Friday, June 6, 2008
क्या ये चेहरा तुम्हारा है?
कभी कभी
या......
जब कभी
आईने के सामने खड़ा होता हूँ
देखने को चेहरा अपना
मुझे नहीं दिखता चेहरा अपना.
मुझे दिखते है कई चेहरे.
एक दूसरे मे गड़मगड़ चेहरे,
एक दूसरे पर हँसते चेहरे,
कुछ वीभत्स चेहरे,
कुछ विद्रूप चेहरे,
हर चेहरा हँसता मुझपर
जैसे कहता हो मुझसे......
खोज सको तो खोज लो
हम सब मे चेहरा अपना.
हर चेहरा दिखलाकर.....
आइना भी जैसे पूछता हो मुझसे
क्या ये चेहरा तुम्हारा है?
क्या ये चेहरा तुम्हारा है?
तुम भी सवाल करते हो....
क्यों देखते हो आईना तुम?
पर क्या करूँ
मुझे अपना चेहरा पहचानना है
ताकि मैं जवाब दे सकूं
जब भी आईना पूछे मुझसे
क्या ये चेहरा तुम्हारा है?
क्या ये चेहरा तुम्हारा है?
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31 comments:
आइने को दे सकते हैं जवाब..
दिल को देखो चेहरा न देखो....
ख़ुद से यह सवाल करके सही जवाब पाना ...इतने चेहरे लगा कर ख़ुद को पहचान कर भी नही पहचान पाते हैं ..अच्छी लगी आपकी यह कविता बाल किशन जी
भाई, बढ़िया कविता है....बहुत आगे निकल चुके हो अब. आईने में चेहरा खोजना सबके बस की बात नहीं. केवल कवि ही खोज सकता है.
मैं तो जब भी चेहरा देखता हू आईना टूट जाता है..
बहुत सुंदर रचना.. वाकई
मुझे तो कार्टून बनने की प्रेरणा ही आइना देखकर मिली :D
...... सुन्दर कविता बालकिशन जी
रोज एक नया चेहरा खोजता हूँ मैं वक़्त बदलने के साथ......कुछ ऐसी ही हकीक़त है....
मार्क गोबेन का कांच जड़वाइये. देखने वाले का ही चेहरा दिखायेगा. क्वालिटी से फर्क पड़ता है.
धन्यवाद
घोस्ट बूस्टर जी
आपकी सलाह का शीघ्रातिशीघ्र पालन किया जायेगा.
भैया बालकिशन, यह इमेज का भ्रम मुझे बहुत होता है और समय के साथ ज्यादा होता है। इतना समझ पाया हूं कि इसमें इमेजार्थी का ही लेना देना है - बेचारे आइने का कोई कुसूर नहीं।
ज्ञान जी की तरह मैं भी यही कहूँगा की दर्पण तो झूठ नहीं बोलता... या यूं कहें की बोलता ही नहीं... जो सामें है उसका दिमाग ही बोल पड़ता है.
Ek sundar kavita ke liy badhai svikaar kare.
ek sher yaad aa gaya..
har aadmi mein hote hain das bees aadmi
jisko bhi dekhna ho kai baar dekhna
बहुत उम्दा और गहरे भाव लिये रचना.
दिल के आईने में ही झांकना होगा.
क्षणे क्षणे यन्न्वता मुपेति तदैव रूपम रमणीयताया: -बालकिशन जी आप को तो अपने रूप राशी पर गर्व करना चाहिए
bal kishan bhai,
saadar abhivaadan. aaj pehlee baar apke blog par aakar achha laga, vada kartaa hoon ki ab aanaa jaanaa lagaa rahegaa. chehre ko kabhee maine bhee itne gaur se nahin dekhaa.
bahut hi umda,duniya ki bhid mein hum apna chehra bhul jate hai,aaina bhi nahi dikha pata asliyatphir.
पर क्या करूँ
मुझे अपना चेहरा पहचानना है
ताकि मैं जवाब दे सकूं
जब भी आईना पूछे मुझसे
क्या ये चेहरा तुम्हारा है?
क्या ये चेहरा तुम्हारा है?
वाह! गहरा कथ्य!!
***राजीव रंजन प्रसाद
Dil aaine se poochata hai ki tumhara chehra kya hai .
akhir aaina bhi poochata hoga
ki dil tumhara kahan hai .
post bahut achchi lagi abhaar.
Dil aaine se poochata hai ki tumhara chehra kya hai .
akhir aaina bhi poochata hoga
ki dil tumhara chehra kahan hai .
post bahut achchi lagi abhaar.
1.
आईना मुझसे मेरी पहले-सी सूरत मांगे!
----------------------------
2.
जहां तक चेहरों की बात है...
आज सारे लोग जाने क्यों पराये लग रहे हैं।
एक चेहरे पर कई चेहरे लगाए लग रहे हैं।
बेबसी में क्या किसी से रोशनी की सीख लेना,
सब अंधेरी रात के बदनाम साये लग रहे हैं।
अच्छी कविता
अपनी सूरत लगे परायी सी
जब कभी हमने आईना देखा
अच्छी कविता
अपनी सूरत लगे परायी सी
जब कभी हमने आईना देखा
sir aap mere blog par aaye mujhe comment diya. mai ummid karta hu ki aap aage bhi mujhe isi tarah protsahan denge. aapki kawita bhut hi pyari hai. aaj logon ke bhut sare chehre hai. jo pahchan me hi nhi aate hai. kabhi log dikhate hai ki wo sada apke sath hai or fir aise nata todte hai ki jaise kabhi kio sambandh hi nhi tha. thank u sir..
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग...
भाई आज कल क्या है की आप बहुत ही बढ़िया लिख रहे हो...ऐसे ही लिखते रहो...मैं भी अपना ब्लॉग आप के नाम कर देता हूँ...
नीरज
मर्म स्पर्शी रचना.
साखी भाव लिए.....
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बधाई
डा.चंद्रकुमार जैन
दिल से निकली कविता, सीधे दिल में उतर गयी, बधाई।
गहरी भावना लिये एक सुन्दर कविता।
आईना हमारे सच को झुठलाता हुआ।
कई चेहरों को चेहरे से उलझाता हुआ ।
आईने से अब क्या पूछें
आपकी कविता ने सच ही बताया हैं...
लाजवाब,बहुत बहुत ही सुंदर,भावपूर्ण रचना.पढ़कर कुछ देर को मन मौन हो बैठ गया. बधाई.
दिल को भेदती हुई बात। खूब रचा है आपने ये सवाल। मेरा आईना भी यही सवाल करता था। परेशान होकर हटा दिया। अब दूसरों की आँखों में अपना चेहरा देख लेता हूँ। शर्म तो अब भी लगती है, मगर पहले से कम।
सच्ची अच्छी रचना।
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