Saturday, December 8, 2007

उम्मीद




पास मेरे जो तुम आओ तो कोई बात बने
पास आकर दूर ना जाओ तो कोई बात बने

नफरत से प्यार क्यों करते हो इस कदर
प्यार से प्यार करो तो कोई बात बने

उम्र सारी तमाम कि सौदेबाजी मे अब तो
एक रिश्ता कायम करो तो कोई बात बने

गिरे हुए पर तो हँसते है दुनिया मे सभी
गिरतों को तुम संभालो तो कोई बात बने

रोने से कंहा हासिल किसी को कुछ होता है
जरा किसी के साथ मुस्कुराओ तो कोई बात बने.

ख्वाबों कि राख पर बैठ हाथ मलने से क्या हासिल
इक नया ख्वाब किसी आँख मे तुम सजाओ तो कोई बात बने.

जिन घरो मे सदियों से छाया है अँधेरा वंहा
एक दीपक तुम जलाओ तो कोई बात बने.

हिंसा गर सारा जमाना तुमसे करे तो क्या
अहिंसा तुम बापू सी करो तो कोई बात बने.

13 comments:

Shiv Kumar Mishra said...

भाई बालकिशन जी,

बहुत खूब लिखा है आपने....वाह!
आपका लेखन वाकई बहुत बढ़िया है...बाकी तकनीक के बारे में तो नीरज भइया कहेंगे...

Gyan Dutt Pandey said...

जय हो बालकिशन! नीरज जी की टक्कर की दुकान बन रही है! :-)
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खैर मजाक एक तरफ, कविता बहुत अच्छी लगी। इसलिये कि भाव बड़े सात्विक हैं और पूरी तरह समझ में आते हैं। अच्छी कविता पेश करने की बधाई।

Pramendra Pratap Singh said...

बहुत अच्‍छा लिखा है।

अहिंसा तुम बापू सी करो

में दम है। किन्‍तु मै इस बात से सहमत नही हूँ।

मीनाक्षी said...

बहुत भावभीनी रचना.... एक एक पंक्ति बोलती सी... बस अंत की दो पंक्तियाँ ... उन्हें लेकर एक और कविता का जन्म हो सकता है... यह मेरा विचार है क्योंकि हर पाठक अपने तरीके से भाव ग्रहण करता है...

Keerti Vaidya said...

dil ko chu gayi apki kavita...

mamta said...

कविता के भाव बहुत अच्छे है।

उम्मीद है की आगे भी ऐसी ही अच्छी कवितायें पढ़ने को मिलेंगी।

Manjit Thakur said...

बाल किशन जी साधुवाद.. हम दोनों के पास उम्मीदें हैं,

पुनीत ओमर said...

ये अच्छा कहा है की "इक नया ख्वाब किसी आँख मे तुम सजाओ तो कोई बात बने. "
अपनी आखों में ख्वाब सजाने को तो हर कोई कहता है. अच्छा है.....

नीरज गोस्वामी said...

क्या ज्ञान भईया आप भी कैसी बात करते हैं? भला हम सी राई की बाल किशन जी के पहाड़ से कैसी टक्कर?हम तो आते ही कहाँ हैं उनके रास्ते में, पहले से ही हट जाते हैं. पहले जनाब गध्य लिखते थे अब ग़ज़ल लिखने लगे हैं. क्या करें अब हमारे पास बोरिया बिस्तर बाँधने के अलावा और रास्ता ही क्या बचा है?बड़े बेआबरू हो कर ब्लोगिंग से निकलने से अच्छा है की समय रहते इज्ज़त से रवाना हो जायें.
बहुत बढ़िया लिखे है बाल किशन जी महाराज जहाँ तक ग़ज़ल लेखन के तकनिकी पक्ष का सवाल है तो उसमें अभी हाथ साफ करने की ज़रूरत है ऐसा मुझे लगता है, हालांकि मैं ख़ुद अभी क ख ग सीख रहा हूँ सुबीर जी से.
नीरज

Sanjeet Tripathi said...

सुंदर!!
पसंद आई रचना।

Kirtish Bhatt said...

बहुत सुंदर रचना. बाल किशन जी आपही के नाम का मेरा एक और मित्र भी है और तो और आपका फोटो भी कुछ कुछ उससे मिलता है.

बालकिशन said...

@कीर्तिश भट्ट
अरे सर जरा ध्यान दीजिये कंही वो मैं ही तो नही.

@ नीरज भइया
वड्डे वाप्पाजी सिखलाना तो आपको पड़ेगा ही.
भला बाल-सुलभ हठ के आगे किसी की कंही चली है जो आपकी चलेगी.

@ज्ञान भइया
आप भी हमको झाड़ पे चढाने मी लगे है. शायद आपको पता नही हा नही जानते है चढ़ना. गिर-गिरा जायेंगे तो हाथ पैर तुड़वा बैठेंगे और आपका नाम ख़राब होगा सो अलग.

Manish Kumar said...

ख्वाबों कि राख पर बैठ हाथ मलने से क्या हासिल
इक नया ख्वाब किसी आँख मे तुम सजाओ तो कोई बात बने..

बहुत खूब जनाब...