Wednesday, January 30, 2008

धन्यवाद है.......

मेरी पिछली पोस्ट में मैंने सूडान की महान कवियित्री, शियामा आली की एक कविता पोस्ट की. कविता बहुत सारे साथियों को अच्छी लगी. इसी कड़ी में प्रस्तुत है इराक की मशहूर कवियित्री नजीक अल-मलाईका की एक कविता.


धन्यवाद है उन्हें
इसलिए कि;
उन्होंने कबीले बनाए
लेकिन
मर्दों के कबीले नहीं बनाए

धन्यवाद उनको भी
इसलिए कि;
उन्होंने कभी जिद नहीं की
कभी जिद नहीं की
कि;
अपना कबीला बनायें

धन्यवाद उस सोच को
उस सोच को
जिसने कबीले स्वीकार किए
लेकिन;
अलग-अलग नहीं

मेरा धन्यवाद है
उस मानवता को भी
जो बनी तो है दोनों से
लेकिन जिसने सीख दी
कि;
अपने जैसों को मान दिया
तो बहुत बड़ी बात नहीं
बात तो तब बने
जब उन्हें भी मान दें
जो अपने जैसे नहीं

11 comments:

काकेश said...

बड़ी महान महान रचनाऎं ला रहे हैं जी. कभी दिनकर जी या पंत जी का भी कुछ सुनाइये जो नैट पर उपलब्ध ना हो. यह तो हम पढ़ ही रहे हैं.

mamta said...

आपके माध्यम से कुछ नायाब कवितायें पढ़ने को मिल रही है।
धन्यवाद।

Shiv said...

बहुत बढ़िया कविता है भाई. सरल कविता और समझ में आनेवाली.....वैसे काकेश जी का कहना भी सही है. ये कड़ी ख़त्म हो तो, दिनकर जी, बच्चन जी, पन्त जी वगैरह की कवितायें भी पोस्ट करो.

नीरज गोस्वामी said...

बालकिशन जी
आप समुद्र मंथन के समान ढूँढ ढूँढ कर हीरे खोज कर ला रहे हैं जिनकी चमक तो पढने में नज़र आती है लेकिन दीदार नहीं हो पता. ऐसे नाम और रचनाओं के रचयिता के अगर दीदार हो जायें तो सोने में सुहागा हो जाए. हमने तो भाई मलईका अरोरा के बारे में ही सुना है और आप ने हमें अल- मलईका का लिखा पढ़वा दिया. बहुत खूब
नीरज

Sanjeet Tripathi said...

जे बढ़िया रही भैया, जारी रहे ऐसे ही खोजी अभियान!!

डॉ० अनिल चड्डा said...

बहुत अच्छा प्रयास है । बधाई ।

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत स्तरीय कविता। इससे ज्यादा कहा तो कहीं पुरुष-नारी वाद के अर्थ न निकलने लगें।
सच मे‍ - अब दिनकर जी को ठेलो!

Gyan Dutt Pandey said...

@ नीरज गोस्वामी - नीरज जी नजीक अल-मलाईका अब नहीं रहीं। आप यहां पढ़ें उनके बारे में।

अजित वडनेरकर said...

बहुत ही बढ़िय कविताएं है। और भी चीज़े पढ़वाइये।
इनका अनुवाद मूल अरबी से हुआ है या अंग्रेजी से। अनुवादक का नाम भी हो सके तो ज़रूर बताएं।

बालकिशन said...

किसी कारण से रंजना जी अपना कमेंट पब्लिश नहीं कर सकीं. ये उनकी मेल से भेजी गई टिपण्णी है...

कोटिशः धन्यवाद बाल किशन भाई. कविता पढ़कर बहुत प्रसन्नता हुई. मानव मन की अनुभूतियों को कविता में पढ़ना एक अद्भुत एहसास देता है जिसे शब्दों में व्यक्त करना एक पाठक के लिए आसान नहीं. और आपने तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की जानी-मानी कवियित्री की रचना छाप दी. सो असर दोगुना हो जाता है.

काकेश भाई की बात से मैं सहमत हूँ. कभी-कभी हमारे अपने कवियों और कवियित्रियों की कवितायें भी पब्लिश करें.

राज यादव said...

इससे नियमित किए रहे ....बहुत ही अच्छा प्रयाश है..