Thursday, June 5, 2008
क्यूं?
रे दुःख तू इतना हैरान परेशान क्यूं है
मेरे दिल के होते ढुढता दूसरा मकान क्यूं है
किसने तोडे मन्दिर किसने तोडी मस्जिदें
जो ऊपर बैठा देखता सब वो खुदा क्यूं है
सालता तो उसको भी होगा मेरा चुप रहना
उसकी बेवफाई मेरी चुप्पी का सबब क्यूं है
ख़बर आती है जब भी किसी के दीवाना होने की
निगाहें उठ जाती सबकी जाने उनकी तरफ क्यूं है
जो खंजर हुआ पैबस्त है सीने मे मेरे
उस पे निशां हाथ के मेरे दोस्तों के क्यूं है
हँसी की बात करती दुनिया सारी तू आंसू की
नाचीज तुझे ये शौक अजीब सा जाने क्यूं है
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21 comments:
बढ़िया ग़ज़ल रही.. अब तो अनॉनामस बंधु/ बहन की शिकायत भी दूर हो गयी होगी..
@ कुश - कहां जी, अभी अनामाचार्य आते होंगे धज्जियां अलग करने!
बाकी लिखा सुन्दर है बालकिशन।
बहुत बढिया सर जी..
हँसी की बात करती दुनिया सारी तू आंसू की
नाचीज तुझे ये शौक अजीब सा जाने क्यूं है
kya bat hai sahab......
आप का ब्लॉग आज पहली बार पढ़ा....अच्छा लिखते है आप...
खूबसूरत गजल !
हँसी की बात करती दुनिया सारी तू आंसू की
नाचीज तुझे ये शौक अजीब सा जाने क्यूं है
बालकिशन जी चलायमान रहिये. बढ़िया
जो खंजर हुआ पैबस्त है सीने मे मेरे
उस पे निशां हाथ के मेरे दोस्तों के क्यूं है
चलो, तुम नए शायर हो, इसलिए दोस्तों ने तुम्हारे सीने में खंजर उतारा है. पुराने और स्थापित शायरों के तो पीठ में दोस्त-यार खंजर उतारते हैं. वैसे देख के बताओ, मेरे हाथ का निशान भी हो तो मामला ले-दे कर सलटाऊँ......:-)
खैर, मजाक की बात अलग....बढ़िया गजल है. अब तो गुरु कन्फर्म हो गया कि जब से तुमने ये परी की कहानी लिखी है, तब से ब्लॉगर नहीं रहे. साहित्यकार हो गए हो.....(यहाँ भी स्माईली)
बालकिशन जी? आपै न लिख रहे हैं इधर ;)
मस्त है!
गजल के बहाने आपने समकालीन हालात का अच्छा जायजा लिया है। बधाई स्वीकारें।
balkishan ji kya khoob kaha apne apka likha badti umra aur badta peit sach mujhe bhi bhaybheet karte hain
बालकिशन जी
बहुत लिहाज कर लिए हम भईया आपका, आप तो हमारी दूकान बंद करवाने पे ही आमादा हो गए हैं...पहले सोचा चलो कोई बात नहीं नया नया शौक है बालक को उतर जाएगा एक आध दिन में, लेकिन आप तो ग़ज़ल पे ग़ज़ल दिए जा रहे हैं और वो भी उम्दा...अभी एक जने को बुलाया था, ( अरे वो ही अपना डॉन भाई...) आप को टपकाने के लिए सुपारी देने को...पहले तो जो हमने रकम बताई उसी पर मान गया...जब फोटो के लिए कहा तो हमने आप का ब्लॉग रेफ़र कर दिया की वहीं पे देख ले फोटो......उसने ब्लॉग देखा और अब आप की ग़ज़ल पढ़ कर जितनी हमने रकम बताई थी उसका २० गुना मांग रहा है...कहता है माने हुए शायर हैं ये तो...इस काम में रिस्क ज्यादा है....क्या करें?
नीरज
"हँसी की बात करती दुनिया सारी तू आंसू की
नाचीज तुझे ये शौक अजीब सा जाने क्यूं है"
वाह !!
wah bahut hi lajawab gazal,kis sher ki tariff karun,its simply awesome
बहुत बढ़िया... मिश्रा जी सही कह रहे हैं आप साहित्यकार तो हो ही गए हैं.
अच्छी गजल !
बढ़िया है. भाव सुपर स्टार वाले हैं. मजा आया बहुत पढ़कर. गज़ल है कि कविता-यह तो कोई ज्ञानी बताने आता ही होगा इसलिये ज्ञानजी से सहमत हो जाता हूँ. आप तो जारी रहो. उम्दा लिख रहे हैं. :)
निहायत खूबसूरत तख़्ख़युल। हर शेर लाजवाब है। एक बार पढ़ने से तसल्ली नहीं हुई, कई बार पढ़ी और हर बार वही मज़ा! बधाई हो।
बालकिशन जी
बहुत प्रभावशाली गज़ल लिखी है-
सालता तो उसको भी होगा मेरा चुप रहना
उसकी बेवफाई मेरी चुप्पी का सबब क्यूं है
ख़बर आती है जब भी किसी के दीवाना होने की
निगाहें उठ जाती सबकी जाने उनकी तरफ क्यूं है
वाह बहुत सुन्दर। बधाई
"यू तो आप लिखते है गद्य भी बढिया ये दोस्त
फ़िर आप पे चढा ये शाय्र बनने का जूनून क्यू है ?." :) बढिआ जी, पर पुराने शायरो को तसल्ली जरूर दे दे कि आप उनकी दुकान नही उखाडने जा रहे है :)
वाह,वाह केवल वाह.और कुछ कहना मुश्किल है.
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