प्रस्तुत है श्री जयराम 'आरोही' की एक कविता "दुःख-सागर". आप कविता बांचिये.
कैसे बारिश लताडती है
सिकुड़े हुए पीले पत्तों को
कागज़ की नावों को
सड़े हुए गत्तों को
झारखंडी झुरमुटों का लतियाया जाना
संवार पायेगा जंगलों को?
खिसियाई बिल्ली रोक पाएगी
चूहों के दंगलों को?
टुटही छतरी ओढे बलेशर
कांख में पनही दबाये भुलेषर
खींचेंगे बिरहा का तान
करेंगे सच का संधान?
देखेंगे कोसी की बाढ़
वही सावन, वही असाढ़
कहाँ से लौकेगा सुख?
छोड़ कर जाएगा?
हिचकोले मारता दुःख?
दुनियाँ भर की अमीरी
सतनारायण की कथा वाली पंजीरी
न्याय की गुहार लगाता लतखोर
लात खाने के लिए तैयार
रोटी का चोर
जीने की लडियाहट
चार पैसे कमा लेने की चाहत
दबे हुए कन्धों का भार
कौन थामेगा?
कहाँ से आएगा?
कोई अवतार?
सुख का सरग-बिल-खोज
प्रयागराज की गंगा का ओज
कौन से जनम में मिलेगा
ई पाथर कब हिलेगा?
Wednesday, September 16, 2009
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