हम सब के जीवन में एक समय, एक दौर ऐसा भी आता हैं जब जीवन तमाम मुश्किलों, परेशानियों से घिरा रहता हैं। मित्र , संबंधी विश्वासघात करतें हैं। ऐसे ही गर्दिश के समय लिखी एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ।
विश्वास
हुआ आगमन जब प्रकाश का मनु के जीवन में,
प्रिय-प्रिय कहकर लिपट गई परछाई उसके चरणन में,
बन गया संबंध शाश्वत मात्र एक क्षण में,
किया स्वागतम उस मित्र का मनु ने हृदय आंगन में,
बाँध गयी डोरी विश्वास की जीवन के कण कण में,
परिवर्तनशील इस संसार में उलट गई जब समय की धारा,
अपनों के ही हाथों मनु आज एक बार फिर हारा,
घिर गया अन्धकार चंहु ओर से ,
मदद के लिए करता गुहार मनु जान चुका अब ये सच्चाई,
कौन देगा साथ तुम्हारा, इस घोर अन्धकार में,
जब छोड़ चुकी हैं साथ तुम्हारा,
स्वयम तुम्हारी ही परछाई।
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3 comments:
बालकिशनजी, यह महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इस तरह के स्थितियां बार-बार आती हैं जब कुछ नहीं सूझता। और लगता है कि अपनी परछाई भी उलट चल रही है। उस समय केवल मानसिक संतुलन बनाये रखना ही सबसे महत कार्य होता है।
मैं सोचता था कि मैं ही परेशान रहता हूं। आप तो उन क्षणों के सुहृद निकले!
मैं बेनामी को जरुर जवाब दूंगा...लेकिन अभी समय नही मिल रहा है..
बाल किशन जी
आप ने बहुत ही गंभीर बात की है अपनी रचना में . में तो आप का परम भक्त हो गया हूँ . ऐसे ही लिखते रहें सतसई के दोहों की तरह "देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर.
नीरज
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