कल की पोस्ट मे लिखा था आपलोगों को बताऊंगा राज इस पोस्ट जवाब का.
ये करतूत है इन महाशय की.
रिश्ते मे मेरे भतीजे हैं. मुझसे ही ब्लॉग बनाने और हिन्दी टाइप करने सम्बन्धी जानकारी ली. और मेरे ब्लॉग पर ही हाथ साफ कर लिया.
जब कभी मे घर से ब्लोग्बाजी करता हूँ ये कुर्सी डालकर बगल में बैठ जाते हैं और बड़े ध्यान से सब देखते हैं और इसी तरह मेरा लाग इन आईडी और पासवर्ड मालूम कर लिया और फ़िर अपने ब्लॉग पर पहली पोस्ट देने से पहले एक प्रयोग मेरे ब्लॉग पर कर लिया.
इससे समस्या को सुलझाने मे आप सब ने भी मेरी मदद की.संजीत जी की बात मानकर हार्ड डिस्क फॉर्मेट करने की तयारी हो चुकी थी पर तभी सागर जी और कुश के कमेन्ट से ध्यान दूसरी तरफ गया.
और खोज-बीन करने से जो नतीजा निकला वो आप सबके सामने है.
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लीजिये नीरज जी का ये शेर पढिये.
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"अब के सावन मे ये शरारत मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़कर सारे शहर मे बरसात हुई."
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24 comments:
हा हा आख़िर भतीजा किसका है... शुक्र है सब ठीक रहा.. यश के नये ब्लॉग के लिए शुभकामनाए..
:) सही जवाब तो अब मिला आपको :) शेर भी बहुत अच्छा है ..
हा हा हा :) पूत के पाव पालने मे ही नजर आ जाते है, यू ही थोडे ही कहा गया है जी :)
सभी हैंरान थे क्योंकर हुआ? क्या बात हुई
किसी ने हैक किया? कैसे खुराफात हुई?
यश के वश बालकिशन हो गये चक्करघिन्नी,
इक नया ब्लाग बना ये भली सौगात हुई
आप के घर में और क्या क्या होता है। और जो कुछ होता है, उसे ब्लागरों को क्यों परोस रहे हैं, और कुछ लिखने-पढ़ने के लिए नहीं है क्या?
कल जावेद अख्तर के शेर में गलतियां थीं, आज गोपालदास नीरज की गीतिका में। नीरज की पंक्तियां इस प्रकार हैं...
अबकी सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई।
मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई।
सही है गुरू.. भतिजा तो आपका भी गुरू निकला..
वैसे अनाम भाई कि बातों पर ध्यान ना दें.. ब्लौग होता किसलिये है, भई जैसे मन में आयेगा लिखेंगे.. जिन्हें गलतियां पढने का मन नहीं है वो ना पढें.. क्योंकि अपनी समझ में तो सभी ठीक ठाक ही लिखना चाहता है..
पहले अनाम और दूसरे अनाम अलग अलग व्यक्ति हैं.
पहले अनाम की बात पर तो ध्यान दे लीजियेगा.:)
अनाम भाई.. पहले वाले अनाम भाई ने तो बहुत ही उम्दा शेर सुनाया है.. शायद वो आप ही हैं.. बधाई.. मैंने बस अंतिम वाले अनाम भाई को ही पढकर वो कमेंट किया था.. माफी चाहूंगा.. :)
आपके शुभचिन्तक बन गये हैं। हिन्दी काव्य जल्दी ही सिखा देंगे!
हों अनामी या बेनामी, या सुनामी ही सही
ध्यान न दे बात का, बढ़ जायेगी खाता-बही
जो मिले सब गटक जा, दें नामवाले या अनाम
टिपण्णी की शक्ल में हो दूध, मट्ठा, या दही
सब ठीक है गुरु. शेर-वेर में लिखते समय गलती हो ही सकती है. अब देखो न, 'सारे शहर' और 'कुल शहर' एक ही बात है. अनाम भाई से माफी मांग लो. हम तो तुरंत मांगते हैं. माफी सबसे बड़ा हथियार है....:-)
अनाम भाई या बहन या जो कोई भी आप हैं.
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, मेरी गलतियों पर ध्यान दिया और मुझे इसके बारे में बताया.
आगे से कोशिश करूँगा कि आपको को निराश ना करूँ.
बस ये कृपा बानाये रखियेगा और मेरे ब्लॉग पर आते रहिएगा.
लेकिन बस एक ही बात से सहमत नहीं हूँ जो आपने लिखने पढने के बारे में की.
माफ़ कीजिये आप को अधिकार नहीं है जब तक आप अनाम रहते हैं तब तक इस बारे मे बात करने का.
शेष कुशल.
वाह ये भी खूब रही। :)
बाल किशन जी
गनीमत है आपको पता तो चल गया कि शरारत किसने की थी... बहुत बार तो यही बात सताती रहती है कि वो कौन था या थी????? :)
पहले ये बताइये की इस समस्या का पक्का हल निकला या नही........ और क्या गारंटी है की कल की पोस्ट आपके द्वारा ही लिखी होगी भतीजे महाशय के द्वारा नही :D
उसका भी एक ब्लॉग खुलवा दो यार .....
हा हा, मैने कमेंट में तब सबसे पहले यही लिखा था कि " अगर आपके किसी मित्र ने नही लिखी यह पोस्ट तब………"
इसीलिए कहा जाता है कि आदमी को अपनी परछाई से भी बचकर रहना चाहिए।
भतीजे को इसी बात पे मिठाई खिलाइए पहले फिर आगे देखा जायेगा :-)
बालक यश मुसद्दी बहुत होनहार मालूम पड़ते हैं. हा हा!!
उनकों हमारी बधाई दे दिजियेगा इतनी सफल पोस्ट के लिये जिसने न जाने क्या क्या सोचने को मजबूर किया.
कोई टिप्पणी नहीं चाचा-भतीजे के बीच का मामला है।
हिन्दी ब्लोग जगत
नित नये रुप मेँ
विकसित हो रहा है --
- लावण्या
होनहार बालक है। उन्नति करेगा।
घुघूती बासूती
हा हा हा, घर में छोरा नगर में ढिंढोरा या फिर घर का भतीजा ब्लोग ढहावे
माकूल जवाब दिया है बालकिशन जी आपने बेनाम को. वैसे यश ने अपना तो ब्लॉग बना ही लिया है सो अब आगे से आपको दिक्कत नही होगी. चाचा भतीजा अब मजे से ब्लोगियाईये
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