Monday, January 28, 2008

सूडान की महान कवियित्री शियामा आली की एक कविता.


प्रस्तुत है सूडान की महान कवियित्री शियामा आली की एक कविता.

तुम मानव हो, हम भी हैं
तुम्हारे अन्दर खून है
और हमारे अन्दर भी
तो क्यों बहाते हो इसे

हवा की रफ़्तार तेज है
इसमें प्यार बहाकर देखो
हो सकता है;
उसमें धूल के कण मिल जाएँ
लेकिन प्यार बहेगा जरूर

और जब यही प्यार
मिलेगा किसी से
तो जरूर बताएगा कि;
हमारे अन्दर
धूल मिल सकती है
लेकिन इसमें
खून नहीं मिला
इसलिए;
हमें अपने पास रखो

8 comments:

Shiv said...

भाई बहुत बढ़िया कविता छाप दी है आपने. इतनी बढ़िया प्रस्तुति के लिए आप साधुवाद के हकदार हैं. कुबूल करें.

अमिताभ मीत said...

सुबह का पहला पोस्ट ये कविता ............ बहुत ही बढ़िया. Very thoughtful, indeed. शुक्रिया.

anuradha srivastav said...

हवा की रफ़्तार तेज है
इसमें प्यार बहाकर देखो
हो सकता है;
उसमें धूल के कण मिल जाएँ
लेकिन प्यार बहेगा जरूर

एक अच्छी कविता पढवाने के लिये धन्यवाद.........

Gyan Dutt Pandey said...

अपने सतरंगी ब्लॉग पर आठवां रंग लाने के लिये बहुत साधुवाद बालकिशन। इसी तरह दुनियाँ का सच हमारे सामने लाते रहो - यदा कदा।
प्रेम, धूल और खून में एक ही तत्व तो है! चाहे स्थूल हो या सूक्ष्म!

mamta said...

एक बेहतरीन कविता पढ़वाने का शुक्रिया।

Sanjeet Tripathi said...

क्या बात है प्रभो, व्यंग्यादि के बाद इतनी बढ़िया कविता ले आए।
छा गए!!
पसंद आई!!

नीरज गोस्वामी said...

भूल हुई, हम केवल ज्ञान भैय्या को ही पढ़ा लिखा समझते थे लेकिन आप तो छुपे रुस्तम निकले. सुडान का नाम हम सुने थे लेकिन वहाँ एक ऐसी विलक्षण कवयित्री भी हैं ये ना पता था. बहुत सार गर्भित कविता के लिए साधुवाद धन्यवाद.
नीरज

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

... और जब यही प्यार
मिलेगा किसी से
तो जरूर बताएगा कि;
हमारे अन्दर
धूल मिल सकती है
लेकिन इसमें
खून नहीं मिला
इसलिए;
हमें अपने पास रखो.

सोचने को मजबूर कर देनेवाली कविता है. बहुत उम्दा और सादगी ऐसी कि इसे 'अंदाज़-ए-मीर' कहना उचित होगा.