Tuesday, October 2, 2007

जमाने का गर्द और इंसानियत का दर्द

नेता बनने की कोशिश की, नहीं बन सका. जब तक स्कूल में था, तब तक छात्र-राजनीति स्कूल में वर्जित थी. कालेज में पहुंचा तो वहाँ 'छात्र नेताओं' को देखकर होश फाख्ता हो गए. सभी छात्र-नेता कम से कम चालीस साल की उम्र के थे. तो नेता बनने का सारा चांस खो दिया. अभिनेता बनने की कवायद जैन विद्यालय में किए गए नाटकों से आगे नहीं पहुँच सकी. दिन गुजरते गए. एक दिन ख़ुद को ऎसी जगह पाया जहाँ नेता और अभिनेता बनने का विचार मन से जाता रहा. रोज सबेरे मजदूर नेताओं की हाय-हाय सुनने को मिलती थी. बाद में पता चला कि आम आदमी बन कर जीना पडेगा. वैसे कुछ बुरा नहीं है, बुरी बात केवल इतनी सी है कि आम आदमी बनकर जीने में बड़ी मसक्कत की जरूरत है. बकौल निदा फाज़ली साहब;

मन बैरागी, तन अनुरागी कदम-कदम दुशवारी है
जीवन जीना सहल न समझो, बहुत बड़ी फनकारी है

समझ गए। रोज, नित नई फनकारी दिखाने का मौका देती है जिंदगी. जहाँ तक हो सकता है, दिखाते हैं. कभी-कभी सरेंडर करने की जरूरत महसूस होती है तो वो भी कर देते हैं.

पिछले सात महीनो से हिन्दी ब्लॉग पढ़ने की आदत सी हो गयी है। एक-दो को तो अच्छे ब्लॉगर बनने की सलाह भी दे चुका हूँ. कुछ लोगों ने सलाह के लिए क्रेडिट भी दिया. आज किसी ने फिर से कहा तो मैंने सोचा कि एक ब्लॉग बना ही लूँ. और फिर आम आदमी को चाहिए भी क्या. रोटी, कपडा, मकान और एक ब्लॉग. पहले के तीन तो थे, चौथे की कमी थी, वो भी आज हो गया.

बात जमने-जमाने की नहीं है. बात है तो केवल इतनी सी कि जमाने का गर्द और इंसानियत का दर्द, इन दो चीजों की बात जब तक मन में आयेगी, ब्लागरी भी चलती रहेगी.

4 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

चलिये; जिन लोगों ने क्रेडिट दिया होगा, अब आपको ब्लॉगर बनने पर वही सलाह देंगे और क्रेडिट की चाह करेंगे.
स्वागत. अब दनादन 20 पोस्ट लिख मारिये! :)

Udan Tashtari said...

फिर आम आदमी को चाहिए भी क्या. रोटी, कपडा, मकान और एक ब्लॉग. पहले के तीन तो थे, चौथे की कमी थी, वो भी आज हो गया.

-इसी को तो चाहत कहा गया है वेदों में-कभी कम नहीं होती. कल को पाँचवी भी जुड़ जायेगी-तब कहोगे और क्या चाहिये-रोटी, कपड़ा, मकान, ब्लॉग और टिप्पणी.....:)

Udan Tashtari said...

अरे, धड़धड़ी में स्वागत कीर्तन करना तो भूल ही गये. तो सुनिये रिकार्डेड मैसेज :)

स्वागत है आपका हिन्दी चिट्ठाकारी में. अब नियमित लिखना प्रारंभ करें. अनेकों शुभकामनायें. ब्लॉग संबंधित किसी भी मदद के लिये सूचित करें.

-समीर लाल

नीरज गोस्वामी said...

1950बालकिशन जी
बढ़ी उम्र और बढ़े पेट वाले अधेड़ इंसान यदि नेतागिरी नहीं कर पाते तो ब्लॉग गिरी करने लगते हैं. इन दोनों कार्यो में ही ये त्रासदी आड़े नहीं आती बल्कि अच्छे से खप जाती है. इस बिरादरी में आप का स्वागत है. मन का हाजमा ठीक रहे इसके लिए ज़रूरी है की भुनभुनाने की अपेक्षा कुछ भी लिखा जाए, हम जैसे पढने वालों की कमी थोड़ी है दुनिया में.

नीरज