Wednesday, December 10, 2008

कुछ तो कोरा रहे .....

लिख लेते कविता
अगर हाथ में हरी, लाल, पीली पन्नी रहती
लेकिन मिला भी तो सफ़ेद कागज़
कैसे चलाऊँ उसपर कलम?
काली सियाही उसे भद्दा कर देगी

सफ़ेद कागज़ की यही समस्या है
लालच तो देता है
लेकिन डरता भी है

वैसे तो कहता है कुछ लिख दो
लेकिन डरता है इस बात से कि;
चली जायेगी उसकी सफेदी
मौत हो जायेगी उसके सफेदपन की
क्योंकि इस समय की कविता
हमेशा कालापन देती है
और सफ़ेद कागज़ को
इस कालेपन का भय सताता है

फिर सोचता हूँ;
कुछ तो सफ़ेद रहे
कुछ तो कोरा रहे
कागज़ ही सही

12 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

फिर सोचता हूँ;
कुछ तो सफ़ेद रहे
कुछ तो कोरा रहे
कागज़ ही सही
bahut sunder bhaaw hai

आशीष कुमार 'अंशु' said...

Bahoot hee sundar.

Keep It up.

ताऊ रामपुरिया said...

और सफ़ेद कागज़ को
इस कालेपन का भय सताता है
पर क्या किया जा सकता है ? बिना काले हुए कविता भी तो नही उतरती !
बहुत शानदार अभिव्यक्ति !

रामराम !

नीरज गोस्वामी said...

फिर सोचता हूँ;
कुछ तो सफ़ेद रहे
कुछ तो कोरा रहे
कागज़ ही सही
ह्म्म्म्म्म्म्म....सोच रहा हूँ....
नीरज

दिनेशराय द्विवेदी said...

बालकिशन जी, एक दम नकारात्मक लग रही है यह कविता।

Gyan Dutt Pandey said...

हम भी कभी यूं ही सोचते हैं। कोरा और सफेद रहने की कवायद में मशगूल।
फिर झटक कर खड़े हो जाते हैं।

रंजना said...

कई बार गोता लगाने के बाद इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि भाई बड़ी ही गूढ़ गहरी बात है ,हम कमक्लों के पहुँच से ऊपर,इसलिए शायद एक बार में समझ नही पड़ा कि क्या कहने की कोशिश की जा रही है.यूँ भी आपलोगों की तिकडी कब कौन सी बात को व्यंग्य में कह रहा है और कब गंभीरता से ,अनुमान लगना कठिन होता है.

वैसे सीधे सीधे अर्थ में कविता बहुत गहन भाव सहित उच्च स्तर की सुंदर कविता है.

बस एक शिकायत है कि ऐसी भी क्या व्यस्तता कि इतने लंबे अन्तराल तक ब्लाग जगत से दूर रहा जाए.कृपया निरंतरता बनाये रखिये.छोटा ही सही ,बराबर लिखते रहिये,नही तो एकसाथ जमा हो जाने पर ऐसी ही गूढ़ कवितायें लिखा करेंगे..............

अमिताभ भूषण"अनहद" said...

कैसे चलाऊँ उसपर कलम?
काली सियाही उसे भद्दा कर देगी
शानदार ,बहुत खूब

Girish Kumar Billore said...

Wah behatreen hai ji

shama said...

Pehli baar aapke blogpe aayi hun...aur wobhi aapki, pichhale saal" Baagwanee ki ek shaam" is post parse...
Ab "Baagwanee", ye alag hee blog maine shuru kar diya hai.(Any 12 blogs hain, 'lizzat'abhi tak khaali hai...!)
Behad saral, seedhe alfaazon me likhi rachna...kuchh to kora rahe...kuchh to aisa ho jeevankaa ek kona, jahan, koyi daag-dhabba na ho...kaash aisa ho pata...
chahkebhi,kahin na kahinse daag laghee jate hain...apnaa anchal kitna bachayen...ye use thamhee lete hain...

shama said...

Manvidarji,
Aap sabheeki kshama mangatee hun...kuchh hacking se shuru huee galatfehimiyan...aur uske tehet bhaukhlake, kiya aparipakv reaction/bartaav..
Mujhe khud apne aapse ye ummeed nahee the...lekin zabardast mansik tanawme aake apne sadharan mizaaj ke barkhilaaf, apna vartan ho gaya.
Aap sabheese kshama chahti hun. Kaafee bhugat chukee hun, saza paa chukee hun, paa rahee hun...isliye tahe dilse, sharmsaar hoke maafee maang letee hun. Galati huee hai, jaisi pehle kabhi nahi huee thi.Pehle itnee zabardast hacking kaa shikarbhee nahee huee thi. Par sabhi bloggers ko aahat kiya. Ye meree badqismati hee kahungi, aur nahee to kya?

DMC said...

awesome