Sunday, February 24, 2008

जवानी ओ दीवानी तू जिन्दाबाद.

३५-४० के आस-पास की उम्र भी एक खतरनाक पड़ाव हैं. उम्र के इस पड़ाव पर बहुत कुछ अधूरा सा लगता है. ये भी महसूस होता है कि बहुत कुछ पीछे छुटता जा रहा है. दिमाग अपने आप को अभी भी अपने आप को बुजुर्गों की श्रेणी मे मान लेने के लिए तैयार नहीं हैं. जो कि शायद सही भी है. लेकिन शरीर भी युवाओं का साथ देने से कतराने लगता है. ऊपर से अगर स्लिपडिस्क और स्पोंडेलाइसिस जैसी बीमारियों से दोस्ती हो जाय तो क्रियाकलापों मे जो लिमिटेशंश आजाती है वो आपकी मनःस्थिति को भी प्रभावित करती हैं. लेकिन कभी कभी कुछ ऐसे वाकयात हो जाते है जो बहुत सी दुविधा दूर करने मे मददगार साबित होतें है.

आज सुबह की ही बात है फैक्ट्री आते समय जब ऑटो-रिक्शा मे बैठा तो मेरे पहले से ४ लड़के-लड़कियां बैठे थे. उम्र सबकी लगभग १८ से २३ साल. तकरीबन १० मिनट का सफर था उस ऑटो मे हम सबका. उस दरमियान मेरा ध्यान अनायास ही उनकी बात- चित पर चला गया. मैंने जो कुछ सुना, महसूस किया वो कुछ इस प्रकार था.

बात-बात पर जोरदार हँसी जैसे सब कुछ उनके हंसने के लिए ही बना है या हो रहा है. जोर-जोर से बातें कर रहे थे सब जैसे उनके अलावा आस-पास कोई नहीं हो. सब के सब आपस मे ही खोये हुए, अपने चारो तरफ़ फैली दुनिया से बिल्कुल अनजान और बेखबर. मैंने अचानक एक बार उनकी तरफ़ उत्सुकतावश नज़र घुमा कर देखा तो अचानक ऑटो मे मरघट सी शान्ति छा गई. मुझे भी अपराध-बोध होने लगा कि क्यों मैंने इस ढंग से देखा उन्हें. फ़िर १-२ मिनट बाद सब कुछ पूर्ववत् चलने लगा. उनके इस अपार उर्जा के स्रोत के प्रति जो उन्हें इस कदर जीवंत रखती है, मुझे जिज्ञासा होने लगी.

इन १०-१२ मिनटों के दौरान हर विषय पर बातें की उन्होंने क्रिकेट, फिल्में, अपनी पढ़ाई के विषय आदि-आदि. लेकिन वो जोर-जोर से हँसना और ऊँची आवाज के साथ सब कुछ चलता रहा. कोई भी इस प्रकार उन लोगों को देखे तो ये सोच सकता है कि ये बड़े अभद्र बच्चे है. कोई उनकी प्रगतिशीलता पर सवाल खड़े कर सकता था कोई उनको पतनशील बता सकता था.

पर उनकी ये हरकतें मुझे १०-१५ साल पीछे ले गई. अचानक लगने लगा जैसे मैं भी उन चारों मे से ही हूँ. अपने समय की बहुत सी बातें याद आ गई. कैसे सब दोस्त यार मिलकर इसी तरह मस्ती करते थे. बिना मतलब के घंटों रास्तों पर घूमना, बात-बात पर खिलखिलाकर हँसना. स्कूल, कॉलेज के समय की गई बदमाशियां, शरारतें सब आंखो के सामने नाचने लगी.

सहसा ही रहस्य से परदा उठने लगा वही उर्जा मैं अपने आप मे भी महसूस करने लगा. लगा की सारी दुनिया को मुट्ठी मे बंद कर सकता हूँ. हौसला इस कदर बढ़ा हुआ लगता था की उस घड़ी दुनिया मे मेरे लिए कुछ भी असंभव नहीं है. ये उर्जा, ये हौसला प्रकृति का एक नायब तोहफा है युवाओं को, जवानों को और उनकी जवानी को.

मुझे राजेश खन्ना साहब की फ़िल्म का ये गाना याद आने लगा जो उन्होंने जूनियर महमूद के साथ गाया था.

" तेरे ही तो सर पे मुहब्बत का ताज है
जवानी ओ दीवानी तू जिन्दाबाद."

10 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

बालकिशन जी। बहुत जल्दी बुढ़ाना शुरु कर दिया आप ने। आप की उमर तो पता नहीं, पर मुझ से कम से कम 10 से 12 साल छोटे तो होंगे ही। अभी तो मैं ही इन जवानों के साथ उन्हीं की तरह रिएक्ट करता हूँ। ये जवान ही तो हमारा भविष्य और पुनर्जन्म हैं। आप बस उन की उम्र में पहुँच जाइए और उन का साथ दीजिए। फिर देखिए वे कितना आनंद देते हैं।

नीरज गोस्वामी said...

मान्यवर
हंसने और खुश रहने के लिए उम्र आड़े नहीं आती...हम मानसिक तौर पर बूड़े होते हैं..आप अपने हम उम्रों में उठाना बैठना छोडें और नौजवानों को दोस्त बनायें फ़िर देखें बात बात पे हँसी आती है या नहीं...आजमाया हुआ नुस्खा बता रहें हैं आप को... यकीन न हो हो अपने शिव भैय्या से पूछ लें.
नीरज

Gyan Dutt Pandey said...

अरे बुढ़ायें आप के दुश्मन। आप तो टनाटन लगते हैं। बम्बई में होते तो या तो हीरो बनते छरहरी हीरोइन के बगलमें या राज ठाकरे से पन्जा लड़ाते!

mamta said...

हंसने और खुश रहने के लिए उम्र कब से आड़े आने लगी ।

Shiv Kumar Mishra said...

अरे भाई कौन हो गया पैंतीस-चालीस का? किसकी बात कर रहे हो? किसे हिचक हो रही है ख़ुद को जवान मान लेने में? क्यों दूसरों की बातें करते हो? कभी अपने बारे में लिखो भइया तो हम भी कुछ समझें....

PD said...

हमारे मित्र बन जाईये..
हम भी उसी वर्ग से आते हैं..
दोस्तों से वैसे ही बतियाते हैं..
कभी हंसते तो कभी गाते हैं..
कभी बिना बात के इतराते हैं..
हमें दुनिया की चिंता नही की
वो हमे पतनशील या कुछ भी समझे..
हम तो बस अपनी मस्ती में नया राह बनाते चले जाते हैं..
:)

अजित वडनेरकर said...

ठहाका रोग भगाए। और बुढ़ापा रोग है , लगाइये ठहाका।

रश्मि प्रभा... said...

वाह! शानदार लिखा है आपने.......

Kavi Kulwant said...

अच्छा है..
http://kavikulwant.blogspot.com

Sajal Ehsaas said...

apni aadatein dikh rahi thi aapke is article mein....hum dost bhi zoraar masti karte hai(15 logo ka achha khaasa bada circle hai)...vaise ek baa to hai ki is masti mein zyada yogdaan soch aur shabdo ka hota hai jinpe umr ka khaas prabhav nahi hona chahiye,to masti jaari rahegi :)