कल सबेरे
एक कविता लिख दी थी मैंने
तुम्हारी लिपस्टिक से
उसे लिखकर
दीवार पर चिपका दिया था
धूल से सनी दीवार ने
कागज़ को गन्दा कर दिया
लेकिन
मुझे चिंता उस कागज़ की नहीं
मुझे चिंता थी उन शब्दों की
जो
मैंने तुम्हारी लिपस्टिक से लिक्खे थे
मुझे चिंता थी
लिपस्टिक के उस रंग की
जो आसमानी नीला था
शाम को कागज़ पर हाथ फेरा
कागज़ गीला था
शायद तुम्हारे आंसुओं की बूँदें
कागज़ को गीला कर गई
और मेरी भावना
पीली पड़ने लगी
आंसुओं से धुली रात
गीली पड़ने लगी
क्या करूं?
और क्या है करने के लिए?
दोपहर तक जीता हूँ
मुई शाम आ जाती है
लगता है जैसे कह रही हो;
'चलो, तैयार हो जाओ
मरने के लिए'
दिल है
इसलिए यादें भी हैं
और इन्ही यादों ने
मौत का सामान
इकठ्ठा कर रक्खा है
बस रोज जीता हूँ
कविता लिखता हूँ
तुम्हारी लिपस्टिक से
लेकिन ये दीवार है कि;
हटती ही नहीं
लगता है जैसे उम्र बढ़ती जा रही है
जरा भी घटती नहीं
बाल किशन
२४-०८-२००८
प्रातः: ९:२१
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
19 comments:
आपकी कविता के लिए आसमानी नीले रंग वाली लिपस्टिक से टिप्पणी लिख रहा हू.. बहुत बढ़िया है..
वाह! कविता लिखते हो, वो भी लिपस्टिक से. ..आसमानी नीले रंग की लिपस्टिक.
लेकिन बंधु, दीवार पर क्यों चिपकाते हो? आजकल दीवार पर चिपके प्रेमपत्रों को उडाया जा रहा है. अब शायद कविता की बारी है.
भाई बाल किशन
कलकत्ता से मुंबई तक का आने जाने का हवाई भाडा.....खोपोली में एक हफ्ते का मुफ्त रहना खाना और घूमना......सब मेरी तरफ़ से.....अगर एक कृपा करो तो...ऐसी कविता लिखना छोड़ दो जो तुम्हे साहित्य में अमरत्व प्राप्ति की और अग्रसर करे...दया करो प्रभु....ब्लोग्गर्स पर दया....बहुत से लोग तुम्हे बहुत बढ़िया...क्या बात है...विलक्षण लेखन लेखन...छा गए....निराला की याद आगई...महादेवी जी आज होतीं तो कितनी खुश होतीं...आदि टिप्पणियों से नवाजेगें....क्यूंकि....कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना...लेकिन तुम हमारे अपने हो इसलिए सच्ची बात लिख रहे हैं..
भाई आसमानी रंग की लिपस्टिक? ये प्रयोग है या सच्चाई???
नीरज
पुनश्च: क्रोस कंपनी (नाम सुने हैं ना) का एक ठो बाल पेन कोरिअर कर रहा हूँ.....तुम्हारी लिपस्टिक से लिखने की आदत छुडाने के लिए....वस्तुओं का ग़लत इस्तेमाल बंद करो भाई...अब तुम बड़े हो गए हो.
क्या लिपस्टिक तोड़ लिखा है भाईसाहब. ऐसी गजब की नज्में तो बस गुलजार साहब ही झिला सकते हैं. बल्कि आप तो उनसे भी आगे निकल गए. क्या कमाल की संवेदनाएं जगाती है ये पोस्ट.
बेहद भावुक और मर्मस्पर्शी पोस्ट. कृपया ऐसे ही लिखते रहें.
यह नामुराद आदत क्यूँ पाल ली आपने :).बहुत कष्ट देती है यह आसमानी लिपिस्टिक से लिखी इबारते ,,नीरज जी की बात पर गौर फरमाए बढ़िया आफ़र है स्वीकार कर ले :)
नीरज जी का कमेंट पढ़ा.. पढ़कर दुख हुआ। शायद इसलिए कि यह प्रोत्साहन भरा नहीं था। इन कविताओं में जो संवेदना है नीरज जी उसे नहीं पढ़ पाए। नीली लिपिस्टक उनको दिख गया..
बाल किशन जी आप लिखते रहें और उम्र के किसी पड़ाव में कोई भी ऐसा लिख सकता है।
जनाब बाल किशन साहेब,
आपकी नज़्म पढ़कर एक साथ गुलज़ार साहेब और संगीन मिर्जा की याद आ गई. मिर्जा सौदा के यार थे संगीन मिर्जा. जनाब रोशनाई की चमक ब्लॉग पर दिख रही है. जिस मिजाज से आपने ये नज़्म लिक्खी है, वो उम्र-ए-हयात दिलों में खुलूस पैदा करने के लिए बहुत है.
रही बात जनाब नीरज साहेब की, तो मैं कहूँगा कि उनके जैसे महान शायर को नए शायरों की हौसला आफजाई करनी चाहिए. या मेरे दिल के किसी कोने ऐसी आवाज़ भी आ रही है कि जनाब नीरज साहेब आपकी प्रतिभा से काफी उत्साहित भी हैं. उनके कमेन्ट से हमें ऐसा भी लगा कि आप उनके दिल के करीब हैं. लिहाजा थोड़ा मजाक कर ही सकते हैं.
हाँ, आपको जब उनकी कुरिएर से भेजी कलम मिल जाए, तो आप उस कलम का इस्तेमाल करते हुए गजलें और नज्में लिखें. और ऐसे ही लिखते रहें.
सच में लिपिस्टिक तोड़ !
बहुत सुन्दर! आपको नीला गुलाब भेंट करने का मन हो रहा है!
कविता सुंदर है। लेकिन भाव पर जाएं तो उम्र बस एक संख्या है। 80 और 18 का फर्क बस संख्या का है। तन और मन का स्वास्थ्य अच्छा रखा जाए तो मरते दम तक इंसान युवा रह सकता है।
दिल है
इसलिए यादें भी हैं
और इन्ही यादों ने
मौत का सामान
इकठ्ठा कर रक्खा है
बस रोज जीता हूँ
कविता लिखता हूँ
तुम्हारी लिपस्टिक से
लेकिन ये दीवार है कि;
हटती ही नहीं
बहुत सुन्दर लिखा है।
वाह! बेहद खूबसूरत...बहुत सुन्दर.बधाई.
Bahut saal hue, maine Green/ Haree lipstik se
eesi tarah Khat likha tha ...
yaad reh gayeen hain aur wo Card ab bhee
mere paas hai ...
Sunder bhaav ..liye Nazm pasand aayee ..
- Lavanya
नीली लिपस्टिक कैसी होती है, जी ?
एक बार देखेंगे, तब न हमरा कमेन्ट करने का अधीकार बनेगा, सो .. ..
अपना आगला कबिता में जरा नीला लीपस्टीकवा दीखाईएगा ।
बालकिशनजी, मन में उत्सुकता जाग उठी जिसे आप ही शांत कर सकते हैं..किस मनोभाव में रहकर आपने इस कविता को लिखा, उस भाव को जानने की तीव्र इच्छा है..आशा है आप ज़रूर जवाब देंगे..
दिल है कि मानता नहीं !!
बालूभाई, सुंदर नज्म । शानदार कविताई चलती रहे।
उम्र तो बालकिशन भाइ आपकी बढती जा रही है ही , पर ये सठियाने की उम्र के काम अभी से काहे शुरू कर दिये जिस चीज को महिलाये उम्र छिपाने के लिये प्रयोग करती है आप उसको इधर उधर ( कभी दीवार कभी कागज पर) काहे खर्च कर रहे है ? खामखा मे लिपिस्टिक पर खुंदक निकाल कर इधर उधर घिस रहे हो,कही भाभीजी आपकी इस हरकत पर सिरियसागई और आप पर खुंदक खा गई तो .......... राम राम सोच कर ही कलेजा मुंह को आता है आप और लिपिस्टिक की जगह दिवार से चिपके हुये ....खुद को संभालिये भाई जान इस उमर मे हड्डिया भी कमजोर हो जाती है , बेफ़ालतू के पंगो मे मत पडा कीजीये :)
आप की कविता मे बहुत उदासी झलकती हे, मुझे भी उदास कर गई.
धन्यवाद कविता के लिये
उम्र बढती है बढे । लिपस्टिक टूटती है टूटे । कविता आप लिखते रहें । पढने वाले यहाँ और भी हैं ।
Post a Comment