khushi se aankhain bheeg gayee..

समयचक्र said...

पोस्ट बहुत उम्दा लगी,धन्यवाद.

डॉ .अनुराग said...

आज के जीवन मे केवल बच्चे ही ऐसे है जो सच्चे है ओर हमे सिखा सकते है........

आलोक साहिल said...

कुछ कहूँगा तो लोग बुरा मन जायेंगे,ये सच है कि इस घटना को जानकर जो अनुभूति हो रही है उसे बयां नहीं किया जा सकता.
पर हकीकत ये है कि शायद जब वही बच्चे दिमाग वाले अर्थात आम मानव होते तो शायद ये पोस्ट लिखने की नौबत ही नहीं आती,तो बेंगानी सर मैं गौरवान्वित नहीं वरन शर्मसार हूँ कि मैं मानसिक तौर पर संतुलित क्यों हूँ,यूं कहें मैं मानव ही क्यों हूँ?
आलोक सिंह "साहिल"

Poonam Agrawal said...

Atyant marmik ..Dil ko choo lene valee ghatnaa hai ..

Ila's world, in and out said...

अक्सर बच्चे ही हम बडों को जीवन के बडे बडे पाथ पढा देते हैं.हृदयस्पर्शी रचना के लिये आपको धन्यवाद.

महेन said...

मित्र, ऐसी घटनाएं सुनकर मैं बोलना भूल जाता हूँ, टिप्पणी करना तो बहुत साहस की बात है। सपना देखता हूँ कि हम कुछ सीखेंगे। शायद हमें उन बच्चों को अपना अध्यापक बना लेना चाहिये।
अनेकानेक धन्यवाद।