फ़िर वही किस्से मंदिरों-मस्जिद के हवाओं में है
लगता है ये पुराना सा साल मुझको
खामोश जबां के ही सर बचते हैं यंहा सर कटने से पहले
ना जाने क्यूं ना आया ये ख्याल मुझको
आज फ़िर खाली हाथ चले आए आज फ़िर मेरा खिलौना नही लाये
रोज पूछता है मेरा बच्चा ये सवाल मुझको.
ना डर ना फरेब ना घात हो जंहा पे
ले चल मेरे यारा उस जँहा मे मुझको.
हर तरफ़ झूठ बेईमानी मक्कारी इस कदर है छाई
लगती है ये जिंदगी अब तो बवाल मुझको.
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नोट:
मैं शेर या गजल लिखने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ, जानता हूँ की नहीं लिख सकता. सिर्फ़ अपने विचारों को शब्दों का जामा पहनाने भर की कोशिश है.
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32 comments:
जो भी है अच्छी कोशिश है.. ख्यालो को शब्दो का जमा पहनते रहिए..
बहुत अच्छी रचना है. भाई मन के अच्छे भाव ही शब्दों में उतारना कविता और गजल है. तुकबंदी और बहर तो सीख कर भी लिखते हैं लोग.
कोशिश करने से तुम भी सीख लोगे.
अपने मन की बात आपने अच्छी तरह कह ली. मेरा मन कह रहा है आपसे एक सवाल पूछूं. क्या इस माहौल में आप बच्चे के लिए एक खिलौना नहीं खरीद सकते? किस तरह का माहौल चाहते हैं आप उस के लिए?
दुष्यन्त जी याद आते हैं - चलो चलें यहां से और उम्र भर के लिये!
हर तरफ़ झूठ बेईमानी मक्कारी इस कदर है छाई
लगती है ये जिंदगी अब तो बवाल मुझको.
yae panktiyaan nahin haen sach haen aur kyoki ki sach haen is liyae sunder haen
हर तरफ़ झूठ बेईमानी मक्कारी इस कदर है छाई
लगती है ये जिंदगी अब तो बवाल मुझको.
बहुत सही बात लिख दी है .ख्याल सुंदर है .जो बात दिल को छुए वही गीत है वही गजल मेरा तो मानना यही है :)
bahut achchhi kavita..
dil ko chhoo lene vali..
:)
apki rachana aachi hai.
हर शब्द सच है।
सुंदर प्रयास।
ऐसा लग रहा है कि खाली की जगह खली लिख गया है ।
अगर बुरा ना माने तो आज फ़िर खली हाथ को खाली हाथ कर दीजिये।
'लगता है ये पुराना सा साल मुझको.'
सही बात कही है आपने...ये तो 'infinite loop' में फंस गया जैसा लगता है... हर समय वही कहानी अपने आपको दुहराते रहती है... बदलाव कुछ नहीं हो पाता.
अच्छी कोशिश है....संकोच क्यों ?
लिखते रहिए....बचपन का ये दर्द
पराया नहीं है. बात आपने पते की कही है.
विधा अपनी जगह है,किंतु
अभिव्यक्ति में ईमानदारी बड़ी बात है.
वह आपमें साफ नज़र आ रही है.
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बधाई
डा.चंद्रकुमार जैन
कवि वह नहीं जो बने बनाए नियमों पर कविता रचना करता है, बल्कि वह है जो कविता के साथ कविता करने के नए नियमों का सृजन करता है। आप कविता के पुराने रुपों को ध्यान में रखे बिना लिखें। ऐसा फार्म बनाएँ जो आप की बात को सुन्दरता और सुघड़ता प्रदान करे। आप की कविता निखऱ जाएगी।
बहुत खूब!
लिखने में संकोच कैसा. आपके शब्दों में काफी गहराई है. आगे और भी पढ़ना चाहूँगा.
बचुआ
आज फ़िर खाली हाथ चले आए आज फ़िर मेरा खिलौना नही लाये
रोज पूछता है मेरा बच्चा ये सवाल मुझको.
आप का ये शेर पढ़ के हमें राजेश रेड्डी का शेर याद आ गया अब आप उका शेर पढ़ के अपना शेर लिखे हैं या वो आप का शेर पढ़ के ये शेर लिखे हैं इसका फ़ैसला तो आप आपस में कर लीजिये, पहले ये शेर सुनिए :
शाम को जिस वक्त खाली हाथ घर जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं
आज कल लगता है देवी सरस्वती आप की कलम पे आके बिराजमान हो गयी है....तनिक उनसे कहियेगा न की हमरी खोपोली की तरफ़ भी रुख करें..
नीरज
बहुत बढिया। बहुत बडी कोशिश है। इस पर तो पूरी इमारत खडी हो सकती है। लिखते रहिए।
माफी सहित कहना चाहता हूं कि दुनिया वैसी ही होती है जैसा हम होते है
कबीर ने भी कहा है
बुरा देखन मैं चला
अभी कुछ ही दिन से आपकी रचनाएं देख-पढ़ रहा हूँ -वे थोडा अनगढ़ तो हैं पर उनमें मौलिकता की महक है -मौलिकता भावों की ,अभिव्यक्ति की .लगता है यह आपका टशन है ....मगर है मजेदार .,...कृपया चालू रहिये ....
बल किशन जी आपने अपने विचारो को अमली जमा पहुचाया और ये इतना खूबसूरत बन गया इसका मजमून आपको यहाँ आई टिप्पणियो से पता लग गया होगा. बहुत ही बढ़िया
आज फ़िर खाली हाथ चले आए आज फ़िर मेरा खिलौना नही लाये
रोज पूछता है मेरा बच्चा ये सवाल मुझको.
jari rakhiye sahab....gajal bhi apne aap banti jayegi....aapka ye khyaal bahut khoob hai.
मन से अनुभूत और अभिव्यक्त बात मन तक सहज ही पहुँचने मे सक्षम होती हैं और यह यह कला या विधा विधा विशेष की मुहताज भी नही होती. निश्चिंत होकर लिखते रहिये .
बहुत ही सुंदर,भावपूर्ण रचना के लिए बधाई.
वाह जी,बड़े उम्दा भाव हैं. आप तो लिखते रहिये.
बहुत सुंदर बालकिशन जी !
मैंने आपका परिचय जानने हेतु ( क्षमा करियेगा नया ब्लागेर जानकर ) आपके ब्लॉग को देखना शुरू किया , एक जगह आपने लिखा था की आप जैसे तैसे शब्दों में अपने विचार व्यक्त करते हैं, मगर अध घंटे आपकी रचनाएँ व लेख देखने के बाद अपने ऊपर हँसी आई ! विनम्रता हो तो ऐसी !
साधुवाद
फ़िक्र बढ़िया है इसमें फ़न फ़कत मिला दीजै
इतना भी दुश्वार नहीं सोने पे सुहागा होना.
मुझे तो बड़ी अच्छी लगी आपकी या ग़ज़ल या कविता जो भी है...खयालात बहुत उम्दा हैं..और मेरे लिए तो वही ज्यादा ज़रूरी हैं..लिखते रहिये.
निराशावादी स्वर मुखर है इसमें. इसलिए पसंद नहीं आयी. कुछ जोशो जूनून की बातें कीजिये सर. पढने वाले को अवसाद से भर देना भी एक अपराध है.
आजका यही सच है जो आपके शेरोँ मेँ बयाँ है ..........लिखते रहिये .
- लावण्या
आपकी यह रचना बहुत अच्छी लगी। सुंदर भाव हैं, ग़ज़ल वगैरह की पेचीदगी में ना पड़ें तो भी प्रवाहमयी और प्रभावशाली शब्दों में अपने भावों को अभिव्यक्त किया है। लिखते रहिए। जैसा कि ऊपर एक मित्र ने कहा है कि निराशावादि स्वर मुखर है,
यही कहूंगा कि काव्य की सीमा क्षितिज के पार भी खत्म नहीं होती।
कविता के विषय में अपनी ही कविता की दो पंक्तियां देता हूं-
'कवि हृदय विकल जब होता है तो भाव उमड़ ही आते हैं,
नयनों से भीगे से जलकण कविता बन कर बह जाते हैं।'
महावीर शर्मा
अच्छी कोशिश है, लिखते रहिये
ना डर ना फरेब ना घात हो गर यहा पे
तो जिंदगी कुछ इस कदर बेमजा हो जायेगी
दिल से बस यही इक आवाज आयेगी
डर फरेब घात हो जंहा पे
ले चल मेरे यारा उस जँहा मे मुझको.
:)
लिखते रहिए,अभिव्यक्ति में इमानदारी का अपना एक अलग आनंद होता है !
रचना बहुत अच्छी लगी, लिखते रहिए.
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