Saturday, January 12, 2008

मनोहर भैया का निन्दारस

मनोहर भैया दुखी टाइप दिख रहे थे. मुझे देखते ही बोले; "हिन्दी ब्लागिंग की दुनिया जैसे गंदी दुनिया कहीं नहीं है. कैसे-कैसे लोग रहते हैं इसमें."

मैंने कहा; "मनोहर भैया, हिन्दी ब्लागिंग की दुनियाँ तो उसी दुनियाँ में है, जिसमें हम और आप रहते हैं. वैसे अब तो आप भी इसी दुनियाँ का हिस्सा हैं. काहे नाराज़ हैं इतना?"

बोले; "नाराज नहीं होंगे तो और क्या होंगे? पुरस्कार की घोषणा हो गई. क्या ज़रूरत थी ऐसे फालतू पुरस्कारों की? इन पुरस्कारों से क्या मिलने वाला?"

मैंने कहा; "भैया, पुरस्कारों का चलन तो सब जगह है. तो फिर ब्लागिंग में भी हो ही सकता है. और फिर आप इतने परेशान क्यों हैं?"

मनोहर भैया ने मुझे नाराज नजरों से देखा. लगा जैसे मुझसे समर्थन की आशा लगाए बैठे थे और न मिलने पर नाराज हो लिए. फिर बोले; "हम समाजवादी हैं. हमारा जीवन-दर्शन ही नाराजगी पर टिका है. हम नाराज नहीं होंगे तो और कौन होगा?"
"लेकिन भैया, हर बात पर तो नाराज नहीं हुआ जा सकता न. किसी को पुरस्कार मिला तो उसे और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलेगी"; मैंने उन्हें समझाते हुए कहा.

मेरी बात सुनकर और बमक गए. बोले; "सृजनात्मक कार्य नहीं होता इस ब्लागिंग के जरिये. केवल पुरस्कारों से क्या होने वाला?"

मुझे उनकी बात अजीब लगी. मैंने कहा; "मनोहर भैया, अब तो आपका भी ब्लॉग है. आप बतायें, आपने कितनी पोस्ट लिखी जिनमें सृजनात्मक कार्य दिखाई देता है. आपने ख़ुद अभी तक सात पोस्ट लिखी है. उसमें से तीन पोस्ट केवल ब्लागिंग और ब्लॉगर को गरियाने के लिए लिखी. बाकी दो में ब्लागरों के लेख को कचरा बताया. एक में पुरस्कारों की निंदा कर डाली. आपकी नज़र में क्या निंदा ही सृजनात्मक कार्य है?"

मेरी बात सुनकर भड़क गए. बोले; "मैंने तो केवल आईना दिखाया है. जो देखे उसका भी भला और जो न देखे उसका भी. लेकिन मेरी बात सुन लो तुम. इसी तरह्स ऐ चलता रहा तो हिन्दी ब्लागिंग का कोई भविष्य नहीं है. मुझे क्या, जब तक ब्लागिंग के जरिये समाजवाद लाने की आशा मन में रहेगी, ब्लागिंग करता रहूँगा. जिस दिन आशा नहीं रहेगी, और कोई नया रास्ता देखूँगा."

इतना कहकर मनोहर भैया चले गए. जिस तैश के साथ गए, लगा जैसे कभी वापस नहीं लौटेंगे. लेकिन हैं तो समाजवादी, इसलिए मुझे पूरी आशा है कि मनोहर भैया फिर से एक पोस्ट लिखेंगे. शरीर में निंदारस जो उत्पन्न करना है. डाक्टर ने बता रखा है कि शरीर में निन्दारस की कमी हुई तो भोजन नहीं पचेगा.

5 comments:

काकेश said...

क्यों ना मनोहर भैया को राखी सावंत से मिलवा दें...कुछ तो खिचड़ी पकेगी ना...

http://kakesh.com/?p=248

Shiv said...

मनोहर भइया को रखी सावंत से मिलवा दो. काकेश जी का सुझाव सही है. दोनों मिलकर...............:-)

Gyan Dutt Pandey said...

बालकिशन जी, शिव कुमार मिश्र से मेरी तरफ से हवाला में १०० रुपये ले लीजिये; पर बदले में मनोहर भैया के ब्लॉग का पता बता दीजिये! :-)

Sanjeet Tripathi said...

क्या बात है!!
सटीक है एकदम!

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया लिखा।