Saturday, May 31, 2008

ब्लागवाणी /चिट्ठाजगत - कृपया इस रहस्य को सुलझाए.

कल यानी दिनांक ३०-०५-०८ को सुबह नौ बजे के बाद से रात तकरीबन १० बजे के बीच मै नाहीं कंप्युटर पर बैठ सका और नाहीं कुछ लिख सका और नाहीं टिपण्णी कर सका. कहने का मतलब ये कि मैंने अपने ब्लॉग पर
log -in ही नही किया. फ़िर ये पोस्ट जवाब कैसे आई.

नहीं समझ पा रहा हूँ.

कोई इस रहस्य को सुलझा दे.

खैर.

पता चले या ना चले. उस गुमनाम मित्र के लिए मेरी तरफ़ से संदेश.

Friday, May 30, 2008

जवाब

जवाब एक ही है की 'हमको नही मालूम'

तुमको क्या मालूम

दुश्मन तो खुले-आम करते है दुश्मनी की बातें
दोस्त मगर कब क्या कर गुजरे तुमको क्या मालूम.

अगर पोंछने वाला कोई हो साथी तो
आंसुओं का मज़ा क्या है तुमको क्या मालूम.

अरे नादान सूरज चाँद सितारों की बातें करता है
आसमान मे कब बादल छा जाय तुमको क्या मालूम.

गैरों पे करम अपनों मे सितम करवा दे
ये कमबख्त इश्क क्या-क्या करवा दे तुमको क्या मालूम.

वो और होंगे खंजरो-नश्तर चाहिए कत्ल करने के लिए जिनको
तेरी आंखो ने कितनों को मार डाला तुमको क्या मालूम.

जन्नत खरीद ले तू सारी या खुदाई सारी
एक बच्चे की खुशी मे होता खुदा खुश तुमको क्या मालूम.

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बताएं:-
१) पान क्यों सड़ा?
२) घोडा क्यों अड़ा?
३) पाठ क्यों भुला?

(जवाब सिर्फ़ एक ही है.)

Thursday, May 29, 2008

एक रहस्य - एक सपना

रात........ आसमान से सुनहरी धूप के रथ पर सवार एक श्वेत, सुंदर परी मेरे घर के पास वाले कुएं की मुंडेर पर उतरी. मुझे आवाज दे देकर उसने जगाया और कभी मेरे बालों को सहलाती हुई कभी गुदगुदाती हुई हाथ पकड़कर मेरा नीले, तारों भरे आकाश मे उड़ने लगी.

जंगल, नदी, नाले, पर्वत, खेत सब पार करते हुए हम दोनों आकाश मे उड़ते फिरने लगे...........उसके साथ से मुझे असीम शान्ति और सुख मिल रहा था. रिम-झिम बारिश की बूंदों मे भीगते हम दोनों उड़ते रहे......उड़ते रहे...... फ़िर बादलों मे बने एक सुंदर,विशालकाय भव्य महल में हम उतरे. उस महल मे हम दोनों के अलावा कोई नही था. पर स्याह काली रात का अंधकार और काले बादलों से घिरा वो महल मुझे भीतर से डराने लगा तभी वो श्वेत, सुंदर परी मेरा हाथ अपने हाथो मे लेते हुए बोली डरो मत राजा ये मेरा ही महल है. पर यंहा मुझे क्रूर राक्षस ने बंदी बनाकर रखा है. रात मे जब वो सोता है तो मैं बाहर की दुनिया मे जाती हूँ. और एक दोस्त बनाती हूँ. शायद कोई दोस्त मुझे इस राक्षस से बचा सके........ वो सुबकने लगी ...... और फ़िर मेरा हाथ पकड़े-पकड़े ही बोली क्या तुम मुझे बचाओगे राजा? मैंने कहा मैं तुम्हे जरुर बचाऊँगा इस राक्षस से, मैं उसे मार डालूँगा पर ये सब बातें सिर्फ़ उसके मोह मे मेरे मुंह से निकल रही थी और कंही एक डरावना सा ख्याल भी मन मे अ रहा था कि वो राक्षस अभी आजाये तो मुझे निश्चय ही मार डालेगा. हम इसी तरह से बातें कर ही रहे थे कि यकायक जोरदार गर्ज़न सुनाई दी जैसे पहाड़ कि ऊँची चोटी से किसी ने बड़ी चट्टान धकेल दी हो, सुंदर परी घबरा गई, वो बोली तुम्हे जाना होगा मेरे राजा, क्रूर राक्षस के जागने का समय हो गया है वो तुम्हे मार डालेगा. इतना कहकर उसने मेरा हाथ पकड़ा और आसमान की ऊँचाइयों पर ले गई और बोली अलविदा मेरे राजा.......फ़िर मिलेंगे.......वो रो रही थी.............

मैं चीखा नहीं........नहीं.... ....तुम नहीं जा सकती इस तरह मझधार मे मुझे छोड़कर...... मैं इतने ऊंचाई से नीचे कैसे जाऊंगा, घर कैसे पहुंचूंगा, माँ राह तकेगी......पर वो नहीं मानी. उसने कहा नहीं राजा मुझे जाना ही होगा हो सका तो फ़िर मिलूंगी और उसने धीरे से मेरा हाथ छोड़ा और फ़िर आकाश की गहराइयों मे खो गई......... उस घड़ी लगा जैसे जिंदगी ने मेरा हाथ छोड़ दिया है......मैं ऊंचाई से गिरने लगा. लगा कि जैसे सब ख़त्म...... अब नहीं बच सकूँगा. मैंने सभालने की कोशिश की और फ़िर धीरे... धीरे..... संभलने लगा और ....... और...... फ़िर जैस जमीन पर चलता था वैसे ही आकाश मे चलने लगा. मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. उस घड़ी सुंदर परी का गम दिमाग से जाता रहा, मैं फ़िर आकाश की उन्चाईया छूने लगा.

बादलों ने मोटी मोटी जल की बूंदों से धरती को भिन्गोना शुरू कर दिया था. मुझे इतने ऊंचाई पर जाकर बादलों के साथ खेलकर असीम आनंद मिल रहा था सारे के सारे तारे मेरे इर्द-गिर्द थे मैं कभी तारों के बीच......... तो कभी बादलों के बीच....... आनंद अपनी चरम सीमा पर था. फ़िर मैंने सोचा की ऊपर से धरती कैसी दिखती है जाकर देखूं.
मैं थोड़ा नीचे आया तो ये क्या......... जल की जो बूंदे आकाश से गिर रही थी वो धरती पर पड़ते ही विशाल अंगारों का रूप धारण कर ले रही थी ...... आसमान के तारे भी आग का गोला बन बन कर धरती पर गिर रहे थे..... .... समूची धरती एक विशाल अग्नि कुंड बन चुकी थी......... इन अग्नि कुंड मे सब कुछ जल कर राख हो रहा था......चारों तरफ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ आग थी.........

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मेरी पिछली पोस्ट पर ब्लोगर बंधुओं द्वारा की गई टिप्पणियों मे समस्या के हल खोजने के बजाय मुझे सांत्वना और समझौते के स्वर ही ज्यादा सुने दिए. ये शिकायत नहीं है. खैर प्रस्तुत समय के लिए मैंने इस सांत्वना मे ही समस्या का हल पाया है.
आप सबका धन्यवाद.

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वो देखो गम के ठीक पीछे खुशी खड़ी हमारा इंतज़ार कर रही है.

Tuesday, May 27, 2008

एक बहस की शुरुआत फ़िर से -- कृपया करें.

बहुत हो-हल्ला हो रहा है आजकल. ब्लॉग ये है, ब्लॉग वो है, ये होना चहिये, वो होना चाहिए, वो नहीं होना चाहिए . ब्लोगियर को ये लिखना चहिये, ये नहीं लिखना चाहिए आदि-आदि. कई एक तो एक-आध दिन परेशान भी दिखते हैं कि अपने ब्लॉग जगत मे ये क्या हो रहा है. कल-परसों शिवजी हो रहे थे आज समीर भाई परेशान दिख रहे हैं. कुश भी चिंतित है. और भी कई महानुभाव चिंतित हैं.

इन सब के मूल मे क्या होता है? दरअसल हो क्या रहा है कि गाहे-बगाहे कुछ एक विवाद किस्म के मसले खड़े होते हैं या यूं कहिये खड़े किए जाते हैं. उनपर पोस्ट लिखी जाती है अब चूँकि विवादास्पद पोस्ट पढी भी ज्यादा जाती है और कमेंट्स भी ज्यादा मिलते हैं तो लोग इनकी तरफ़ आकर्षित भी ज्यादा होते हैं. पर खतरनाक बात ये है कि इन पोस्ट और इन पर आने वाली टिप्पणियों मे जिस भाषा का इस्तेमाल होता है वो बहुतो को गले नहीं उतरती और उतरनी भी नहीं चाहिए. आख़िर हम सब जुड़े हैं कुछ कारणों से कोई अभिव्यक्ति की बात कर रहा है, कोई सृजन की बात कर रहा है, कोई मस्ती की बात कर रहा है. तो फ़िर ये अभद्रता कंहा से आगई. आप किसी से सहमत नहीं हैं तो विरोध प्रदर्शन के कई रास्ते है पर अभद्रता या फ़िर गुंडई तो कतई नही.

विवाद हो बहस भी हो खूब जम कर हो पर जिस स्तर पर हम उतर आते है वो गंदगी का पर्याय बन जाता है. आप पिछले छ महीने साल भर के ब्लोग्गिंग को ध्यान से देंखे तो पता चलेगा का कि इन विवाद की जड़ें सिर्फ़ आठ-दस ब्लोगों से ही निकलती है. और इनको बढावा देने मे कुछ तथाकथित बड़े ब्लोगियारों का हाथ होता है. जो ४-५ दिनों के अंतराल मे ही इस बिषवृक्ष को इतना बढ़ा देतें है कि कईयों का दम घुटने लगता है.

इस बीमारी से ब्लॉग जगत को बचाने के लिए हम सब को प्रयत्न करना होगा. जो जितना पुराना है, जितना वरिष्ठ है उसकी जिम्मेदारी उतनी ही अधिक होगी. सिर्फ़ एक - दो पोस्ट लिख कर अपनी पीडा व्यक्त कर आप अपने कर्तव्य की इतिश्री नही कर सकते. और नाही कोई तटस्थ रहकर कर सकता है क्योंकि :-

"जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध."

हमे बहुत सी बातों के बारे मे सोचना होगा जैसे:-

और क्या किया जाय कि इस तरह की बातों की पुनरावृति ना हो?
जो ब्लोगियर इस तरह की हरकतें करे उसके खिलाफ क्या कदम उठाएं जायं?
कैसे हम यंहा के वातावरण को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं?
आने वाले समय को हम क्या मुंह दिखायेंगे?


इन्ही सब बातों पर चर्चा के लिए मैंने ये शुरुआत करने की कोशिश की है इस अर्ज़ के साथ कि हर ब्लोगियर इस विषय को आगे बढ़ने के लिए अपने विचार एक पोस्ट के माध्यम से जरुर सब के सामने रखें.
आख़िर जब हम लोग घटिया विवाद के बिषवृक्ष को बढ़ने मे मददगार हो सकते है तो फ़िर ये तो हमारे अपने ब्लॉग जगत का मामला है. क्योंकि ये ब्लॉग जगत हम सबका है. इसे स्वच्छ और साफ रखना हम सबका कर्तव्य हो जाता है.


मुस्कुराते रहिये.

Sunday, May 25, 2008

"असफल साहित्यकारों का जमावड़ा -हिन्दी ब्लागिंग"

अपनी (अ) साहित्यिक जरूरतों और कुछ बेकार सी व्यस्तता के कारण कई दिनों या शायद कई महीनों बाद ब्लॉग पर वापस आना हुआ. बीच-बीच में कुछ कविता वगैरह ठेल दिया करता था. लेकिन आज राहत के साथ आए. राहत फतह अली खान के साथ नहीं. वो तो बेचारे तीन-चार दिन पहले ही पाकिस्तान वापस लौट चुके हैं. राहत से मेरा मतलब टाइम निकाल के. खैर, आते ही जिस बात ने मेरी नज़र अपनी तरफ़ खींच ली (जी हाँ, लगा जैसे रस्सी बांधकर खीच ली), वो थी साहित्यकार बनाम ब्लॉगर. बहुतों ने हाथ साफ कर लिया है. कई तो पूरी तरह से नहा भी चुके हैं. बोधि भाई, अजदक जी, प्रत्यक्षा जी, headmaster saab मसिजीवी, शिवजी और अभय जी और कई है जिन्होंने अपने घी होने के धर्म का सफलतापूर्वक निर्वाह किया और पिघल-पिघल आग में जा घुसे.काकेश जी, समीर भाई,ज्ञान भइया , दी ग्रेट पंगेबाज,नंदिनी जी , गौरव जी वगैरह ने भी इस मंहगाई के जमाने में टिपण्णी रुपी घी झोंक दिया.

वैसे इतने दिनों गायब रहकर मैंने ब्लागर्स की कुछ विशिष्ट प्रजातियों पर गहन शोध किए हैं और चाहता हूँ की नतीजा आपतक पहुँचा दूँ. और क्यों न पहुँचाऊँ? कौन सा सेंसर बोर्ड आदे आएगा इस काम में? आपको बता दूँ कि मेरे शोधानुसार कुल चार तरह के साहित्यकार और ब्लॉगर होते हैं.

एक तो वे साहित्यकार जो पाठकों या टिप्पणियों के प्रभाव से पूरी तरह से मुक्त होतें हैं. उनके पास ये पाठक और उनकी टिप्पणियां खुदबखुद पहुँच जाती है. और अगर ना भी पंहुचे तो उनकी अनुपस्थिति से बगैर प्रभावित हुए वे अपना लेखन जारी रखतें है. इस प्रजाति के साहित्यकार लगभग विलुप्त हो चुके है. और इनकी संख्या नगण्य हैं.

दूसरे प्रकार के वे ब्लोगर होते है जिन्हें पाठकों (और उपधियायों) और उनकी टिप्पणियों की कोई कमी नहीं महसूस होती है. इसके पीछे कारण ये बताया जाता है की ये स्वयं भी बहुत बड़े पाठक होते है और अपने ब्लॉगर भाइयों को कभी भी टिप्पणियों की कमी महसूस नहीं होने देते. इस प्रजाति के ब्लोगर बड़े निर्दोष प्रकार के होते है और बड़े ही निर्विकार भाव से अपनी टिपण्णी का खजाना लुटाते रहतें हैं. इनका मूल-मंत्र "सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय" होता है. खाकसार की गिनती भी चंद महीनों पहले तक इसी प्रजाति के ब्लोगरों मैं होती थी. और अब वो उसी रुतबे को वापिस हासिल करने को बेताब और कर्मरत है.

तीसरे प्रकार के वे साहित्यकार कम ब्लॉगर होते हैं जो किसी भी क्षेत्र मे कोई झंडा नहीं गाड़ सके हैं. इस प्रजाति के साहित्यकार/ब्लॉगर अपनी प्रजाति को लेकर दुविधा और संशय मे रहते हैं कि वे अपने आप को साहित्यकार माने या फ़िर एक ब्लॉगर. और यही दुविधा इनकी असफलता का कारण बनती है. ब्लागिंग ग्रह पर यह प्रजाति प्रचुर मात्रा मैं पाई जाती है. इनका लिखा भी बहुधा लोगों को समझ नहीं आता है. ये एक अलग विचार का मुद्दा बन सकता है कि इनका लिखा पाठको को न समझ मे आना इनकी कमी है या फ़िर पाठकों की. इस प्रजाति के प्रभाव के कारण ही ब्लागिंग ग्रह से बाहर के प्राणी यह कहने की हिमाकत करतें है कि "असफल साहित्यकारों का जमावड़ा -हिन्दी ब्लागिंग"

ब्लागरों कि चौथी प्रजाति बड़ी ही अजीब किस्म कि होती है. इन्हे ना साहित्यकार से कोई सरोकार है ना ब्लॉगर से. ये "स्वान्त सुखाय" लिखते है. जब मन हुआ कुछ लिख दिया और जब मन हुआ टिपिया दिया. इन्हे अपनी प्रजाति को लेकर कोई संदेह नही हैं. और ये शुरू से जानते हैं कि ये कंही भी कोई झंडा नहीं गाड़ सकते. नाचीज के अन्दर वर्तमान मे इसी प्रजाति के गुण मौजूद हैं और किसी तरह से इस प्रभाव से मुक्त होकर अपनी आप को सफल साहित्यकार या सफल ब्लॉगर बनाने की जुगाड़ मे है. इस सन्दर्भ मे सभी प्रजातियों के सुझावों का स्वागत हैं.

DISCLAIMER:-

किसी भी प्रकार के विवाद से बचने के लिए यंहा उदाहरणार्थ साहित्यकारों एवं ब्लागरों के नाम नही दिए गए हैं.
सभी प्रकार की प्रजातियों से अनुरोध हैं की शोध के परिणामों के अनुसार अपना मूल्यांकन कर लें. शोध पर आपकी टिप्पणियों का स्वागत हैं. टिप्पणियों मे अगर अपनी प्रजाति को स्पेसिफाई कर सकें तो आगामी शोधों के लिए ये एक अमूल्य धरोहर साबित होगी.

Tuesday, May 20, 2008

'उनकी' एक कविता

जिन्होंने भी परसाई जी का उपन्यास, रानी नागफनी की कहानी पढा है, उन्हें वह कवि जरूर याद होंगे जो कुँवर अस्तभान को कविता सुनाकर उनका मनोरंजन करना चाहते हैं. उन्ही कवि की एक कविता पढ़िए...

कल तक मैं समंदर था
स्थिर था
धरती को डुबोये था
एक दिन इच्छा हुई;
मैं आकाश में उड़ जाऊं
एक गौरैया की तरह

कभी सोचता;
'काश, कि मैं हिमालय पर बहता'
तो हिमालय को ख़ुद में डुबो लेता
किंतु हाय; ऐसा हो न सका

लेकिन ये कौन है
जिसने मुझे हिमालय से अलग कर रक्खा है?
ये कौन है
जो मुझे रोकता है आकाश में उड़ने से?
ये कौन है
जो मुझे रोकता है गौरैया बनने से

ये नीली व्हेल
ये शार्क
ये छोटी छोटी मछलियाँ
मेरी किस्मत में क्या यही हैं?
क्या मैं कभी हिमालय को नहीं डुबो सकूंगा?
कोई मुझे क्यों नहीं बताता?

जिसने भी मुझे रोक रक्खा है
उससे मेरी विनती है;
एक बार तो मौका दो
हिमालय को ख़ुद के अन्दर डुबोने का
गौरैया बनकर उड़ने का

एक बार मौका दो
कि मैं भी कश्मीर में बह जाऊं
वहाँ से हिमाचल होते हुए
दिल्ली तक पहुँच जाऊं