Monday, December 24, 2007

गुजरात चुनावों का रिजल्ट और सतीश कुमार का सपना

सी सी टीवी का स्टूडियो. टाई और शूट पहने दो एंकर. दोनों के सामने लैपटॉप. दोनों 'आर्यावर्ते, जम्बू द्वीपे भारतवर्षे' होने वाले चुनावों के विशेषज्ञ. एक का नाम प्रमोद मालपुआ और दूसरे का नाम अज्ञान विकास. इन दोनों को चैनल ने जिम्मेदारी दी है कि 'गुजरात चुनावों के आनेवाले परिणामों की व्याख्या करें और कार्यक्रम के दौरान हर दस मिनट पर साल २००२ के दंगों का जिक्र करना न भूलें. इन्हें गुजराती जानकारी देने के लिए इनके वरिष्ठ सहयोगी सतीश कुमार को गुजरात में चार महीने से पोस्ट (ब्लॉग वाला पोस्ट नहीं) किया जा चुका है. सतीश कुमार ने पिछले चार महीनों में गुजरात, मोदी, सड़क, हिंदुत्व, आडवानी, विकास वगैरह पर अपना शोध पूरा कर लिया है. इन्हें प्रोफेसर बंदूकवाला ने ख़ुद इस शोध के लिए डिग्री इन्ही के टीवी कैमरे के सामने सौंपी है.

आठ बज चुके हैं. चुनाव परिणामों पर आधारित(?) कार्यक्रम शुरू होने वाला है. सबसे पहले प्रमोद मालपुआ टीवी पर दिखाई देते हैं. दिखते ही अपने मुखार-विन्दुओं से शुरू हो जाते हैं; "नमस्कार, मैं हूँ प्रमोद मालपुआ और मेरे साथ हैं हमारे सहयोगी अज्ञान विकास. जैसा कि आप जानते हैं, आज गुजरात चुनाओं के परिणाम आने वाले हैं. हम इन परिणामों को आपके सामने लाने की कसम खा चुके हैं. अज्ञान क्या लगता है आपको, गुजरात में आज क्या होगा?"

अज्ञान विकास को अब टीवी पर देखा जा सकता है. वे भी शुरू हो जाते हैं; "प्रमोद जी, देखने वाली बात है कि किस तरह से गुजरात में कहीं न कहीं एक तरह का भय का माहौल है. मोदी ने पिछले सालों में हिंदुत्व के मुद्दे को जिस तरह से आगे बढाया है, उससे गुजरात की जनता अब पस्त हो गई है. वैसे भी आपने देखा ही होगा, हमने अपने एग्जिट पोल में बताया ही है कि बीजेपी को अगर बहुमत मिलेगा भी, तो बहुत कम मार्जिन से."

"बिल्कुल, अज्ञान आप ठीक कह रहे हैं. मोदी ने जो कुछ भी किया है, उसका जवाब गुजरात की जनता इस चुनाव में उन्हें देगी. आप तो जानते ही हैं, मैं तो दुष्यंत कुमार को हमेशा कोट करता हूँ. उन्होंने लिखा है; हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए...."; प्रमोद मालपुआ जी ने कहा.

"प्रमोद जी, यहाँ देखने वाली बात ये भी है कि मोदी से ख़ुद उनकी पार्टी वाले भी डरे हुए हैं. उनकी अपनी पार्टी के नेता नहीं चाहते कि वे जीतें. उनकी पार्टी के प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने ख़ुद उनकी कितनी आलोचना की है, हम सभी देख चुके हैं. और तो और, पूरा देश त्रस्त है मोदी से" ; अज्ञान विकास ने मालपुआ जी से कहा.

तब तक सतीश कुमार टीवी स्क्रीन पर दिखाई देते हैं. उन्हें देखते ही प्रमोद मालपुआ जी ने कहा; "और हमारे संवाददाता सतीश कुमार अब हमारे सम्पर्क में हैं. आईये उनसे पूछते हैं कि शुरुआती रुझान किसकी तरफ़ हैं. सतीश क्या हाल है वहाँ. शुरुआती रुझानों से क्या लगता है आपको?"

"प्रमोद जी, जैसा कि आप जानते हैं, मैंने पूरे गुजरात पर हाल ही में एक समग्र पी एचडी की है. अपने अध्ययन और खोज से मैंने पता लगा लिया है कि इस बार मोदी का जीतना मुश्किल है. हमारे एग्जिट पोल के नतीजे हालांकि बताते हैं कि मोदी के जीतने का चांस है, लेकिन मुझे लगता है कि उनका जीतना मुश्किल है. फिर हमारी पार्टी ने इस बार के चुनावों में पूरी मेहनत की है. कल मेरी बात कुछ सट्टेबाजों से हुई है. इन सट्टेबाजों का मानना भी यही है कि हमारी पार्टी जीत जायेगी"; सतीश कुमार ने बताया.

सतीश कुमार अभी बात कर ही रहे थे कि उनका सम्पर्क काट दिया गया. अज्ञान विकास ने सम्पर्क टूटने को लेकर कहना शुरू किया; "सतीश भावावेश में कुछ ज्यादा ही बोल गए. असल में वे गुजरात में विरोधी पार्टी को अपनी पार्टी कह बैठे, जो उन्हें दर्शकों से नहीं कहना चाहिए था. हमने इसीलिए उनका कनेक्शन काट दिया. आपलोग भूल जाइये कि उन्होंने ऐसा कुछ कहा है. हम उन्हें जब याद दिला देंगे कि वे टीवी के संवाददाता हैं, किसी राजनैतिक पार्टी के सदस्य नहीं, तब थोडी देर बाद उनसे फिर से सम्पर्क साध लेंगे."

अब तक शुरुआती रुझान आने शुरू हो चुके हैं. सतीश कुमार को समझा-बुझाकर उनसे फिर ऐ सम्पर्क साधा जा चुका है. उन्हें अब टीवी स्क्रीन पर देखा जा सकता है. उन्हें देखते ही प्रमोद मालपुआ जी ने कहा; "अब सतीश से हमारा सम्पर्क हो गया है. सतीश, ये बताईये, क्या लगता है आपको? शुरुआती रुझानों से क्या किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है?"

"बिल्कुल, प्रमोद जी, जैसा कि मैं कह रहा था, शुरुआती रुझानों से लगता है कि मोदी की विरोधी पार्टी को आशा से ज्यादा सीटें मिलेंगी. अभी तक कुल ६० सीटों के रुझान मिले हैं, जिनमे मोदी को २८ और हमारी पार्टी, ओह सॉरी, उनकी विरोधी पार्टी को २६ सीटों पर बढ़त हासिल है. अन्य को ६ सीटों पर बढ़त हासिल है"; सतीश कुमार ने बताया.

सतीश कुमार की रपट सुनकर स्टूडियो में बैठे दोनों एंकर की खुशी का ठिकाना नहीं है. प्रमोद मालपुआ ने कहना शुरू किया; "जैसा कि हमने बताया, इस बार गुजरात की जनता को न्याय मिलेगा. साथ में हमारी मेहनत को भी न्याय के दर्शन होंगे. एक बार पूरे नतीजे आ जाएँ, तो नतीजों से मिलाने वाले न्याय को हम सब मिल-बाँट कर अपने पास रख लेंगे. अज्ञान, आपका क्या मानना है?"

"बिल्कुल. आपने ठीक कहा. न्याय दिलाने और पाने की का सारा दारोमदार हमारे ऊपर है. और इस बार न्याय होकर रहेगा. चलिए, हमारा सम्पर्क एक बार फिर से सतीश कुमार से हो गया है. सतीश ताजा जानकारी क्या है आपके पास? रुझान क्या कहते हैं?"; अज्ञान विकास ने आवाज लगाई.

"अज्ञान, जैसा कि आप देख सकते हैं. अब पूरे १२० सीटों के रुझान हमारे सामने हैं. और १२० सीटों में से मोदी को केवल ४० सीटों पर बढ़त हासिल है. विरोधी पार्टी को ७६ सीटों पर बढ़त मिली है. जैसा कि आप देख सकते हैं, अब मैं विरोधी पार्टी के कार्यालय के सामने खडा हूँ. कार्यकर्ताओं का उत्साह देखते ही बनता है. यहाँ तो अभी से लड्डू बांटे जा रहे हैं. आप ख़ुद देख सकते हैं, किस तरह से कार्यकर्ताओं ने मेरे मुंह में लड्डू ठूस दिए हैं. मैं और बात नहीं कर पा रहा हूँ. मैं लड्डू खाकर वापस आता हूँ तब बात करता हूँ"; सतीश कुमार ने तुतलाती आवाज में कहा.

इतना कह कर सतीश सामने रखी टेबल पर से पेपरवेट उठाकर खाने लगे. उसे तोड़ने की बार-बार कोशिश करने के बाद भी जब पेपरवेट रुपी लड्डू नहीं टूटा, तो उनकी नींद खुल गई. देखा, सामने स्टूडियो में बैठे सभी निराश होकर स्टूडियो की छत की और देख रहे हैं. उन्हें दुखी देख, सतीश कुमार भी दुखी हो गए. उन्हें पता चल चुका था कि वे सपना देख रहे थे. उधर मोदी की पार्टी जीत रही थी.

Tuesday, December 18, 2007

और चिट्ठाकार अखबार में छप जायेगा

सड़क पर आते-जाते लोकल न्यूज़ चैनल के कैमरे खोजता हूँ. सोचता हूँ, कहीं दिख जाएँ तो सामने जाकर 'कैमेराबंद' हो लूँ और शाम को ख़ुद को टीवी स्क्रीन पर देखूं. लाइफ की एक उपलब्धि हो जायेगी. लेकिन इन टीवी चैनल वालों ने शायद कसम खाई है कि; 'दुनिया के तमाम मुद्दों पर सबका कमेंट ले लेंगे लेकिन बालकिशन का नहीं.' हमारे शहर में आए दिन बंद होता है, रैलियां होती हैं, इन मुद्दों पर कमेंट लेने के लिए टीवीवाले मुहल्ले के राजू भाई के पास जाते हैं. हरीराम चाय वाले से कमेंट लेते हैं' लेकिन आजतक किसी न्यूज़ चैनल वाले ने मुझसे नहीं पूछा कि 'आपकी क्या राय है, बंद होने चाहिए, या नहीं?' अब उन्होंने नहीं पूछा, तो मैंने भी नहीं बताया.

पर जबसे जीवन 'ब्लॉग-धन्य' हुआ है, तब से टीवी पर दिखने की चाहत उतनी नहीं है, जितनी अखबार में छपने की. आए दिन सुनता हूँ, फला अखबार में हिन्दी चिट्ठाकारिता के बारे में लेख छपा है और फला चिट्ठाकार छप गया. लेकिन मजाल है कि मेरे जैसे 'महान' चिट्ठाकार का नाम छपे कहीं. लोगों से जब सुनते थे कि; 'देश में टैलेंट को तरजीह नहीं दी जाती' तो सोचते थे कि 'नहीं ऐसी बात नहीं है. कहीं-कहीं तो जरूर दी जाती है नहीं तो बड़े-बड़े नेताओं का टैलेंट नष्ट हो जाता.' लेकिन अब मुझे अपनी इस सोच पर शंका होने लगी है और उसका कारण भी ठोस है.

कल प्रभात ख़बर में एक ख़बर छपी थी, हिन्दी चिट्ठाकार और चिट्ठाकारिता के बारे में. मैंने ख़बर की हेडलाइन तक पढ़े बिना लेख में अपना नाम खोजना शुरू किया. काफी खोजने के बाद भी नाम नहीं मिला. कुछ मिलने की बात पर निराशा मिली. तुरंत फैसला कर डाला कि; 'आज के बाद एक भी पोस्ट नहीं लिखूंगा. ऐसे ब्लॉग का फायदा ही क्या जो अखबार तक में नाम न छपा सके. लेकिन 'चिट्ठाकार' का गुस्सा बड़ा कोमल होता है. दस मिनट में ही खत्म हो गया. फिर सोचा 'कोई बात नहीं है, वह सुबह कभी तो आएगी जब चाय पीते-पीते अखबार में ख़ुद का नाम देखेंगे और उस अखबार की दस-बीस प्रतियाँ जेरोक्स करके रख लेंगे. भविष्य में पत्नी और ससुराल वालों पर रौब ज़माने के काम आएगी.' ठीक वैसे ही जैसे कोई लोकल नेता सालों पुरानी तस्वीर को संभाल कर रखता है, एक ऐसी तस्वीर जिसमें उसे किसी राष्ट्र स्तर के नेता को माला पहनाते दिखाया जाता है, और काऊंसिलर के चुनाव का टिकट पाने के लिए उसका उपयोग करता है.

लेकिन मन की शंका है कि पीछा नहीं छोड़ती. सोचता हूँ; 'क्या ऐसा हो सकेगा कभी?' फिर सोचता हूँ कि अगर ऐसा नहीं हुआ तब क्या करूंगा. मुझे परसाई जी के उपन्यास रानी नागफनी की कहानी का वो प्रसंग याद आ जाता है, जिसमें अस्तभान अपने मित्र मुफतलाल से पूछता है कि लोग पास होते हैं, इस बात का पता कैसे चलता है? मुफतलाल उसे बताता
है कि 'कुंवर, जिसका नाम अखबार में छपता है, वो पास हो जाता है.' उसकी बात सुनकर अस्तभान कहता है; "मित्र अगर ऐसी बात है, तो मैं अपना ख़ुद का अखबार निकालूँगा और उसमे सबसे पहले अपना नाम छापूंगा. मुझे ही ख़ुद को पास करना पडेगा, ये अखबार वाले मुझे पास नहीं करेंगे."

अस्तभान की बात याद करके मैंने सोचा; 'थोड़े दिन और देख लेता हूँ, अगर छप नहीं सका, तो अखबार में ख़ुद ही एक आर्टकिल लिखूंगा और अपना नाम ख़ुद ही छाप लूंगा.

अब थोड़े दिन और देखने के लिए जरूरी है कि पोस्ट लिखता रहूँ, सो ये पोस्ट लिख डाली.

Tuesday, December 11, 2007

समतल जमीन पर खड़ा, सोचता हूँ...


जब भी देखता हूँ
घर के सामने बैठे टीले को
एक ही विचार आता हैं मन में
जैसे पूछ रहा हो कि;
मुझे ऊंचा समझते हो, लेकिन;
मेरी ऊंचाई
तुमने क्या ख़ुद नापी है?
समझ नहीं आता
क्या जवाब दूँ
कोई जवाब नहीं सूझता
जवाब की शक्ल सवाल ले लेते हैं
क्या कभी
इस टीले के प्रश्न का जवाब दे सकोगे?

जब भी खड़ा होता हूँ
तालाब की सामने वाली
डेढ़ बीघा जमीन पर
व्याकुल मन को लगता है
तालाब भी प्रश्न कर रहा है
'गहराई कितनी है,
क्या तुमने ख़ुद नापी है?'
व्याकुल मन तड़पता है
तालाब के सवाल का
जवाब खोजता है

फिर सोचता हूँ;
टीले की ऊंचाई
और तालाब की गहराई
दोनों ही
किसी और ने तय किए
मैं न तो ऊंचाई नाप सका
न ही गहराई
जीवन बिता दिया
इस समतल जमीन पर
दूसरों को देखो
न सिर्फ़ ऊचाई चढ़े बल्कि;
गहराई भी नापी
हमें तो दूसरों ने ही बताया
कि टीला कितना ऊंचा है
और तालाब कितना गहरा

Monday, December 10, 2007

लिंकित पोस्ट और शंकित मन ; या फ़िर आप बताएं इस पोस्ट को मैं क्या नाम दूँ.

कुछ शीर्षक के बारे में.
लिंकित पोस्ट इसलिए की मैंने इस पोस्ट में बहुत से लिंक देकर लिखने का प्रयास किया है और शंकित मन इसलिए कि मन मे एक संदेह है कि ये पोस्ट आपको पसंद भी आएगी या नहीं. खैर जो भी हो आप लोगों से निवेदन है पोस्ट पढने के बाद टिपण्णी के साथ-साथ एक उपयुक्त शीर्षक भी जरुर बताएं.
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बचपन मे एक खेल खेला करते थे. किसी भी हीरो या हिरोइन की बहुतसी फिल्मों के नाम एक साथ जोड़कर कुछ सार्थक वाक्य बनाने पड़ते थे. जिसके वाक्य सबसे ज्यादा होते थे वही खेल मे विजेता घोषित होता था. कुछ ऐसा ही प्रयास मैंने बहुत से ब्लोगों के नाम को लेकर किया है.

चिटठा जगत ब्लाग्वानी और नारद
के वरिष्ट/वरिष्ठतम महानुभावों ( मेरी जानकारी मे, किसी की आपत्ति की कोई जगह नही है.) जैसे ज्ञान भैया, सारथी जी, फुरसतिया जी, मिश्रा जी, काकेश जी , आलोक (अगड़म-बगड़म) जी आदि-आदि. कोई वरिष्ट या वरिष्ठतम छूट गए हो तो माफ़ी चाहता हूँ.


कछु ह‍मरी सुनि लीजै
जोगलिखी हिन्दी - चिट्ठे एवं पॉडकास्ट की दुनिया मे आप सब को बालकिशन का प्रणाम.मैंने अपने चिट्ठा चर्चा की शुरुवात मेरी कलम से गाहे-बगाहे लिखे कुछ रिजेक्ट माल से करते हुए अपनी भड़ास निकाली थी. धीरे-धीरे अपने शब्‍दों का सफ़र और अपनी शब्दों की दुनिया को एक बाल -उद्यान, एक बगीची की तरह पुष्प पल्लवित करते हुए हिन्दी ब्लॉग की जीवन-धारा मे मेरा पन्ना भी संवेदनाओं के पंख लगाकर दिल से दिल की बात करता हुआ निर्मल-आनन्द के सागर मे गोता लगाने लगा है.

पर मेरे लिंकित मन मे कुछ शंकित प्रश्न भी है और कुछ मानसिक हलचल मे दखल देती हुई चिंताएं भी जिसके विषय मे मुझे कुछ कहना है और जिसका समाधान ये स्वप्नदर्शी गुस्ताख़ ये आवारा बंजारा आपकी .अदालत से चाहता है. जैसे रचनाकार का ब्लॉग "Raviratlami Ka Hindi blog" या "Meri Katputliyaan" अंग्रेजी मे क्यों लिखा है. जैसे टिप्‍पणीकार विचारों की जमीं पर अपनी छाया तो दिखलाते है. पर छिपे क्यों रहते है. जैसे निंदा पुराण को आरंभ करने वालों को तीसरा रास्ता के तीसरा खम्भा मे बाँध कर उनकी हवा पानी बंद क्यों नही की जाती. (इसे ऑफ द रिकॉर्ड रखें).

इन सब बात बतंगड़ और उधेड़-बुन में हम असली तत्वचर्चा कि "प्रेम ही सत्य है" को तो बेदखल की डायरी मे लिखी "मेरी कविता" (घरेलु उपचार की) की तरह नौ दो ग्यारह कर देते है. कुछ चिठ्ठे ऐसे भी है जिनसे त्वरित लाभ होता है जैसे वाह!मनी , सेहतनामा , स्मार्ट निवेश , Global voices , cinema- सिलेमा (ये सभी नाम भी अंग्रेजी में, सारथी जी आप देख लें) आदि आदि.

महोदय जिस प्रकार एक कर्मचारी के कर्म ही उसे मिलने वाले पारिश्रीमिक का कारण होते है उसी प्रकार एक ब्लॉगर की पोस्ट ही उसे मिलने वाली टिप्पणियों और लिंकों का कारन होती है. मैं ये सब इसलिए कहना चाहता हूँ कि हम सब दिल का दर्पण खोल कर बहुत लिखे और अच्छा लिखे. मुझे आशा ही नही पूर्ण विश्वाश और भरोसा है कि हम सब के सामुहिक प्रयास से ये हिन्दी ब्लोग्गिंग की दुनिया जो अभी इंग्लिश ब्लोग्गिंग की दुनिया के सामने टुटी हुई बिखरी हुई और हाशिया पर नज़र आती है अपने कारवाँ को खेत खलियान और धान के देश से आगे लेजाते हुए ब्लोग्गिंग आकाश पर एक विस्फोट करते हुए अश्विनी के समान चमकेगी.

बात बे बात मे अगर कुछ मेरी कलम से ग़लत लिखा गया तो इसे एक हिंदुस्तानी की डायरी मे लिखी विनय पत्रिका समझ कर बिसरा दीजियेगा.

कबाड़खाना से ब्लोगिया कंही का .

आप सब का

लपूझन्ना

Saturday, December 8, 2007

उम्मीद




पास मेरे जो तुम आओ तो कोई बात बने
पास आकर दूर ना जाओ तो कोई बात बने

नफरत से प्यार क्यों करते हो इस कदर
प्यार से प्यार करो तो कोई बात बने

उम्र सारी तमाम कि सौदेबाजी मे अब तो
एक रिश्ता कायम करो तो कोई बात बने

गिरे हुए पर तो हँसते है दुनिया मे सभी
गिरतों को तुम संभालो तो कोई बात बने

रोने से कंहा हासिल किसी को कुछ होता है
जरा किसी के साथ मुस्कुराओ तो कोई बात बने.

ख्वाबों कि राख पर बैठ हाथ मलने से क्या हासिल
इक नया ख्वाब किसी आँख मे तुम सजाओ तो कोई बात बने.

जिन घरो मे सदियों से छाया है अँधेरा वंहा
एक दीपक तुम जलाओ तो कोई बात बने.

हिंसा गर सारा जमाना तुमसे करे तो क्या
अहिंसा तुम बापू सी करो तो कोई बात बने.

Thursday, December 6, 2007

सेलिब्रिटी और दीपक

बहुत दिनों से कुछ नही लिख पाया. ऊपर से मैं ठहरा नया ब्लागिया. लिहाजा नए ब्लागिये का धर्म निभाते हुए दुःख मिश्रित चिंता मे डूबा हुआ था कि मित्र दीपक का आगमन हुआ. दीपक के बारे में बताने लायक सबसे जरूरी बात ये है कि मेरा ये मित्र बहुत नाराज़ किस्म का प्राणी है. हर समय, हर परिस्थति मे, हर इंसान से नाराज़ रहता है. किसी की भी बखिया उधेड़नी हो तो बस उसका नाम भर दीपक के सामने लेने कि जरुरत है. बाकी का काम दीपक स्वयं कर लेने में सक्षम है. कुल मिलाकर परसाई जी के निबंध 'निन्दारस' में वर्णित पात्र की तरह. जिस भूमिका का निर्वाह निंदक करता है वही भूमिका दीपक की है. दीपक से मिलने पर मुझे बहुत सुख मिलता है. जिनसे भी मुझे हिसाब बराबर करना रहता है मैं उनके नाम एक-एक कर दीपक के आगे सरकाता जाता हूँ और बाकी सब दीपक के जिम्मे.

आते ही उसने ही उसने प्रश्न की तोप दागी. " क्या बात है? क्यों परेशान हो? क्या तबियत ख़राब है?"

मैंने कहा "नही यार, बहुत दिनों से अपने ब्लॉग पर कुछ लिख नही पाया और दूसरों के ब्लॉग पर टिप्पणी भी नही कर पाया हूँ. इसलिए अच्छा नही लग रहा है."

इतना सुनते ही दीपक ने अगला प्रश्न मेरी तरफ़ सरकाया;" क्या होगा लिखकर?"

"विशेष कुछ नही पर अच्छा लगता है. सुख मिलता है ये देखकर कि मेरा लिखा भी लोग पढ़ते है. मेरा नाम भी ब्लागवानी, नारद और चिटठाजगत पर आता है. लोग मुझे भी जानने लगे हैं. और फिर, पुरूष के भाग्य के बारे में कोई नहीं जानता. हो सकता है बाद में मेरे भी लेख और कवितायें पात्र-पत्रिकाओं वगैरह में छपें"; मैंने उसे बताया. इतना सुनते ही वो फट पड़ा " तो ऐसा बोलो न कि सेलिब्रिटी बनने का चस्का चढा है."

मैंने कहा; "नहीं, सेलेब्रिटी बनने की बात नहीं है. बहुत सारे लोग लिखते हैं, सो मैं भी लिख लेता हूँ."

"नहीं-नहीं, मैं समझ गया बॉस. पूरा मामला ही सेलेब्रिटी बनने का है. तुम नहीं मानोगे, लेकिन एक बात मेरी गाँठ बाँध लो, ये सेलेब्रिटी बनने का काम तुम्हारे बस का नहीं"; दीपक ने मुझे सूचना दी.

मैंने घबराते हुए पूछा " क्यों भला?"

उसने कहा ये बताओ " क्या तुम्हारी पत्नी या होने वाली पत्नी से तुम्हारा तलाक हुआ है?"

मैंने कहा " नही भाई, मैं तो अपनी पत्नी के सारी बातें दोनों कान खोलकर सुनता हूँ. और उसका कहा भी जल्द से जल्द पूरा करता हूँ. मैं तो पूरी तरह से विशुद्ध पत्नीब्रता इंसान हूँ. फ़िर मेरा तलाक़ क्यों होने लगा."

उसने फ़िर पूछा " अच्छा ये बताओ क्या कभी किसी गैर औरत ने तुम पर अपने बच्चे या होने वाले बच्चे के पिता होने का इल्जाम लगाया है?"

मैंने घबराते हुए जवाब दिया " नही भाई नही. तुम क्यों मेरे सुखी संसार मे आग लगाना चाहते हो."

इस बार उसका प्रश्न था " क्या तुमने कभी अपनी गाड़ी या मोटर साइकिल के नीचे फुटपाथ पर सोये गरीबों को कुचला है?

"नही यार, कुचलने का प्रश्न तो तब आएगा जब ये चीजें होगी मेरे पास" मेरा जवाब था.

"तुम्हारा कभी किसी मैगजीन मे कोई सेक्सी फोटो छपा या कोई सेक्सी विडियो एलबम निकला?" उसका नया प्रश्न.

मैंने अगल बगल देखते हुए धीरे से कहा " अभी तक तो नही पर तुम्हारी कोई पहचान वाला है तो बताओ ना"

उसने कहा "जरुर बताऊंगा पर तुम ये बताओ क्या तुम्हारे घर पर कोई सरकारी छापा पड़ा जिसमे ८-१० करोड़ के जेवर और नगद बरामद हुए?"

मैंने जवाब दिया "नही भाई पर चाहता तो मैं भी हूँ कि एक बार छपा पड़े ये सब बरामद हो ही जाए फ़िर तो सब टैक्स वगैरह काट कर ३०-४०
प्रतिशत तो मुझे भी मिल ही जायेंगे. फिलहाल तो मुझे स्वयं ही नही पता है कि इतना कुछ मेरे घर मे रखा कंहा है?"

तोप से एक नया प्रश्न निकला " कभी काला हिरन मारा? कभी ऐ के 47 बरामद हुई तुम्हारे पास से?

"आज तक जीवन मे दोनों ही चीजों के दर्शन भी नही हुए मुझे और क्या कहूं." मैंने जवाब दिया.

"अपने आप को लेखक, कवि, ब्लोगियर और ना जाने क्या-क्या समझते हो पर ये बताओ तुम्हारा लिखा कंही बैन हुआ? कभी तुम्हारे लिखे पर कोई झमेला शुरू हुआ?" उसने पूछा.

मैंने कहा "झमेला और बैन शुरू होने के आसार तो तब बनेंगे जब लोग पढेंगे अभी तो मुझे बहुत लोग पढ़ते ही नही है."

उसने फ़ैसला सुनाया " जब सब जवाब तुम्हारे नही है तो सेलिब्रिटी बनना क्या खाक सही है, छोडो ये सब कुछ काम पर ध्यान दो तो शायद इनमे से कुछ हासिल हो भी जाए."

इस बार मैंने मन ही मन सोचा (सामने कहने की हिम्मत तो मुझमे नही थी) कि " तुम तो लेखक, कवि या फ़िर ब्लागिये नही हो, तुमने कौन सा तीर मार लिया"

दीपक द्वारा लिए गए मेरे इस इंटरव्यू से मुझे दो फायदे जरुर हुए. एक तो नई पोस्ट का सामान मिल गया दूजे सेलिब्रिटी बनने का नशा उतर
गया. मैंने उसे दिल से धन्यवाद दिया.